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कालजयी सावरकर

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कालजयी सावरकर ‘‘  काल स्वयं मुझसे डरा है ,  मैं काल से नहीं। कालेपानी का कालकूट पीकर ,  काल के कराल स्तंभों को झकझोर कर मैं बार-बार लौट आया हूँ और आज भी मैं जीवित हूँ। हारी मृत्यु है ,  मैं नहीं ....   ......... ’’ काल और महामृत्यु को चुनौती देने वाले और ना सिर्फ चुनौती ,  उस काल को भी बार-बार मात देते हुए वापिस लौटकर पुनः कई गुना और तेजी से मातृभमि की स्वतंत्रता के लिए कार्य करने वाले ये महापुरुष थे - स्‍वातंत्र्य विनायक दामोदर सावरकर। उनके जीवन में शायद भगवान महाकाल का तेज था। क्योकि आज तक के इतिहास में सावरकर ,  पहले और अंतिम ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे अपने जीवन में दो आजीवन कालापानी ( 50  वर्ष) की सजा मिली है ,  जिसकी कल्पना आज भी रूह कपा देती है। केवल इतना ही नहीं कि सिर्फ सावरकर अपितु सावरकर के पूरे वंश ने इस स्वतंत्रता देवी के श्रीचरणों में अपना सर्वस्व होम कर दिया। उन कष्टों से तो शायद मृत्यु ज्यादा सहज थी पर देश के लिए तिल-तिल कर जलना उस मृत्यु से भी सहस्त्र गुना कठिन है। इन शब्दों से लग रहा होगा कि ऐसा कैसा था सावरकर का जीवन ,  तो उनके जीवन के कुछ बिंदु आगे प्रस्तुत है - ·