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जलते पुस्तकालय, जलती सभ्यताएं

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अभी हाल ही में फ्रांस में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति के मरने के बाद दंगे भड़के। सुनने में आया कि वहां 850 वर्ष पुरानी लाइब्रेरी (पुस्तकालय) को जला दिया गया। बहुत आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि की यह पहली बार नही हुआ है। फोटो साभार गूगल  इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है जब बर्बर लोगों ने संसार के ज्ञान भंडार को नष्ट किया। 1199 में बख्तियार खिलजी ने नालन्दा पर आक्रमण कर उसके पुस्तकालय को जलाया। कहते है कि इसके पुस्तकालय में लगी आग 6 माह तक जलती रही थी। इस पुस्तकालय में दुनियां भर का ज्ञान सुरक्षित था। जिसे जलाया गया था। बख्तियार खिलजी यहीं नहीं रुका। संसार का कोई भी सभ्य व्यक्ति पुस्तकों को नहीं जलाता। सभ्यता कोई भी हो, पुस्तकों को जलाया जाना सभ्य आचरण नहीं माना जा सकता। किंतु यह भी सत्य है कि हजारों वर्षों से पुस्तकालय जलाए जाते रहे हैं...     नालन्दा में इतनी किताबें थीं कि एक व्यक्ति को सब पढ़ने के लिए कई कई जन्म लेने पड़ते। फिर कहीं से एक असभ्य व्यक्ति निकल कर आया और अपने दो सौ लुटेरे साथियों के साथ संसार में ज्ञान के सबसे बड़े भंडार को फूंक दिया।    बख्तियार खिलजी यहीं नहीं रुका!

हिंदी दिवस 2022

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आओ हम सब मिलकर के, एक अनोखा प्रण करें। जब भी बोलें हिंदी बोलें, लिखे तो हिंदी प्रयोग करें।। निज भाषा ही प्यारी भाषा, पर भाषा को त्याज्य करें। इंग्लिश जर्मन फ्रेंच अरेबिक, सब पर हिंदी ग्राह्य करें।। आओ।। अपनी माता मातृभूमि और, मातृ भाषा का मान करें। मान करें सम्मान करें बस, हिंदी में ही बात करें।।आओ।। हिंदी सोना हिंदी जगना, हिंदी का व्यापार करें। हिंदी के कंधों पर चढ़कर, विश्व गुरु हुंकार करें।।आओ।। निज भाषा सम्मान बढ़ाती, निज भाषा हम गर्व करें। निज की निजता निज भाषा में, निज विवेक विचार करें।।आओ।।

प्रिंसिपल बनना आसान नही है 01

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30 वर्ष के अध्यापन कार्य के बाद मुझे राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल पद पर पदोन्नति मिली। अध्यापन के बहुत लंबे काल के दौरान शिक्षण के मामले में मेरे जो विचार, जो धारणाएं बनी उन्होंने अब अंतिम रूप लिया। अब उन धारणाओं के साकार होने का समय आया है। इस दौरान मैनें अनेक प्रशिक्षणों में दक्ष प्रशिक्षक के रूप में कार्य किया और अनेक प्रशिक्षण मॉड्यूल, पाठ्यपुस्तक, समझपत्र, आलेख आदि के निर्माण व लेखन में सहभागी रहा। उसका भी प्रभाव मेरे शिक्षण पर सकारात्मक रूप से पड़ा।अब मैं अपनी धारणाओं को व्यवहारिक रूप देने की कोशिश में लगातार लगा रहता हूं और जितनी कोशिश करता हूं, उतना ही मेरे लिए यह स्पष्ट होता जाता है कि विद्यालय के शिक्षण कार्य का संचालन सही तभी हो सकता है, जबकि प्रिंसिपल सारे स्कूल के विचारात्मक, संगठनात्मक, आर्थिक, समाज से समन्वय, (अपने पीईईओ क्षेत्र के स्कूलों की सम्हाल) और प्रशासनिक आदि कार्यभारों को निभाने के साथ-साथ अपने कार्यों का उचित उदाहरण भी पेश करें, जब शिक्षक प्रिंसिपल के कार्य में शिक्षण कला का श्रेष्ठ उदाहरण देखते हैं, प्रिंसिपल को बच्चों के शिक्षक के रूप में देखते ह

संघ गीत

देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें ॥धृ॥ सूरज हमें रौशनी देता, हवा नया जीवन देती है। भूख मिटने को हम सबकी, धरती पर होती खेती है। औरों का भी हित हो जिसमें, हम ऐसा कुछ करना सीखें ॥१॥ गरमी की तपती दुपहर में, पेड़ सदा देते हैं छाया। सुमन सुगंध सदा देते हैं, हम सबको फूलों की माला। त्यागी तरुओं के जीवन से, हम परहित कुछ करना सीखें ॥२॥ जो अनपढ़ हैं उन्हें पढ़ाएँ, जो चुप हैं उनको वाणी दें। पिछड़ गए जो उन्हें बढ़ाएँ, समरसता का भाव जगा दें। हम मेहनत के दीप जलाकर, नया उजाला करना सीखें ॥३॥

संघ गीत: देश हमें देता है सब कुछ

देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखे देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे। ।   सूरज हमें रोशनी देता , हवा नया जीवन देती है। भूख मिटाने को हम सब की , धरती पर होती खेती है औरों का भी हित हो जिससे , हम ऐसा कुछ करना सीखे देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखे देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखे। ।   गर्मी की तपती दोपहर में , पेड़ सदा देते हैं छाया है सुमन सुगंध सदा देते हैं , हम सबको फूलों की माला त्यागी तरुओं के जीवन से , हम परहित कुछ करना सीखे देश हमें देता है सब कुछ,  हम भी तो कुछ देना सीखे देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखे। ।   जो अनपढ़ है उन्हें पढ़ाएं , जो चुप है उनको वाणी दे पिछड़ गए जो उन्हें बढ़ाए , समरसता का भाव जगा दें हम मेहनत के दीप जलाकर , नया उजाला करना सीखे देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखे देश हमें देता है सब कुछ , हम भी तो कुछ देना सीखे देश हमें देता है सब कुछ। ।  

बॉलीवुड निर्माताओं का जिहादी एजेंडा

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भारत देश एक लोकतांत्रिक देश है,यहाँ सबको बोलने और रहने की आजादी है, यहाँ तक कि हम अपने देश को धर्मशाला भी मानते हैं जहाँ पर दूसरे देशो के नागरिकों के साथ-साथ देश के दुश्मनों को भी अच्छी देखभाल व ख़िलाफ़त की आज़ादी प्रदान की जाती है। इसी कड़ी में अगर हम फ़िल्मी दुनिया की बात करे तो यह गलत नही होगा कि भारत का सिनेमा तो क़ाबिले तारीफ है मगर भारत के सेक्युलर जमात, टुकड़े-टुकड़े गैंग, वामपंथीयो के द्वारा भारतीय सिनेमा मैं क्या-क्या जनता को एक एजेंडे के रूप परोसा जाता हैं,शायद ही इस देश की भोली जनता समझ पाये, भारत के लोग जब इन वैचारिक गिद्दों की फिल्में देखते हैं,तो उन्हें भारत हमेशा कठघरे मैं खड़ा दिखाई देता है, चाहें भारत-पाक पर बनी फिल्म हो या देश के सामाजिक मुद्दों से जुड़ी कोई फ़िल्म हो या भारत के अशान्त राज्य के ऊपर बनी फ़िल्म हो, इन फिल्मों मैं एक एजेंडा तय होता है, भारत देश की छवि को एक आपराधिक पृष्ठभूमि मैं फंसे हुए लोकतंत्र की तरह प्रस्तुत किया जाता है। बहुसंख्यक समुदाय को निशाना बनाना ही इनका मुख्य उद्देश्य होता है,इन फ़िल्म निर्माताओं का काम हिन्दू समाज को अतिवादी का रूप देना,उसके

उत्सव प्रिय समाज के उत्सवों में हिंसा की काली छाया क्यों?

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ऐसा नहीं है कि स्वयं शांति प्रिया मजहब के अनुयाई कहलाने वाले लोगों ने हमारे त्योहारों और उत्सवों के धार्मिक आयोजनों को लक्षित कर पहली बार उपद्रव किया हो। बल्कि उनके द्वारा इस प्रकार के कृत्यों की लंबी काली परंपरा का इतिहास रहा है फिर भी वर्तमान में हुई घटनाएं कुछ अलग स्पष्ट संकेत करती हुई थी दिखाई देती है। जब महमूद गजनबी और महमूद गौरी ने भारत पर हमला किया था तब हम कमजोर या कोई गरीब देश नहीं थे। हमारी संगठन ना होने की कमजोरी और एक दूसरे का सहयोग न करने की मानसिकता ने ही उन्हें सफल बनाया था।  किंतु जब अंग्रेज इस देश से गए तब हम बेहद गरीब और संगठन आभाव में कमजोर हुए थे। अंग्रेजों के शासन से मुक्ति के बाद से आज तक निरंतर हम जिहादी आग में झुलस रहे हैं किंतु इस आग के कारणों और समाधान को हम अब तक खोज नहीं पाए हैं। हाल ही में उत्सव के अवसर पर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, खरगोन, करौली, हरिद्वार, खंभात, लोहरदगा, बोकारो एवम जोधपुर आदि शहरों में जिहादी आग लग गई। हिंदू पक्ष पर आघात तो हुआ ही ऊपर से जिन्होंने आग लगाई उन्हें ही पीड़ित पक्ष बताने के प्रयास प्रारंभ हो गए। इस प्रकार की सोच देश की

गुरुपूजन हमारी श्रेष्ठ परम्परा

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शिक्षक की महिमा अपार है। उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, कवि, सन्त, मुनि आदि सब गुरु की अपार महिमा का बखान करते हैं। शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार या मूल अज्ञान’ और ‘रू’ का अर्थ ‘उसका निरोधक’ बताया गया है, जिसका अर्थ ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला’ अर्थात अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाने वाला ‘गुरु’ होता है। गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है। संत ने गुरु की अपार महिमा का वर्णन करते हुए बताता हैं कि:- सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड।तीन लोक न पाइये, अरु इकइस ब्रह्मण्ड।। अर्थात, सात द्वीप, नौ खण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रहाण्डों में सद्गुरु के समान हितकारी आप किसी को नहीं पायेंगे। संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने भी गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना है। वे अपनी कालजयी रचना रामचरित मानस में लिखते हैं: गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई। जों बिरंचि संकर सम होई।। अर्थात, भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता। महर्षि अरविंद ने शिक्षक की महिमा का बखान करते हुए कहा हैं कि ‘अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति

आधारहीन इतिहास

कांग्रेस शासन में 70 वर्षों से भारतीय इतिहास को कलंकित करने का भरसक प्रयास किया गया है! NCERT की 12वीं के इतिहास की किताब इंडियन हिस्ट्री पार्ट-टू के पेज 234 में लिखा गया है कि युद्ध के दौरान मंदिरों को ढहा दिया गया था बाद में शाहजहां और औरंगजेब ने इन मंदिरों की मरम्मत के लिए ग्रांट जारी किया था!मैकालेपंथी,वामपंथी इतिहासकारों ने कक्षा 12वीं की इतिहास की किताब में अत्याचारी एवं धर्मांध औरंगजेब को सेक्युलर बताया है! इन झूठे तथ्यों के पक्ष में आरटीआई द्वारा प्रमाण मांगने पर बताया गया कि "विभाग के पास इनके पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं है!" इतिहास में वीरता,शौर्य,त्याग, पराक्रम और वचन बद्धता के लिए ख्यात हिंदवा सूर्य महाराणा प्रताप को भी कांग्रेस शासन ने कमतर आंकने का हरसंभव प्रयास किया! विगत वर्षों में राष्ट्रीय मानबिंदुओं को कलंकित करने के कांग्रेस के प्रयासों के विरुद्ध भारतीय समाज में चेतना जाग्रत हुई है, परिणामस्वरूप इतिहास में हल्दीघाटी युद्ध में पढा़ए जा रहे गलत तथ्यों "महाराणा प्रताप की सेना को पीछे हटना पड़ा था।" हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून,1576 को मेवाड़ के हिंदु शा

भगवान वेदव्यास ऋषि पुत्र-1

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भगवान वेदव्यास यमुना के तट पर ऊंचे ऊंचे वृक्षों की कतारें फैली हुई थी। निकट ही एक छोटी सी झोपड़ी थी। किनारे के पास एक नौका थी। रेत पर मछली पकड़ने का सामान बिखरा पड़ा था। हवा का झोंका आता और अपने साथ मरी हुई मछलियों की तेज दुर्गंध ले फेल जाता था। वह झोपड़ी आसपास बसे हुए मछुआरों की संपत्ति थी। उस बस्ती के मुखिया का नाम दश था। उसने सत्यवती नामक एक बालिका को अपनी कन्या के समान पाला पोसा था। वह उसकी सेवा करती थी। उस एकाकी झोपड़ी में केवल वे दो ही रहते थे। अन्य झोपड़ियां वहां से दूर थी। मछुए की श्रवण शक्ति तेज थी। उसे बाहर से कुछ आवाज सुनाई दी। उसने अपनी कन्या को बुलाकर कहा- सत्यवती जाकर देख तो क्या बात है? सत्यवती ने दरवाजा खोला और बाहर देखा पिताजी वहां कोई है। कौन है? मैं नहीं बता सकती। मेरा देखा हुआ नहीं है। वह कैसा दिखाई देता है? उसने सिर पर बालों का जुड़ा बांध रखा है। उसके गले में जपमाला है। हाथ में दंड और कमंडलु है। पैर में खड़ाऊ है और शरीर पर वल्कल धारण किए हुए हैं। वृद्ध है या युवा? युवा हो सकता है। उसकी दाढ़ी और मूंछ छांव में से उसकी उम्र कैसे बता सकती हूं? सत्यवती ने हंसते हुए। क

महान प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद / पूण्य तिथि - 4 जुलाई 1902

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भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को सूर्योदय से 6 मिनट पूर्व 6 बजकर 33 मिनट 33 सेकेन्ड पर हुआ। भुवनेश्वरी देवी के विश्वविजयी पुत्र का स्वागत मंगल शंख बजाकर मंगल ध्वनी से किया गया। ऐसी महान विभूती के जन्म से भारत माता भी गौरवान्वित हुईं। नरेन्द्र की बुद्धी बचपन से ही तेज थी।बचपन में नरेन्द्र बहुत नटखट थे। भय, फटकार या धमकी का असर उन पर नहीं होता था। तो माता भुवनेश्वरी देवी ने अदभुत उपाय सोचा, नरेन्द्र का अशिष्ट आचरण जब बढ जाता तो, वो शिव शिव कह कर उनके ऊपर जल डाल देतीं। बालक नरेन्द्र एकदम शान्त हो जाते। इसमे संदेह नही की बालक नरेन्द्र शिव का ही रूप थे। माँ के मुहँ से रामायण महाभाऱत के किस्से सुनना नरेन्द्र को बहुत अच्छा लगता था।बालयावस्था में नरेन्द्र नाथ को गाङी पर घूमना बहुत पसन्द था। जब कोई पूछता बङे हो कर क्या बनोगे तो मासूमियत से कहते कोचवान बनूँगा। पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखने वाले पिता विश्वनाथ दत्त अपने पुत्र को अंग्रेजी शिक्षा देकर पाश्चातय सभ्यता में रंगना चाहते थे। किन्तु नियती ने तो कुछ खास प्रयोजन हेत

कोविड टीकाकरण की प्राथमिकता हिंदुत्व दर्शन के अनुरूप है

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हिन्दू शास्त्रों में परिवार में भोजन और अन्य सुविधाओं के वितरण को लेकर स्पस्ट निर्देश मिलते है। कुटुंब में बने भोजन में से गाय और कुत्ते की रोटी पहले अलग कर दी जाती है। अर्थात समस्त जगत का चिंतन, व्यस्था की जाती है। इसके बाद गुरु, अतिथि को भोजन का निर्देश है यानी आगन्तुक की सेवा। अतिथि देवो भवः को मानते है। इसके बाद घर के बुजुर्ग और रोगी का क्रम है। इसी क्रम में बच्चों का नम्बर है। फिर गृह स्वामी गृह स्वामिनी का नम्बर अर्थाय युवा का नम्बर है। भारत हिन्दू राष्ट्र की तरफ कदम दर कदम बढ़ रहा है। कुछ अपवाद और अड़चन को छोड़ दें तो वर्तमान में टीकाकरण की प्राथमिकता इसी क्रम में दिखाई देती है। अंतर केवल इतना है कि अभी बच्चों के लिए वैक्सीन का ट्रायल नहीं हो पाया है इस लिए वे फिलहाल प्राथमिकता के क्रम में पीछे है। यह भी पढ़े- 2021 अंत तक सम्पूर्ण भारत में किस तरह होगा वेक्सिनेशन भारत सरकार इस साल जनवरी से ‘ समग्र सरकार’ दृष्टिकोण के अंतर्गत टीकाकरण में कोविड रोगियों के प्रभावी प्रबंधन के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रयासों में मदद कर रही है।कोविड के वैश्विक प्रभाव वाली एक महामारी होने

राष्ट्रवादी सरकार के 7 वर्ष में हमने क्या पाया?

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मोदी सरकार को सात साल पूरे हो गए हैं। सात साल में पहली बार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुश्किल में घिरे दिख रहे हैं। शायद ये भी पहली बार है जब सरकार की ओर से इस मौके पर किसी विशेष आयोजन का ऐलान नहीं किया गया। लेकिन, पिछले सात सालों में मोदी सरकार ने कई ऐसे फैसले किए हैं जो चर्चा में रहे। सरकार के सात साल पूरे होने पर आइए जानते हैं ऐसे ही सात फैसलों के बारे में, जिन्होंने न सिर्फ सुर्खियां बटोरी बल्कि हर भारतीय पर असर डाला। क्या बदलाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर आकर कहा कि आज रात से 500 और 1000 रुपए के नोट बेकार हो जाएंगे। इन्हें बैंकों में जमा करने की छूट मिली। सरकार का पूरा जोर डिजिटल करेंसी बढ़ाने और डिजिटल इकोनॉमी बनाने पर शिफ्ट हो गया। मिनिमम कैश का कॉन्सेप्ट आया। नॉलेज पार्टः प्रधानमंत्री के फैसले से एक ही झटके में 85% करेंसी कागज में बदल गई। बैंकों में पुराने 500 और 1000 रुपए के नोट जमा हो सकते थे। सरकार ने 500 और 2000 के नए नोट जारी किए। इसे हासिल करने पूरा देश ही ATM की लाइन में लग गया। नोटबंदी के 21 महीने बाद रिजर्व बैंक की रिपोर्ट आई कि नोटबंदी के दौरान रिजर्व बै

आभिजात्य कवयित्रियाँ

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व्यंग्य बाण लेखक प्रवीण मकवाना        ये वे महिलाएँ होतीं हैं, जिनके घर दो से अधिक मेहमान आ जाएं तो खाना बाहर से ऑर्डर करना पड़ता है। वे सुंदर तो होतीं ही हैं, यदि कुछ नहीं होती, तो मेकअप बाबा का आशीष प्राप्त कर लेतीं हैं। अपनी साड़ी को नाभि से अँगुल-अष्ट नीचे बाँधती हैं ... इनका प्रिय रँग होता है - पिंक और ब्लैक। अधिसंख्य के ब्लाउज बैकलेस होते हैं। सोफे पर बैठी होतीं हैं, और इनके चित्त में एक विचार ( सतही विचार... आप इसे दार्शनिकता से जोड़ने का अपराध न करें ) कौंधता है। यही वह क्षण होता है जब इन्हें लगता है कि " मेरे भीतर कवयित्री होने की ठोस प्रतिभा है। " फिर क्या ... अपने बिट्टू की कॉपी का अंतिम पन्ना फाड़ देतीं हैं। चिड़िया, कोयल, पेड़-पत्ते, गुलाब, खुशबू, गलियाँ, अंज़ाम, अज़नबी, जैसे कई कई शब्द असहाय होकर पन्ने पर गिर पड़ते हैं। कुछ उद्भावना, कुछ स्मृति, कुछ आसपास का तो कुछ कवियों का चुराया चेप दिया जाता है ... बन जाता है एक टूटा फूटा गद्य। कच्चा माल तैयार है। अब यह कच्चा माल अपने सोना बाबू को व्हाट्सअप पर भेज दिया जाता है। भाई तो प्रतीक्षा में ही बैठा होता है। अरे बेटू ! यह तूने

इजरायल पर प्रधानमंत्री नेहरू की कथित विदेश नीति पर मुस्लिम तुष्टीकरण हावी..!

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संविधान सभा में 4 दिसंबर, 1947 को भारत की विदेश नीति पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा – अरब और यहूदियों के मामले का समाधान फिलिस्तीन कमेटी की माइनॉरिटी रिपोर्ट है. इस पर भारत सरकार ने हस्ताक्षर किये थे. हालाँकि, कमेटी की रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकतर देशों ने स्वीकार नहीं किया था. इसके अनुसार यहूदियों को फिलिस्तीन के अंतर्गत स्थानीय स्वायित्व दिए जाने का प्रस्ताव था. यानि यहूदियों के लिए एक स्वतंत्र देश की मांग को बाधित करने की दिशा में यह एक कदम था, जिसमें प्रधानमंत्री नेहरू भी शामिल हो गए थे. भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की फिलिस्तीन पर विशेष समिति का सदस्य था, जिसने फिलिस्तीन की 55 प्रतिशत जमीन इजरायल को देने का एक प्रस्ताव रखा था. समिति में भारत की तरफ से सदस्य अब्दुल रहमान ने इस विभाजन को एकदम नकार दिया और प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा मध्यस्ता का एक नया प्रस्ताव रखा गया. भारत ने अरब देशों को सुझाव दिया कि फिलिस्तीन को मुसलमान और यहूदियों का एक महासंघ बना दिया जाए. जिसे सभी मुस्लिम देशों विशेषकर इजिप्ट ने सिरे से ख़ारिज कर दिया. एक तरफ प्रधानमंत्री नेहरू की अजीबो-गरीब कल्पनाओं को मध्य ए

आतंक से पीड़ित विश्व को इज़राईल जैसा जीवट चाहिए

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जहां एक तरफ इस्लामिक आतंकवाद से पूरी दुनिया त्रस्त हैं और तथाकथित बुद्धिजीवी नव-वामपंथी इस सच को झुठलाने में लगे है। वे आज भी आतंकवाद का धर्म तलाश नहीं पाए है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने अवश्य हिम्मत करके इस्लामिक आतंक शब्द का उपयोग किया था। वहीं दूसरी तरफ इशलमिक आतंक से निपटने में जैसी जीवटता मात्र 87 लाख यहुदी आबादी वाले एक मात्र देश इजराइल ने दिखाई है, वैसी जीवटता दुनिया की कोई जाति/देश आज तक नहीं दिखा सका। इजरायल ने विगत दिनों में जिन हमास कमांडरों (इस्लामिक आतंकियों) और संचालकों को ढेर किया है उनमें से 14 खूंखार आतंकियों की बाकायदा तस्वीरें भी जारी की है। तस्वीरें जारी करते हुए कहा कि हमास के ये चौदह कमांडर अब इजरायल के लिए कोई खतरा नहीं रह गए हैं! इजरायल ने उन 14 हमास कमांडरों की लिस्ट भी जारी की है। ये वो कमांडर है जिन्होंने पिछले कुछ दिनों से पूरे देश की नाक में दम कर रखा था। किंतु इजरायल ने साथ ही ये भी कहा है कि अब इनमें से कोई भी इजरायल की नाक में दम नहीं कर सकता। क्योंकि इजरायली सुरक्षा बलों ने उन्हें ढेर कर दिया है। इजरायल द्वारा ढ़ेर किये गए इन 14 आतंकिय
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चाईनीज़ कोरोनावायरस: कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के 18 वैज्ञानिकों ने लिखा पत्र, WHO से चीन को मिले क्लीन चिट पर जताया संदेह जिस तरह से पूरी दुनिया यह जान चुकी है कि चाईनीज़ कोरोनावायरस की उत्पत्ति चीन से हुई है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने लगातार लापरवाही बरतते हुए या जानबूझकर पूरे विश्व में वायरस को फैलाने की नियत से इसकी जानकारियों को छुपाए रखा और वर्तमान में भी वायरस से संबंधित किसी भी जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर रहा है। इसके अलावा जिस तरह से कई अहम दस्तावेज और सबूत सामने आए हैं कि चीन कैसे जैविक हथियार बनाने का प्रयास कर रहा था और हथियार का उपयोग करने की साजिश रच रहा था। इन दस्तावेजों और रिपोर्ट के सामने आने के बाद यह बात भी कही जा रही है कि चाईनीज़ कोरोनावायरस कोई प्राकृतिक वायरस नहीं बल्कि चीन का एक जैविक हथियार है। इसकी उत्पत्ति को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन अर्थात डब्ल्यूएचओ ने चीन में जांच करने के बाद चीनी कम्युनिस्ट सरकार को पूरी तरह से क्लीनचिट दे दिया है। लेकिन इस मामले को लेकर दुनिया भर के वैज्ञानिकों की राय बिल्कुल अलग है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस बात का खंडन करने से इ

इसी वर्ष भारत में सम्पूर्ण वेक्सिनेशन हो जाएगा, रोडमेप जारी किया

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भारत में तबाही मचा रही कोरोना की दूसरी लहर से लड़ने के लिए केन्द्र सरकार युद्धस्तर पर कार्य कर रही है। इसी के साथ केंद्र सरकार ने 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगो को 2021 के अंत तक कोरोना टीकाकरण के अभियान को पूरा करने का रोडमैप प्रस्तुत  कर दिया है। इस साल के अंत तक 18 वर्ष की आयु से अधिक के सभी लोगो को कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज़ लग जाएंगे। जुलाई तक 51.6 करोड़  वैक्सीन के डोज़ की उपलब्धता होगी। जिस प्रकार से काँग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां वैक्सीन की कमी पर लगातार केन्द्र सरकार पर तंज कस रहे थे उसे देखते हुए केन्द्र सरकार ने देश के लोगो के प्रति अपनी निष्ठा और जिम्मेदारी को सबके सामने दर्शाया है ताकि सभी विपक्षियों को ये साफ समझ आये की केन्द्र सरकार देश की आम जनता की जान और माल को लेकर  बहुत  गंभीर है।  • वैक्सीन टास्क फ़ोर्स प्रमुख डॉ. पाल ने लगाया चीन के आकड़ो पर प्रश्नचिन्ह चीन ने जिस प्रकार से अपने देश मे कोरोना वैक्सीनेसन का आंकड़ा जाहिर किया है उसपर सवालिया निशान उठाते हुए वैक्सीन टास्क फ़ोर्स के प्रमुख डॉ. वी.के. पाल ने कहा कि अमेरिका ही पूरे विश्व मे एक अकेला ऐसा देश है

मंदिरों में आया करोड़ों का दान आखिर जाता कहाँ है?

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हर न जानने वाले व्यक्ति की यही शिकायत है कि हिंदू मंदिरों मे करोड़ों दान आता है पर ये पैसा हिंदुओं के कल्याण में खर्च क्यों नहीं करते..? सत्य जानना है तो कानून क्या है पढ़िये... कड़वा अनजान सच "हिंदू धर्म दान एक्ट" 1951 "The Hindu Religious and Charitable Endowment Act of 1951” इस एक्ट के जरिए कांग्रेस ने राज्यों को अधिकार दे दिया कि वो किसी भी सनातनी मंदिर को सरकार के अधीन कर सकते हैं। इस एक्ट के बनने के बाद से आंध्र प्रदेश सरकार नें लगभग 34,000 मंदिर को अपने अधीन ले लिया था। कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु ने भी सनातनी मंदिरों को अपने अधीन कर दिया था। इसके बाद शुरू हुआ मंदिरों के चढ़ावे में भ्रष्टाचार का खेल। उदाहरण के लिए तिरुपति बालाजी मंदिर की सालाना कमाई लगभग 3500 करोड़ रूपए है। मंदिर में रोज बैंक से दो गाड़ियां आती हैं और मंदिर को मिले चढ़ावे की रकम को ले जाती हैं। इतना फंड मिलनें के बाद भी तिरुपति मंदिर को सिर्फ 7% फंड वापस मिलता है, रखरखाव के लिए। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री YSR रेड्डी ने तिरुपति की 7 पहाड़ियों में से 5 को सरकार को देने का आदेश

दृढ़ संकल्प, सजगता, धैर्य व सामूहिक प्रयासों से कोरोना संकट पर निश्चित ही विजय प्राप्त होगी – डॉ. मोहन भागवत

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नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने कहा कि दृढ़ संकल्प, सतत प्रयास व धैर्य के साथ भारतीय समाज कोरोना पर निश्चित ही विजय प्राप्त करेगा. यह समय गुण-दोषों के बारे में चर्चा करने का नहीं है, बल्कि इस समय समाज के सभी वर्गों को एक साथ मिलकर सामूहिक प्रयास करने होंगे ताकि इस संकट से हम पार पा सकें. सरसंघचालक ‘हम जीतेंगे— पाज़िटीविटी अनलिमिटेड’ व्याख्यानमाला के पांचवें व अंतिम दिन संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि सब लोग परस्पर एक टीम बन कर काम करेंगे तो सामूहिकता के बल पर हम अपनी और समाज की गति बढ़ा सकते हैं. इस समय अपने सारे मतभेद भुलाकर हमें एक साथ मिलकर काम करना होगा. उन्होंने कहा कि पहली लहर के बाद हम गफलत में आ गए और अब तीसरी लहर आने की बात हो रही है. इससे अर्थव्यवस्था, रोजगार, शिक्षा आदि पर गहरा प्रभाव पड़ा है. आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था पर और असर पड़ सकता है, इसलिए इसकी तैयारी हमें अभी से करनी होगी. भविष्य की इन चुनौतियों की चर्चा से घबराना नहीं है, बल्कि ये चर्चा इसलिए जरूरी है ताकि हम आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए समय रहते तैयारी कर सक

5 मई कार्ल मार्क्स का जन्म दिन, जिसके विचार ने दुनियां में 10 करोड़ लोगों की हत्या की

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आज 5 मई को वैश्विक इतिहास के सबसे बुरे और क्रूरतम विचार को रखने वाले इंसानों में से एक कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है। कार्ल मार्क्स के विचार की वजह से बीते एक सदी में विश्व में 10 करोड़ से अधिक लोगों की हत्या की गई। इन हत्याओं से कार्ल मार्क्स के दर्शन का सीधा सा संबंध है। सिर्फ हत्याएं ही नहीं बल्कि रूस और चीन से लेकर वियतनाम कंबोडिया उत्तर कोरिया और तमाम कम्युनिस्ट देशों में स्थित गुलामों के कारावास और डिटेंशन कैंप यह सभी नर्क रूपी विचार कार्ल मार्क्स के दर्शन साम्यवाद की ही देन है। साम्यवाद वही है जिसे हम वामपंथी या कम्युनिज्म के नाम से जानते हैं। और इसी साम्यवाद या कम्युनिज्म की वजह से विश्व भर में अरबों लोग नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए, करोड़ों लोग मारे गए और लाखों लोग आज भी अपनी बुरी और पीड़ित जिंदगी जी रहे हैं। साम्यवाद का विचार दुनिया को देने वाले कार्ल मार्क्स का जन्म आज से 203 वर्ष पूर्व वर्ष 1818 में जर्मनी में हुआ था। कार्ल मार्क्स आधुनिक विश्व इतिहास के सबसे विवादित विचारक में से एक है। जब हेनरिक और हेनरिटे मार्क्स ने अपने बेटे को जन्म दिया था तब उन्हें जरा सा भी यहां अंदाज