गुरुपूजन हमारी श्रेष्ठ परम्परा

शिक्षक की महिमा अपार है। उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, कवि, सन्त, मुनि आदि सब गुरु की अपार महिमा का बखान करते हैं। शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार या मूल अज्ञान’ और ‘रू’ का अर्थ ‘उसका निरोधक’ बताया गया है, जिसका अर्थ ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला’ अर्थात अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाने वाला ‘गुरु’ होता है। गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है।
संत ने गुरु की अपार महिमा का वर्णन करते हुए बताता हैं कि:-
सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड।तीन लोक न पाइये, अरु इकइस ब्रह्मण्ड।।
अर्थात, सात द्वीप, नौ खण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रहाण्डों में सद्गुरु के समान हितकारी आप किसी को नहीं पायेंगे।
संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने भी गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना है। वे अपनी कालजयी रचना रामचरित मानस में लिखते हैं:
गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई।

जों बिरंचि संकर सम होई।।
अर्थात, भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता।
महर्षि अरविंद ने शिक्षक की महिमा का बखान करते हुए कहा हैं कि ‘अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।
सन्त कहते हैं कि गुरु के वचनों पर शंका करना शिष्यत्व पर कलंक है। जिस दिन शिष्य ने गुरु को मानना शुरू किया उसी दिन से उसका उत्थान शुरू हो जाता है और जिस दिन से शिष्य ने गुरु के प्रति शंका करनी शुरू की, उसी दिन से शिष्य का पतन शुरू हो जाता है। सद्गुरु एक ऐसी शक्ति है जो शिष्य की सभी प्रकार के ताप-शाप से रक्षा करती है। शरणागत शिष्य के दैहिक, दैविक, भौतिक कष्टों को दूर करने एवं उसे बैकुंठ धाम में पहुंचाने का दायित्व गुरु का होता है। इसलिए हमें अपने गुरू का पूर्ण सम्मान करना चाहिए और उनके द्वारा दिए जाने वाले ज्ञान का भलीभांति अनुसरण करना चाहिए। कोई भी ऐसा आचरण कदापि नहीं करना चाहिए, जिससे गुरु यानी शिक्षक की मर्यादा अर्थात छवि को धक्का लगता है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही वेद व्यास का जन्म हुआ था. वेद व्यास को ही वेदों का रचयिता माना जाता है. हिंदी कैलेंडर से वेद व्यास की जन्मतिथि को ही गुरुपूर्णिमा मनाई जाती है. इस दिन गुरुओं के पूजन की परंपरा रही है।भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में प्रगाढ़ आस्था रखने वाले प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने आज गुरु पूर्णिमा और धम्म दिवस पर देशवासियों को बधाई दी है। पीएम ने इस अवसर पर भगवान बुद्ध को भी याद किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जहां ज्ञान है, वहीं पूर्णिमा है, वहीं पूर्णता है. ज्ञान संस्कार का प्रतीक है।
मैकाले शिक्षा पद्धति ने विगत 70 वर्षों में सबसे ज्यादा कुठाराघात शिक्षा पद्धति पर किया है, जिसके दुष्परिणाम गुरु-शिष्य के सम्बंधों पर भी देखने को मिलते हैं। बेहद विडम्बना का विषय है कि आज गुरु-शिष्य के बीच वो मर्यादित एवं स्नेहमयी सम्बंध लगभग समाप्त से हो गए हैं, जो अतीत में भारतीय संस्कृति की पहचान हुआ करते थे।
-गंगा सिंह राज पुरोहित
बीकानेर ।

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