संदेश

जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुरुपूजन हमारी श्रेष्ठ परम्परा

चित्र
शिक्षक की महिमा अपार है। उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, कवि, सन्त, मुनि आदि सब गुरु की अपार महिमा का बखान करते हैं। शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार या मूल अज्ञान’ और ‘रू’ का अर्थ ‘उसका निरोधक’ बताया गया है, जिसका अर्थ ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला’ अर्थात अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाने वाला ‘गुरु’ होता है। गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है। संत ने गुरु की अपार महिमा का वर्णन करते हुए बताता हैं कि:- सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड।तीन लोक न पाइये, अरु इकइस ब्रह्मण्ड।। अर्थात, सात द्वीप, नौ खण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रहाण्डों में सद्गुरु के समान हितकारी आप किसी को नहीं पायेंगे। संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने भी गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना है। वे अपनी कालजयी रचना रामचरित मानस में लिखते हैं: गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई। जों बिरंचि संकर सम होई।। अर्थात, भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता। महर्षि अरविंद ने शिक्षक की महिमा का बखान करते हुए कहा हैं कि ‘अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति

आधारहीन इतिहास

कांग्रेस शासन में 70 वर्षों से भारतीय इतिहास को कलंकित करने का भरसक प्रयास किया गया है! NCERT की 12वीं के इतिहास की किताब इंडियन हिस्ट्री पार्ट-टू के पेज 234 में लिखा गया है कि युद्ध के दौरान मंदिरों को ढहा दिया गया था बाद में शाहजहां और औरंगजेब ने इन मंदिरों की मरम्मत के लिए ग्रांट जारी किया था!मैकालेपंथी,वामपंथी इतिहासकारों ने कक्षा 12वीं की इतिहास की किताब में अत्याचारी एवं धर्मांध औरंगजेब को सेक्युलर बताया है! इन झूठे तथ्यों के पक्ष में आरटीआई द्वारा प्रमाण मांगने पर बताया गया कि "विभाग के पास इनके पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं है!" इतिहास में वीरता,शौर्य,त्याग, पराक्रम और वचन बद्धता के लिए ख्यात हिंदवा सूर्य महाराणा प्रताप को भी कांग्रेस शासन ने कमतर आंकने का हरसंभव प्रयास किया! विगत वर्षों में राष्ट्रीय मानबिंदुओं को कलंकित करने के कांग्रेस के प्रयासों के विरुद्ध भारतीय समाज में चेतना जाग्रत हुई है, परिणामस्वरूप इतिहास में हल्दीघाटी युद्ध में पढा़ए जा रहे गलत तथ्यों "महाराणा प्रताप की सेना को पीछे हटना पड़ा था।" हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून,1576 को मेवाड़ के हिंदु शा

भगवान वेदव्यास ऋषि पुत्र-1

चित्र
भगवान वेदव्यास यमुना के तट पर ऊंचे ऊंचे वृक्षों की कतारें फैली हुई थी। निकट ही एक छोटी सी झोपड़ी थी। किनारे के पास एक नौका थी। रेत पर मछली पकड़ने का सामान बिखरा पड़ा था। हवा का झोंका आता और अपने साथ मरी हुई मछलियों की तेज दुर्गंध ले फेल जाता था। वह झोपड़ी आसपास बसे हुए मछुआरों की संपत्ति थी। उस बस्ती के मुखिया का नाम दश था। उसने सत्यवती नामक एक बालिका को अपनी कन्या के समान पाला पोसा था। वह उसकी सेवा करती थी। उस एकाकी झोपड़ी में केवल वे दो ही रहते थे। अन्य झोपड़ियां वहां से दूर थी। मछुए की श्रवण शक्ति तेज थी। उसे बाहर से कुछ आवाज सुनाई दी। उसने अपनी कन्या को बुलाकर कहा- सत्यवती जाकर देख तो क्या बात है? सत्यवती ने दरवाजा खोला और बाहर देखा पिताजी वहां कोई है। कौन है? मैं नहीं बता सकती। मेरा देखा हुआ नहीं है। वह कैसा दिखाई देता है? उसने सिर पर बालों का जुड़ा बांध रखा है। उसके गले में जपमाला है। हाथ में दंड और कमंडलु है। पैर में खड़ाऊ है और शरीर पर वल्कल धारण किए हुए हैं। वृद्ध है या युवा? युवा हो सकता है। उसकी दाढ़ी और मूंछ छांव में से उसकी उम्र कैसे बता सकती हूं? सत्यवती ने हंसते हुए। क

महान प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद / पूण्य तिथि - 4 जुलाई 1902

चित्र
भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को सूर्योदय से 6 मिनट पूर्व 6 बजकर 33 मिनट 33 सेकेन्ड पर हुआ। भुवनेश्वरी देवी के विश्वविजयी पुत्र का स्वागत मंगल शंख बजाकर मंगल ध्वनी से किया गया। ऐसी महान विभूती के जन्म से भारत माता भी गौरवान्वित हुईं। नरेन्द्र की बुद्धी बचपन से ही तेज थी।बचपन में नरेन्द्र बहुत नटखट थे। भय, फटकार या धमकी का असर उन पर नहीं होता था। तो माता भुवनेश्वरी देवी ने अदभुत उपाय सोचा, नरेन्द्र का अशिष्ट आचरण जब बढ जाता तो, वो शिव शिव कह कर उनके ऊपर जल डाल देतीं। बालक नरेन्द्र एकदम शान्त हो जाते। इसमे संदेह नही की बालक नरेन्द्र शिव का ही रूप थे। माँ के मुहँ से रामायण महाभाऱत के किस्से सुनना नरेन्द्र को बहुत अच्छा लगता था।बालयावस्था में नरेन्द्र नाथ को गाङी पर घूमना बहुत पसन्द था। जब कोई पूछता बङे हो कर क्या बनोगे तो मासूमियत से कहते कोचवान बनूँगा। पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखने वाले पिता विश्वनाथ दत्त अपने पुत्र को अंग्रेजी शिक्षा देकर पाश्चातय सभ्यता में रंगना चाहते थे। किन्तु नियती ने तो कुछ खास प्रयोजन हेत