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लोकतंत्र उत्सव

ढोल नगाड़े झांझ और थाली सारा दिन बजते रहे गली गली गला फाड़ जयकारे लगते रहे रास्ते भर डीजे पर नाचते रहे गली नुक्कड़ पर चर्चा के दौर हथाई पाटों पर चाय का दौर कहीं मिल रहा हलवाऔर पूरी कहीं बढ़ गई भाइयों में दूरी उत्त्साह उमंग का माहौल बना कहीं सुलगता का लाहौर बना घर घर गिनती कम पड़ रही इसलिए दुनियाँ मेरे अपनों को याद कर रही घर घर न्योता मान मनुहार हो रही बालिग लोगों की कीमत बढ़ रही इस सारे उजास उत्सव के बीचोबीच अचानक दिव्य दृष्टी मिली सञ्जय सी मन पढ़ना मष्तिष्क का स्केन करना हे भगवान!! इतने मैले इतने गन्दे तेरे बन्दे? चरों तरफ मैल ही मैल भरा पड़ा कुंठा,घृणा,विश्वाशघात से भरा पड़ा बदला,बैर,चालाकी खेलरही अठखेली ओहो!!!समझा!!समझा!! ये तो थी मेरे हिन्दुस्थान के नवीन उत्सव लोकतंत्र के उत्सव चुनाव की रैली।।