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निधि समर्पण राम काज

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लिए फिरते है सिर दसों यहां अब रावण रोया करते है, साबित करते यह धरा राम की, छिप-छिप मारीच बनते है। अब चली बयारें अवध चली राम काज जो करना है, नव खिली बसंत हर चेहरे पर नव भान आलोकित होना है। चहुँओर ऋषि मुनि घूम रहे घट रामलला लिए झूम रहे शबरी निषाद की कुटियाओं से झोली मोहरों से खूब भरे। साबित है यह देश राम का  यहां घट-घट बसते रघुवर है वानर टोली हर देहरी पर लेती निधि समर्पण है। खूब गिलहरियां उमंगित है प्रभु भक्तन पंथ निहार रही हम भी कुछ-कुछ अर्पण कर दे दादी पर छाप जो अमिट रही। ऋषि मुनि आह्लादित हर द्वार हर गली अयोध्या हुई जाती है भक्त राम के झोली भरते हर घर दीवाळी हुई जाती है। ....."सागर",महेंद्र थानवी। जानिए भारत के सबसे अयोग्य नेताओ के बारे में