एकात्म दर्शन
राजस्थान में जब किसान हल जोतता है तो स्यावड़ माता का स्मरण करते हुए एक पद गाते है। इसी पद में हमारा एकात्म मानव दर्शन आ जाता है। इस भाव के जागरण के साथ ही व्यक्ति का अहम स्वयम् से उठकर परिवार,परिवार से समाज,समाज से राष्ट्र और उससे भी व्रहत होकर पूरी सृष्टि तक व्याप्त हो जाता है। स्यावड़ माता सतकारी दाना-फाका भोत। करी बैण-सुभासणी रै भाग रो देई चीड़ी-कमेडी रै भाग रो देई ध्याणी अर जवाई रो देई घर आयो साधू भूखो न जा बामण दादो धप'र खा सुन्ना डांगर खा धापै चोर-चकोर लेज्या आपै करुंआ रै भेले ने देई सुणीजै माता सूरी छत्तीस कौमां पूरी फेर तेरी बखारी में ऊबरै तो मेरे टाबरां नै देई स्यावड़ माता सत की दाता। कितना विशाल हृदय है हम हिंदुओं का? स्यावड़ माता से किसान ने न केवल पुरे मानव समाज के लिए बल्कि समस्त जीवों के लिए माँगा।यहां तक की चोर चकोर के लिए भी सद्भावना से माँगा। यह भावना उसी समान है जो वेदों की ऋचाओं में ऋषि गाते है।वेद की ऋचा का शब्दार्थ सामान्य मांगने वाले की भा