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वैदिक साहित्य और अशोक-स्तंभ !

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प्रो. वासुदेवशरण अग्रवाल भारतीय बौद्धिकता के उच्चतम शिखर है। इतिहास व साहित्य पर किया गया कार्य उनकी विद्वता को प्रमाणित करता है। न केवल 'पाणिनि कालीन भारत' बल्कि 'पद्मावत' जैसे महाकाव्य की 'संजीवनी व्याख्या' लिखकर उन्होंने विद्वत समाज को अपने इतिहासबोध और साहित्य दृष्टि का लोहा मनवाया। जानिए भारत के सबसे अयोग्य नेता की सूची में किसने बनाया स्थान? प्रो. साहब ने सन 1967 में 'चक्रध्वज' नामक एक पुस्तक लिखी। जो 'राष्ट्रीय पुस्तक न्यास' से प्रकाशित हुई । इस पुस्तक में उन्होंने राष्ट्रध्वज में अंकित 'अशोक-चक्र' को मौर्यकाल के सीमित दायरे से निकालकर भारत की पाँच हजार वर्षों से चली आ रही परम्परा के आयाम के रूप में स्थापित किया। पुष्ट तथ्यों और प्रभावी तर्कों द्वारा उन्होंने यह सिद्ध किया कि अशोक स्तम्भ का स्वभाव वैदिककाल से सतत जुड़ा हुआ है। उन्होंने लिखा कि ऋग्वेद के अनुसार पृथ्वी का आधार एक स्तम्भ है तथा समस्त संसार उस स्तम्भ से अव्यक्त रूप से जुड़ा हुआ है। उस स्तम्भ के शिखर पर काल व भव के प्रतीक के रूप में सूर्य विद्यमान है। यह सूर्य रूपी चक्र स

जानिए भारत का सबसे अयोग्य नेता कौन है?

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वर्तमान में भारत मे 1 नहीं ढेरों अयोग्य नेताजी हैं, जो अपने दम पर पार्षद तो क्या मोहल्ला कमेटी का सदस्य भी नही बन सकते। ये सब नेताजी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, तो परिचय देने की आवश्यकता नहीं है, आप सिर्फ फ़ोटो देखिए। 1 इनका नाम है तेजस्वी यादव, इन्हें सुनिए सारे टेंशन भूल जाएंगे। 2 इनके हज़ारों वीडियो यूट्यूब, फेसबुक पर उपलब्ध हैं,, 3 ये हैं भविष्य के रागा। 4 ये भाईसाहब तो बहुत ही जोरदार हैं, इनके कहने ही क्या, समझ ही गए होंगे ये कहना क्या चाहते हैं? 5 इनकी सिर्फ 1 उपलब्धि है कि इनकी नाम स्विंग होती है। 6 इनकी नाक और बाल दादी से मिलते हैं, 7 खो न जाएं ये तारे ज़मीन पर। इसपर 1000 अपवोट तो बनते हैं, धन्यवाद।। धन्यवाद।।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में फलोदी परगने का योगदान

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भारत के स्वतंत्रता संग्राम में फलोदी परगने का योगदान विश्व का प्रत्येक राष्ट्र गुलामी को हेय और आजादी को श्रेष्ठ मानता है अतः जब धोखेबाजी के चलते भारत को पहले मुगलों ने एवं बाद में ब्रिटेन के अंग्रेजों ने गुलाम बनाया तो गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने करने के लिए भारतीय जनता बेताब हो गई उस लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार 15 अगस्त 1947 को ब्रिटेन की गौरी सरकार से आजादी प्राप्त कर ली। स्वतंत्रता आंदोलन में फलोदी परगने की जनता का योगदान-  अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता यह कहावत मशहूर है। इसी संदर्भ में तत्कालीन भारत के विभिन्न प्रांतों में रहने वाली जनता जंगे आजादी के मैदान में कूद पड़ी। इस संग्राम में राजस्थान के जोधपुर जिला अंतर्गत फलोदी तहसील की जनता का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। यह कहना उपयुक्त होगा की रोजी रोटी रोटी के लिए भारत भर के तत्कालीन प्रांतों में फैली हुई, फलोदी परगने की जनता ने इस आजादी आंदोलन में तन मन धन से दिल खोल कर अपनी आहुति प्रदान की। ब्रिटिश भारत में आजादी आंदोलन का सबसे बड़ा गढ़ मुंबई प्रांत रहा, जो कि सिंध तक फैला हुआ था। फलौदी नगर एवं परगने की जनता का प्रगाढ़ सम्बन्ध भी यहां

पंजाब में मोदी सरकार द्वारा एमएसपी पर धान की खरीद क्या संकेत देती है, डाटा से समझें

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ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पंजाब के किसानों द्वारा उगाई गई संपूर्ण धान की फसल को 1 अक्टूबर से शुरू हुए खरीफ के बिक्री मौसम में खरीद लिया है। पीआईबी द्वारा जारी एक बयान के अनुसार पंजाब से 2.028 करोड़ टन धान खरीदी गई जो कि पूरे देश से कुल खरीदी गई 3.18 करोड़ टन धान का 67 प्रतिशत है। इसका अर्थ हुआ कि अकेले पंजाब से ही देश की कुल धान खरीद का दो-तिहाई भाग आया। लेकिन यहाँ पर एक मोड़ है। कृषि मंत्रालय के फर्स्ट एडवांस एस्टिमेट (पहले अनुमान) के अनुसार इस वर्ष 10.236 करोड़ टन खरीफ चावल के उत्पादन की अपेक्षा थी, वहीं पिछले वर्ष 10.198 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था।  अगर खरीद के डाटा के अनुसार देखें तो अभी तक जितनी धान खरीदी जा चुकी है, उससे 2.13 करोड़ टन चावल प्राप्त होंगे। इसका अर्थ हुआ कि केंद्र ने जुलाई 2020-जून 2021 के लिए खरीफ चावल के उत्पादन का 20 प्रतिशत से अधिक भाग खरीद लिया है। पंजाब से खरीदी गई धान से 1.358 करोड़ टन चावल प्राप्त किए जा सकते हैं। धान की फसल सिर्फ खरीफ मौसम में ही होती है जिसका अर्थ हुआ कि जुलाई 2021 तक के लिए उत्पादन हो चुका है। डाटा के अनुसार पंजाब ने

विजय दिवस विशेष

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16 दिसंबर को हम सभी विजय दिवस के रूप में मनाते है। 16 दिसंबर 1971 को भारत की पाकिस्तान पर विजय की स्मृति के रूप में इस दिवस को हम पिछले 49 वर्षों से मनाते आ रहे हैं क्या है। इस दिन का महत्व क्या है? इस युद्ध में कैसे विजय मिली? युद्ध के दौरान क्या-क्या घटनाएं हुई? इस युद्ध के मुख्य नायक कौन-कौन थे? इस विजय का इतना अधिक महत्व क्यों हैं? क्या है 93000 पाक सैनिकों के आत्मसमर्पण का सच? वर्तमान पीढ़ी इन सब से अनभिज्ञ है। आइए इस आलेख के माध्यम से इसके बारे में सब कुछ जानने का प्रयास करते हैं। नए संसद भवन की 10 विशेताएँ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- भारत से अंग्रेजों का जाना सुनिश्चित होने के काफी पहले से उन्होंने अपनी कूटनीति के चलते भारत के टुकड़े करने की योजना पर कार्य प्रारंभ कर दिया था। वैसे तो अंग्रेजों ने 1857 से ही भारत विखंडन के कार्य पर काम प्रारंभ कर दिया। किंतु इस दिशा में विश्व युद्ध के बाद उन्होंने तेजी से काम किया। भारत का हिंदू मुस्लिम आबादी के अनुसार विभाजन हुआ। जिसका परिणाम पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान का उदय के रूप में हुआ। पाकिस्तान के उदय के बाद से ही हमारा देश

नए संसद भवन की 10 विशेषताएं जानिए

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नया संसद भवन राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बनेगा। अब भारत बदल रहा है। एक एक करके गुलामी के प्रतीकों से निजात पा रहा है। राष्ट्रीय गौरव का भान जब जागता है तब पुराने प्रतीकों को नष्ट करना, अर्थात पहले की लकीर को मिटाना यह सामान्य इंसानों के व्यवहार में देखा जाता है। किंतु मोदीजी जैसे महामानवों का चिंतन, विचार और व्यवहार उच्च कोटि का है। वे छोटी  लाइन को मिटाने के स्थान पर उसके पास और अधिक बड़ी लाइन खींचने में विश्वास करते है। इसी नीति का पालन करते हुए, नया भव्य आवश्यकता के अनुरूप संसद भवन बनने जा रहा है। भारत के संसद भवन की तस्वीर अब बदलने वाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज दिल्ली में नए संसद भवन की नींव रख दी है। आजादी के 75 साल पूरे होने तक ये नई बिल्डिंग तैयार हो जाएगी। यह नया भवन मौजूदा बिल्डिंग से अधिक बड़ा, आकर्षक और आधुनिक सुविधाओं वाला है। नए संसद भवन से जुड़ी 10 खास महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं- 1. पुराने संसद भवन से इतर नई बिल्डिंग में आधुनिक तकनीक और जरुरतों का ध्यान रखा जा रहा है। अगस्त 2019 में मौजूदा लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की ओर से नए संसद

संघ नींव में विसर्जित पुष्प भाग १

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संघ संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आज कौन नहीं जानता ? भारत के कोने-कोने में इसकी शाखाएँ हैं। विश्व में जिस देश में भी हिन्दू रहते हैं, वहाँ किसी न किसी रूप में संघ का काम है। संघ के निर्माता डा. केशवराव हेडगेवार का जन्म एक अपै्रल, 1889 (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वि. सम्वत् 1946) को नागपुर में हुआ था। इनके पिता श्री बलिराम हेडगेवार तथा माता श्रीमती रेवतीवाई थीं। केशव जन्मजात देशभक्त थे। बचपन से ही उन्हें नगर में घूमते हुए अंग्रेज सैनिक, सीताबर्डी के किले पर फहराता अंग्रेजों का झण्डा यूनियन जैक तथा विद्यालय में गाया जाने वाला गीत ‘गाॅड सेव दि किंग’ बहुत बुरा लगता था। उन्होंने एक बार सुरंग खोदकर उस झंडे को उतारने की योजना भी बनाई; पर बालपन की यह योजना सफल नहीं हो पाई। वे सोचते थे कि इतने बड़े देश पर पहले मुगलों ने और फिर सात समुन्दर पार से आये अंग्रेजों ने अधिकार कैसे कर लिया ? वे अपने अध्यापकों और अन्य बड़े लोगों से बार-बार यह प्रश्न पूछा करते थे। बहुत दिनों बाद उनकी समझ में यह आया कि भारत के रहने वाले हिन्दू असंगठित हैं। वे ज

क्रिसमस और न्यू ईयर पर पटाखे चलाने की छूट, भारतीय त्यौहारों पर प्रतिबंध !

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दिवाली से ठीक पहले कांग्रेस शासित सरकारों की तरह दिल्ली सरकार ने दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए 9 नवंबर से 30 नवंबर तक पटाखे पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिये थे। सेकुलर राजनेताओं की तरह गुलाम मानसिकता के पत्रकार, साहित्यकार भी होली, दिवाली जैसे भारतीय त्यौहारों पर पानी बचाओ, भविष्य बचाओ! प्रदुषण मुक्त भारत! जैसे कोटेशनों के बहाने अपनी दुषित बौद्धिक क्षमता का बखान करते रहते हैं। लेकिन बकरीद पर लाखों बकरों के कटने से नदियों का रंग लाल हो जाने, मुस्लिम बस्तियों में सडांध से पैदा हो रहे विषाणुओं/बिमारियों, अजान के दौरान मस्जिदों पर लाउड स्पीकर के इस्‍तेमाल से होने वाले ध्‍वनि प्रदूषण पर न्यायालयों के निर्णयों की लगातार उपेक्षा, क्रिसमस पर हजारों पेड़ काट दिये जाने से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकुल प्रभाव पर भारतीय सभ्यता/संस्कृति से घृणा करने वाली अवार्ड वापसी गैंग व एकमुश्त मुस्लिम वोटों के भूखे भेड़िये मौन धारण कर लेते हैं! कोर्ट में याचिका डालकर होली, दिवाली और दही हांडी जैसे भारतीय त्यौहारों पर अपनी खीझ निकालने वाले ईद, मुहर्रम और  क्रिसमस पर एक शब्द नहीं बोलते! पटाखों पर बैन का व

जानिए 800 वर्ष पुराने मंदिर का रहस्य जो वैज्ञानिकों के विचार से परे है?

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आइए आज हम 800 साल पुराने मन्दिर के अनसुलझे रहस्य के बारे में जानते है जिसके रहस्य को विज्ञान भी समझ नहीं पाए है। तस्वीर स्रोत - गूगल भारत में कई मंदिर हैं जिनकी अपनी अलग विशेषता है । इन विशेषताओं के कारण , वे अपनी पहचान बनाते हैं । वैसे , आमतौर पर मंदिर का नाम उस मंदिर में देवता के नाम पर होता है । लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं , जिसका नाम इसके बिल्डर के नाम पर रखा गया है । हम बात कर रहे हैं तेलंगाना में मुलुगु जिले के वेंकटापुर डिवीजन के पालमपेट गाँव में एक घाटी में स्थित रामप्पा मंदिर की । तस्वीर स्रोत - गूगल भगवान शिव रामप्पा मंदिर में विराजमान हैं , इसलिए इसे ' रामलिंगेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है । इस मंदिर के निर्माण की कहानी बहुत ही रोचक है । ऐसा कहा जाता है कि 1213 ई । में आंध्र प्रदेश के काकतीय वंश के महापुरुष गणपति देव को अचानक शिव मंदिर बनाने का विचार आया । इसके बाद , उन्होंने अपने वास्तुकार रामप्पा को एक मंदिर बनाने का आदेश दिया , जो वर्षों तक चलेगा । तस्वीर स्रोत - गूगल रामप्पा ने अपने राजा के आदेशों का पालन किया और अपनी शिल्प कौशल

सद्गुरु जग्गी वासु कौन हैं?

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वामपंथी लोगों को उनसे क्या समस्या है? सदगुरु जग्गी वासुदेव एक योगी, रहस्यदर्शी और एक बुद्ध पुरुष हैं, और बुद्ध पुरुषों से बुद्धुओं को, मूढो, दुष्टों को, षडयंत्रकारियों, कुटिल लोगों को सदैव समस्या रही है। ऐसा सदा से हुआ है चाहे वो राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, जीसस, कबीर, नानक, ओशो या सदगुरु ही क्यों ना हो, इन सभी ने अपने समय में यहाँ तक की सेकड़ों, हज़ारों वर्ष बाद आज भी कुछ मूर्ख और दुर्बुद्धि लोग इन महामानवों, अवतारों, और सिद्ध पुरुषों की अवमानना और अपमान करने का दुर्भाग्यपूर्ण निंदित कृत्य करने में प्रवृत्त रहते हैं, क्या ऐसे बीमारों का कोई इलाज संभव है? चमगादड़ और अंधेरे में रहने और जीने वाले सभी जीवों को सूर्य और रोशनी से समस्या रहती है, ऐसा ही इन बंदबुद्धि वामपंथी लोगों की भी समस्या है, यह लोग भी उन्हीं में से हैं जो सत्य देखना, सुनना और प्रतिष्ठित होते देखना बर्दाश्त नहीं कर सकते, क्यूंकि, इससे इनके नीच स्वार्थों और दूषित उद्देश्य उजागर होने का भय रहता है। कुटिल और दुष्ट सत्ताधारी और राजनितिक शक्तियाँ कभी भी ऐसे लोगों और बातों को बिल्कुल पसंद और बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं, जो लोगों