समय को बांधने वाले महावीर जी

22 नवम्बर/जन्म-दिवस”



संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री महावीर जी का जन्म 22 नवम्बर, 1951 को  वीरों की भूमि पंजाब में मानसा जिले के बुढलाड़ा में हुआ था। श्री दीवान चंद छाबड़ा उनके पिता और श्रीमती कृष्णा देवी उनकी माता जी थीं। विभाजन के बाद उनका परिवार बुढलाड़ा में आकर बस गया। श्री दीवान चंद जी पुराने स्वयंसेवक थे। बुढलाड़ा में भी वे नगर कार्यवाह के नाते काम करते रहे। अतः संघ का विचार महावीर जी को घर में ही प्राप्त हुआ। इसके बाद में शाखा जाने पर ये विचार क्रमशः संस्कार बन गये और संघ का काम ही उनके मन और प्राण की धड़कन बन गया। 

वीरांगना झलकारी बाई

महावीर जी की प्रारम्भिक शिक्षा बुढलाड़ा में ही हुई। वहां पर ही वे स्वयंसेवक बने। इसके बाद उन्होंने मानसा से बी.एस-सी. तथा फिर पंजाब वि.वि. चंडीगढ़ से सांख्यिकी में प्रथम श्रेणी में एम.एस-सी. किया। शिक्षा पूरी कर 1972 में वे प्रचारक बन गये। उनके प्रचारक जीवन का काफी भाग हिमाचल प्रदेश में बीता। मंडी व शिमला में जिला प्रचारक के बाद वे कांगड़ा में विभाग प्रचारक रहे। इसके बाद उन्हें हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर को मिलाकर बनाये गये ‘हिमगिरि’ प्रांत के सहप्रांत प्रचारक की जिम्मेदारी दी गयी। 


संस्कृत श्लोकों में छुपा गणितीय ज्ञान

हिमाचल में लगभग 25 वर्ष बिताने के बाद महावीर जी पंजाब के प्रांत  प्रचारक बनाये गये। पंजाब के उथल-पुथल भरे माहौल में उन्होंने काफी परिश्रम से स्थिति को संभाला। अमृतसर प्रांत का केन्द्र होने के कारण उन्होंने वहां के काम को सुदृढ़ आधार प्रदान किया। उनके प्रयास से नगर की 119 में से 100 बस्तियों में शाखाएं प्रारम्भ हो गयीं। उन्होंने इसके बाद वे दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल तथा जम्मू-कश्मीर के क्षेत्र प्रचारक रहे। इसके बाद वे संघ के अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख तथा फिर केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य के नाते काम करते रहे।


डूबती कांग्रेस के बिलबिलाते चाटुकार

महावीर जी का मानना था कि समय एवं दिनचर्या के उचित प्रबंधन से समय को बांधकर कम समय में भी अधिक काम कर सकते हैं। वे यह बात कहते ही नहीं, स्वयं करते भी थे। वे प्रतिदिन सुबह की शाखा जाने से पहले ही स्नान आदि से निवृत्त हो जाते थे। वे कहते थे कि जल्दी उठने से दिन 36 घंटे का हो जाता है। अखिल भारतीय जिम्मेदारी मिलने के बाद उन्हें पूर्वोत्तर भारत की ओर विशेष रूप से ध्यान देने को कहा गया। अतः उन्होंने वहां का सघन प्रवास कर संघ कार्य को गति दी। 

महावीर जी मधुरभाषी तथा बचपन से ही बहुत सौम्य एवं शांत स्वभाव के थे। उन्हें जो काम दिया जाता, उसे वे धैर्यपूर्वक समझते और फिर पूरी जिम्मेदारी से करते थे। इस कारण वे जहां भी रहे, वहां उन्होंने कार्यकर्ताओं की एक विशाल मालिका का निर्माण किया। खूब सोच-विचार के साथ किये जाने से उनके द्वारा खड़े किये गये सब प्रकल्प भी स्थायी प्रवृत्ति के रहते थे।


शिक्षाविद गुजुभाई बधेका

संघ कार्य की भागदौड़, समय-असमय के प्रवास एवं तरह-तरह के खानपान के बीच वे हृदय रोग से पीड़ित हो गये; पर इसकी चर्चा उन्होंने अधिक लोगों से नहीं की। वे नहीं चाहते थे कि संघ का पैसा तथा श्रमशक्ति उन पर खर्च हो। वे अपने कष्ट से बाकी लोगों को परेशान कराना नहीं चाहते थे। इस कारण वह रोग बहुत बढ़ गया; पर वे इस ओर ध्यान न देकर संत के समान संघ एवं समाज सेवा के काम में लगे रहे।

24 अक्तूबर, 2017 को दिल्ली से चंडीगढ़ जाते समय रास्ते में उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उन्हें तुरंत चंडीगढ़ के पी.जी.आई. अस्पताल में भरती कराया गया; पर वह आघात इतना भीषण था कि उसी दिन दोपहर में उनका निधन हो गया। अगले दिन उनके पैतृक स्थान मानसा में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। इससे पूर्व उनकी इच्छानुसार उनके नेत्रदान कर दिये गये। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जलते पुस्तकालय, जलती सभ्यताएं

करपात्री महाराज ने इंदिरा गांधी को क्यों श्राप दिया?

संघ नींव में विसर्जित पुष्प भाग १