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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हल्दीघाटी का सूर

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हल्दीघाटी का सूर! ......................... उस दिन प्राची की गोदी से, हँसता दिनकर निकला था, उदयांचल की ओर-छोर ने, भीषण लावा उगला था,(१) हर कोना मेवाड़ धरा का, मन ही मन था हर्षाया , केसरिया रंग उजली आभा, से पंकज था मुस्काया,(२) चहक उठे थे विहग देखकर, मृदुल रश्मियाँ दिनकर की, मानों बिन मांगे ही पूरी, अभिलाषा होती मन की,(३) महक रही थी गिरि घाटियाँ, सौरभ से भरकर सारी, रणवीरों के रक्त खेल की, थी घाटी में तैयारी,(४) समरभूमि में रणबाजा सुन, रणचंड़ी मन हर्षायी, पीने को अरिवक्ष रुधिर को, कर खप्पर ले मुस्कायी,(५) रक्त प्यास ले भैरव ने भी, सिंह नाद अट्हास किया, मुगल रक्त को चाट चाट कर, शत्रु का उपहास किया।(६) कृष्ण पखेरु नील गगन में, खुशियों से भर मड़राते, और सियार,भेड़िये,पेचक, रणभेरी सुन इतराते,(७) हल्दीघाटी की माटी से, नील गगन हो पीत उठा, रण खेलारो के पगतल से उड़ती रज छा गई घटा,(८) चमक रही वीरों की छवियाँ, वीर प्रसूता रज कण में, होड़ लगी थी वीर सुतों में, माँ को शीश समर्पण में,(९) बाँध शीश केसरिया बाना, कमरबंद्ध तलवार चढ़ा, एक हाथ में भाला बरछी, दूजे कर में ढाल मढ़ा,(१०) किसी

एक घुमक्कड़ फक्कड़

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Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) #यहाँ_दीपक_नहीं_जीवन_जलते_हैं... आज जो लिख रहा हूँ... मुझे अपने पर विश्वास नहीं कि इन संवेदनाओं को शब्द दे भी पाऊँगा या नहीं..?? इसीलिए केवल पढ़ने से समझ नहीं आएगा.. और महसूस करने पर कुछ शेष नहीं रहेगा...!! क्योंकि शब्द विचारों को व्यक्त कर सकते हैं किंतु संवेदनाओं को नहीं..!! लेकिन यदि ईश्वर है तो आज मेरी सहायता ज़रूर करेगा। हमारे साथ ही एक प्रचारक हैं “फक्कड़”... जो कुछ हैं इसी नाम की तरह ही हैं। (संघ का प्रचारक अविवाहित रहता है, संघ जहाँ और जिस काम में भेजता है.. अपने पूरे सामर्थ्य से वही काम करता है) हमेशा हँसता, खिल-खिलाता... निश्छल व्यक्तित्व.. निराशा भरे वातावरण में आशा और साहस भरने वाला साहचर्य.. जीवंतता की प्रतिमूर्ति.. अल्हड़पन और मौज में उनका कोई सानी नहीं...!! अपने माता-पिता के एकलौते पुत्र, माँ का कुछ समय पहले कैन्सर से लड़ते-लड़ते देहावसान हो गया..पिताजी मानसिक पीड़ा के शिकार। घर में कोई देखरेख करने वाला नहीं... सब भगवान भरोसे...!!! कुछ दिनों पहले अपनी प्रचारक टोली के साथ ही कहीं घूमने गये थे। धार्मिक स्थल पर गये.. इसलिए पहुँचते ही एक पंड

समय को बांधने वाले महावीर जी

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22 नवम्बर/जन्म-दिवस” संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री महावीर जी का जन्म 22 नवम्बर, 1951 को  वीरों की भूमि पंजाब में मानसा जिले के बुढलाड़ा में हुआ था। श्री दीवान चंद छाबड़ा उनके पिता और श्रीमती कृष्णा देवी उनकी माता जी थीं। विभाजन के बाद उनका परिवार बुढलाड़ा में आकर बस गया। श्री दीवान चंद जी पुराने स्वयंसेवक थे। बुढलाड़ा में भी वे नगर कार्यवाह के नाते काम करते रहे। अतः संघ का विचार महावीर जी को घर में ही प्राप्त हुआ। इसके बाद में शाखा जाने पर ये विचार क्रमशः संस्कार बन गये और संघ का काम ही उनके मन और प्राण की धड़कन बन गया।  वीरांगना झलकारी बाई महावीर जी की प्रारम्भिक शिक्षा बुढलाड़ा में ही हुई। वहां पर ही वे स्वयंसेवक बने। इसके बाद उन्होंने मानसा से बी.एस-सी. तथा फिर पंजाब वि.वि. चंडीगढ़ से सांख्यिकी में प्रथम श्रेणी में एम.एस-सी. किया। शिक्षा पूरी कर 1972 में वे प्रचारक बन गये। उनके प्रचारक जीवन का काफी भाग हिमाचल प्रदेश में बीता। मंडी व शिमला में जिला प्रचारक के बाद वे कांगड़ा में विभाग प्रचारक रहे। इसके बाद उन्हें हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर को मिलाकर बनाये गये ‘हिमगिरि’ प्रांत के सहप्

वीरांगना झलकारी बाई

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“22 नवम्बर/जन्म-दिवस” भारत की स्वाधीनता के लिए 1857 में हुए संग्राम में पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कन्धे से कन्धा मिलाकर बराबर का सहयोग दिया था। कहीं-कहीं तो उनकी वीरता को देखकर अंग्रेज अधिकारी एवं पुलिसकर्मी आश्चर्यचकित रह जाते थे। ऐसी ही एक वीरांगना थी झलकारी बाई, जिसने अपने वीरोचित कार्यों से पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया। झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर, 1830 को ग्राम भोजला (झांसी, उ.प्र.) में हुआ था। उसके पिता मूलचन्द्र जी सेना में काम करते थे। इस कारण घर के वातावरण में शौर्य और देशभक्ति की भावना का प्रभाव था। घर में प्रायः सेना द्वारा लड़े गये युद्ध, सैन्य व्यूह और विजयों की चर्चा होती थी। मूलचन्द्र जी ने बचपन से ही झलकारी को अस्त्र-शस्त्रों का संचालन सिखाया। इसके साथ ही पेड़ों पर चढ़ने, नदियों में तैरने और ऊँचाई से छलांग लगाने जैसे कार्यों में भी झलकारी पारंगत हो गयी। एक बार झलकारी जंगल से लकड़ी काट कर ला रही थी, तो उसका सामना एक खूँखार चीते से हो गया। झलकारी ने कटार के एक वार से चीते का काम तमाम कर दिया और उसकी लाश कन्धे पर लादकर ले आयी। इससे गाँव में शोर मच गया। एक बार

संस्कृत के श्लोक में छुपा गणितीय ज्ञान

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देश में एक ऐसा वर्ग बन गया है जो कि संस्कृत भाषा से तो शून्य हैं परंतु उनकी छद्म धारणा यह बन गयी है कि संस्कृत भाषा में जो कुछ भी लिखा है वे सब पूजा पाठ के मंत्र ही होंगे जबकि वास्तविकता इससे भिन्न है। देखते हैं - "चतुरस्रं मण्डलं चिकीर्षन्न् अक्षयार्धं मध्यात्प्राचीमभ्यापातयेत्। यदतिशिष्यते तस्य सह तृतीयेन मण्डलं परिलिखेत्।" बौधायन ने उक्त श्लोक को लिखा है ! इसका अर्थ है - यदि वर्ग की भुजा 2a हो तो वृत्त की त्रिज्या r = [a+1/3(√2a – a)] = [1+1/3(√2 – 1)] a ये क्या है ? अरे ये तो कोई गणित या विज्ञान का सूत्र लगता है शायद ईसा के जन्म से पूर्व पिंगल के छंद शास्त्र में एक श्लोक प्रकट हुआ था।हालायुध ने अपने ग्रंथ मृतसंजीवनी मे , जो पिंगल के छन्द शास्त्र पर भाष्य है , इस श्लोक का उल्लेख किया है - परे पूर्णमिति। उपरिष्टादेकं चतुरस्रकोष्ठं लिखित्वा तस्याधस्तात् उभयतोर्धनिष्क्रान्तं कोष्ठद्वयं लिखेत्। तस्याप्यधस्तात् त्रयं तस्याप्यधस्तात् चतुष्टयं यावदभिमतं स्थानमिति मेरुप्रस्तारः। तस्य प्रथमे कोष्ठे एकसंख्यां व्यवस्थाप्य लक्षणमिदं प्रवर्तयेत्। तत्र परे कोष्ठे यत् वृत्तसंख्याजातं तत

डूबती कांग्रेस के बिलबिलाते चाटुकार

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विकल्पहीनता के चलते देशवासी न चाहते हुए भी विदेशी सोनिया माईनो के संगठन को ढ़ोते रहे थे। राजनैतिक, बौद्धिक रूप से सर्व सामर्थ्यवान वर्ग भी सता की मलाई के लालच में प्रतिपल अपमानित होकर भी सोनिया, राहुल एवं प्रियंका के चरण चाटुकार बनकर उनकी झूठी जय जयकार कर अपना हेतु सिद्ध करते रहे!  लेकिन अब कांग्रेस राजनीतिक रूप से मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई है। उसकी असहाय स्थिति का फायदा उठाकर कपिल सिब्बल जैसे थूककर चाटने वाले चाटुकारों में भी बोलने का साहस पैदा हो गया है! बिहार सहित अन्य राज्यों के उपचुनावों में कांग्रेस की दुर्गति पर आंसू बहाते हुए सिब्बल जैसा चापलूस विलाप कर रहा है। उसका कहना है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी में लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं होने के कारण वर्किंग कमेटी में शामिल सदस्य बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं! सत्य तो है लेकिन देरी से बोला गया है। शिक्षाविद गिजुभाई बधेका ढोंगी (कपिल सिब्बल) कह रहा हैं, कि जब पिछले 6 वर्षों से कांग्रेस पार्टी ने आत्ममंथन नहीं किया तो अब कौन आशा करे कि वो ऐसा करेगी। सत्य भी है संगठनात्मक रूप से पार्टी में क्या गड़बड़ी है, ये सभी को पता है। इसका जवाब

शिक्षाविद गिजुभाई बधेका: 15 नवम्बर जन्म दिवस विशेष

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गिजुभाई बधेका को गुजरात में ‘मूछालीमाँ’ अर्थात ‘मूछोंवाली माँ’ के नाम से जाना जाता है। शिशु व बाल शिक्षा के संबंध में अनेक प्रयोग कर प्रचलित परम्परा से हटकर नई व्यवस्था के साथ शिक्षा पद्धति का आविस्करण किया। कहानी, बाल अभिनय गीत, नाटक और खेल के माध्यम से पढ़ाने की पद्धति प्रस्थापित की। बच्चों के लिए शिक्षक, लेखक, अभिनेता, कवि बने।। उत्तम शिक्षक निर्माण के लिए बाल अध्यापन मंदिर खोले। समाज में जागृति के लिए अभियान चलाया। माता-पिता, शिक्षकों और सरकार को बच्चों के प्रति दायित्व बोध कराया। पढ़ाई और अनुशासन के नाम पर हो रहे जुल्मों से बच्चों को स्वतंत्रता दिलवाने के लिए आन्दोलन कर एक नए मार्ग का निर्माण किया। गुजरात राज्य के सौराष्ट्र विस्तार के अमरेली जिल्ले के चीतल स्थान में 15 नवंबर, 1885 में उनका जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम ‘गिरिजाशंकर भगवानजी बधेका’ था। माता का नाम काशीबा था। महात्मा गांधी की तरह वकालत के झूठे दावों में ज्यादा रूचि नहीं टिकी। अपने पुत्र को उत्तम शिक्षा देने के लिए स्वयं एक शिक्षा शास्त्री बन गए। 23 जून, 1939 को हमने अनूठा बाल शिक्षा शास्त्री खो दिया। गिजुभाई की बालशिक्षा क

भगवान राम का अयोध्या पुनरागमन और राज्याभिषेक

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तापस वेशधारी राम, जनकसुता सीता और सौमित्र लक्ष्मण को पुष्पक से उतरता देख शत्रुघ्न, कौशल्या-सुमित्रा-कैकेयी सहित सभी माताएं, गौतम, वामदेव, जाबालि, काश्यप, वशिष्ठ पुत्र सुयज्ञ सहित आठों मंत्री लपकते हुए आगे को बढ़े। परन्तु राम निश्चल खड़े रहे। उनकी दृष्टि अन्य किसी को नहीं देख रही थी, वे तो दूर टकटकी लगाए अनुज भरत को ही देख पा रहे थे। वे भरत जो राम को देख इतने विभोर थे कि पगों को आगे बढ़ाना ही भूल चुके थे। राम, भरत को इतनी तल्लीनता से देख रहे थे कि राम की ओर बढ़ रहे अन्य सभी लोग सकुचाए से खड़े रह गए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भी प्रेम के वशीभूत हो सामान्य मर्यादा का ध्यान न रख सके। अपने गुरुजनों, माताओं को यूहीं खड़ा छोड़ वे भरत की ओर बढ़ चले। भरत ने जब श्रीराम को अपनी ओर आता देखा तो उनकी तन्द्रा टूटी और वे जैसे गौधूलि बेला में कोई बछड़ा अपनी गौ माता को वन से वापस आता देख तड़पता-उछलता हुआ पास भागा चला आता है, राम के निकट दौड़े चले आये। श्रीराम ने अपनी भुजाएं फैला दी, परन्तु भरत ने राम की बांहों का मोह त्याग उनके चरण पकड़ लिए। कितने बड़भागी हैं वे, जिन्हें राम की खुली बाहें मिलती हैं, और

क्या आप जानते है विश्व की सबसे ज्यादा समृद्ध भाषा कौनसी है ?

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अंग्रेजी में 'THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG' एक प्रसिद्ध वाक्य है। जिसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए हैं। मज़ेदार बात यह है की अंग्रेज़ी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उप्लब्ध हैं जबकि इस वाक्य में 33 अक्षरों का प्रयोग किया गया है। जिसमें चार बार O और A, E, U तथा R अक्षर का प्रयोग क्रमशः 2 बार किया गया है। इसके अलावा इस वाक्य में अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। जहां वाक्य T से शुरु होता है वहीं G से खत्म हो रहा है।  अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढिये।- क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:। तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।  अर्थात: पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन ?? राजा मय ! जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं। श्लोक को ध्यान से पढ़ने पर आप पाते हैं की संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस श्लोक में दिखाई दे रहे हैं वो भी क्रमानुसार। यह खूबसूरती केवल और केवल संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा में ही देखने को मिल सकती है!  पूरे विश्व म

पाताल लोक "अभिनेता आसिफ बसरा हिमाचल प्रदेश होम में मृत पाए गए

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  अभिनेता आसिफ बसरा की मौत का कारण जानने के लिए एक फोरेंसिक टीम पहुंची है। हिमाचल प्रदेश पुलिस ने कहा कि अभिनेता आसिफ बसरा हिमाचल प्रदेश के मैकलोडगंज में मृत पाए गए। पुलिस ने कहा है, अभिनेता आसिफ बसरा हिमाचल प्रदेश के मैकलोडगंज में मृत पाए गए। एक फोरेंसिक टीम यह पता लगाने के लिए पहुंची है कि उसकी मौत कैसे हुई। पुलिस ने कहा कि  वे जांच कर रहे हैं कि क्या यह आत्महत्या से मौत थी?  दिपावली विशेष ग्रीटिंग आसिफ की आयु 53 वर्ष थी। समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने बताया कि अभिनेता के पास मैक्लोडगंज में लीज पर एक संपत्ति थी। यह पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है। वे अक्सर हिल स्टेशन पर जाया करते थे। हाल ही में थ्रिलर श्रृंखला पाताल लोक में अपनी भूमिका के लिए जाने जाने वाले, श्री बसरा बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी दिखाई दिए थे। जिसमें 1993 के मुंबई ब्लास्ट, 2002 के गुजरात दंगों परज़ानिया और काई पो चे पर एक फिल्म भी शामिल है। उन्होंने भारत और विदेश में कई नाटकों में अभिनय किया, उन्होंने अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू थिएटर प्रस्तुतियों में अभिनय किया। श्री बसरा का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती में 1967 में

Diwali imeges आपके लिए दीपावली ग्रीटिंग कार्ड्स

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उत्सव के दिन ग्रीटिंग कार्ड द्वारा एक दूसरे को शुभकामना देना जकल का चलन हो गया है। इस लिए हम आपके लिए लाए है कुछ विशेष कार्ड्स वैसे हिन्दू त्योहार पर व्यक्तिगत मिलकर शुभकामना देना, बडों से आशीर्वाद लेना ही ठीक रहता है। लेकिन कोरोना काल में फिलहाल कार्ड से काम चलाये।

दीपावली पर रंगोली से हर घर द्वार सजेंगे

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दीपावली का अवसर हो और रंगोली का जिक्र न हो यह कैसे सम्भव है। हर दिवाली से पहले घर की बेटियां, बहुएं उत्साह के साथ तैयारी करके रखती है कि इसबार रंगोली कैसी बनेगी। हफ़्तों तक रंगोली का चिंतन और चर्चा चलती है। आइए आपके साथ कुछ विचार और डिजाइन साझा करते है। भारत उत्सव का देश है। यहां वर्ष भर कोई न कोई उत्सव चलता ही रहता है। उत्सवों को मनाने की यहां अपनी एक परंपरा है।  उत्सव हो और  रंगोली ना बनाई जाए तो उत्सव अधूरा माना जाता है। उत्सव मानव जीवन में उत्साह को प्रदर्शित करने का एक अनूठा प्रयोग है। भारतीय जीवन उत्साह से भरा हुआ है। यहां जीवन के प्रति दर्शन दुनिया में भिन्न प्रकार का है। जीवन भर भौतिक सुख संपदा के पीछे ना भागकर केवल अपने आनंद और सुख से जीवन व्यतीत करने की ओर ध्यान रहता है। यह अलग तरह की फिलॉसफी है। भारत के उत्सवों में भिन्नताए तो दिखाई देती है। स्थान विशेष की विशेषताएं भी दिखाई देती है। मनाने के तरीकों में विभिन्नताए भी पाई जाती है। किंतु कुछ बातें सामान्य रूप से एक जैसी दिखाई देती है, जो यह सिद्ध करती है कि संपूर्ण राष्ट्र एकता के सूत्र में बंधा हुआ है। 1) सबसे पहली बात है उत्स