आभिजात्य कवयित्रियाँ

व्यंग्य बाण


लेखक प्रवीण मकवाना
      

ये वे महिलाएँ होतीं हैं, जिनके घर दो से अधिक मेहमान आ जाएं तो खाना बाहर से ऑर्डर करना पड़ता है। वे सुंदर तो होतीं ही हैं, यदि कुछ नहीं होती, तो मेकअप बाबा का आशीष प्राप्त कर लेतीं हैं। अपनी साड़ी को नाभि से अँगुल-अष्ट नीचे बाँधती हैं ... इनका प्रिय रँग होता है - पिंक और ब्लैक। अधिसंख्य के ब्लाउज बैकलेस होते हैं।

सोफे पर बैठी होतीं हैं, और इनके चित्त में एक विचार ( सतही विचार... आप इसे दार्शनिकता से जोड़ने का अपराध न करें ) कौंधता है। यही वह क्षण होता है जब इन्हें लगता है कि " मेरे भीतर कवयित्री होने की ठोस प्रतिभा है। "

फिर क्या ... अपने बिट्टू की कॉपी का अंतिम पन्ना फाड़ देतीं हैं। चिड़िया, कोयल, पेड़-पत्ते, गुलाब, खुशबू, गलियाँ, अंज़ाम, अज़नबी, जैसे कई कई शब्द असहाय होकर पन्ने पर गिर पड़ते हैं। कुछ उद्भावना, कुछ स्मृति, कुछ आसपास का तो कुछ कवियों का चुराया चेप दिया जाता है ... बन जाता है एक टूटा फूटा गद्य। कच्चा माल तैयार है।

अब यह कच्चा माल अपने सोना बाबू को व्हाट्सअप पर भेज दिया जाता है। भाई तो प्रतीक्षा में ही बैठा होता है। अरे बेटू ! यह तूने लिखा ? सच्ची ? उधर से आवाज़ आती है - मुच्ची।
पता है तूने क्या लिख दिया है ? यही तो कविता है। कालजयी। एक ज़रूरी कविता। अंतस्तल को छूती हुई। क्या प्रतीक, क्या फंतासी,, और बिम्ब तो इत्ते कुँवारे हैं कि भले आज विवाह करो।
और हाँ बेटू, यह जो तूने दुपट्टे से खुशबू उड़ाने का विधान किया है न .. यह साहित्य में एकमेवाद्वितीय है, अपूर्व है।

तो मेरी जान, तुम इसे थोड़ा ठीक कर दो न। भाई हामी भर देता है। वैसे तो यह इतनी अच्छी कविता है कि संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं। लेकिन तू कह रही है तो देखता हूँ।

भाई एंटर मार मार के पंक्तियाँ जमाता है। कई मात्राएँ जिनका बलात्कार हो चुका होता है; वह उन्हें सिर्फ सांत्वना देता है। जैसे तैसे कर के एक कविता बन जाती है। हिंदी साहित्य पर उपकार करने वाला यह प्रेमी एक लंबी साँस लेते हुए पाँव टेबल पर रख देता है और कुर्सी पर पसर जाता है।

कविता जानू को मिल चुकी। बंदी ने दो लव इमोजी भेजकर बंदे को खुश कर दिया। भाई को और चाहिए ही क्या .... ?

अब कबिता पहुँचती है लार टपकाने वाले पत्रिका-प्रकाशकों के पास। अरे यह फलाँ मैम की पोएट्री है ... छपनी ही चाहिए। एक लंबे-चौड़े परिचय ( जिसमें वन वीक सीरीज से पास करी खूब सारी डिग्रियों का ब्यौरा भी संलग्न होता है ) के साथ कविता छप जाती है।

अब वे सेमिनारों, कार्यशालाओं में प्रवचन पेलने की अधिकारिणी हैं।

इति नमस्कारांते

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