5 मई कार्ल मार्क्स का जन्म दिन, जिसके विचार ने दुनियां में 10 करोड़ लोगों की हत्या की




आज 5 मई को वैश्विक इतिहास के सबसे बुरे और क्रूरतम विचार को रखने वाले इंसानों में से एक कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है। कार्ल मार्क्स के विचार की वजह से बीते एक सदी में विश्व में 10 करोड़ से अधिक लोगों की हत्या की गई। इन हत्याओं से कार्ल मार्क्स के दर्शन का सीधा सा संबंध है।

सिर्फ हत्याएं ही नहीं बल्कि रूस और चीन से लेकर वियतनाम कंबोडिया उत्तर कोरिया और तमाम कम्युनिस्ट देशों में स्थित गुलामों के कारावास और डिटेंशन कैंप यह सभी नर्क रूपी विचार कार्ल मार्क्स के दर्शन साम्यवाद की ही देन है।

साम्यवाद वही है जिसे हम वामपंथी या कम्युनिज्म के नाम से जानते हैं। और इसी साम्यवाद या कम्युनिज्म की वजह से विश्व भर में अरबों लोग नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए, करोड़ों लोग मारे गए और लाखों लोग आज भी अपनी बुरी और पीड़ित जिंदगी जी रहे हैं।

साम्यवाद का विचार दुनिया को देने वाले कार्ल मार्क्स का जन्म आज से 203 वर्ष पूर्व वर्ष 1818 में जर्मनी में हुआ था। कार्ल मार्क्स आधुनिक विश्व इतिहास के सबसे विवादित विचारक में से एक है।

जब हेनरिक और हेनरिटे मार्क्स ने अपने बेटे को जन्म दिया था तब उन्हें जरा सा भी यहां अंदाजा नहीं था कि उनके बेटे के विचार की वजह से पूरी दुनिया में खूनी संघर्ष और खूनी उत्पात मचेगा।

मार्क्स के नाम और उनके विचारों पर आधारित अधिकांश शासन अब भले ध्वस्त हो चुके हैं लेकिन आज भी उनका नाम हिंसक क्रांति और तानाशाही का विचार रखने वाले का पर्याय बन चुका है।

कार्ल मार्क्स एक ऐसे विचारक थे जिनके कम्युनिज्म की विचार की वजह से इतिहास में ऐसे क्रूर शासक देखें जिन्होंने अपने ही लोगों की हत्याएं की जिसमें स्टालिन से लेकर कंबोडिया के तानाशाह तक शामिल हैं।

कार्ल मार्क्स द्वारा लिखी गई कुख्यात किताब द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो और दास कैपिटल आज भी विश्व के तमाम देशों में पढ़ी जाती है और इसी किताब के माध्यम से कम्युनिस्ट विचार की सच्चाई सामने आती है।

ऐसा नहीं है कि कार्ल मार्क्स ने जब साम्यवाद का विचार रखा तब एकाएक उनके प्रशंसक बढ़ने लगे। सच्चाई तो यह है कि वर्ष 1883 में जब कार्ल मार्क्स की मृत्यु हुई तो उनके अंतिम संस्कार में सिर्फ 11 लोग शामिल थे।

लेकिन मात्र आधी सदी के अंदर ही मार्क्स के विचारों को राजनीतिक स्वरूप दिया गया और खूनी क्रांति की शुरुआत हुई। प्रथम विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1917 में जब कथित रूसी क्रांति हुई तब से लेकर सोवियत संघ के विघटन तक साम्यवाद का प्रभाव पूर्वी यूरोप से लेकर एशिया तक रहा।

कार्ल मार्क्स के विचारों को राजनीतिक शक्ल देकर लेनिन ने सोवियत संघ की कमान संभाली और तानाशाह प्रवृत्ति के साथ लाखों लोगों की हत्याएं करवाई। लेनिन के बाद स्टालिन ने सोवियत की कमान संभाली और उसने व्लादीमीर लेनिन से आगे बढ़कर पूरे सोवियत संघ में जमकर रक्तपात किया।

सोवियत में व्लादीमीर लेनिन और स्टालिन के द्वारा तानाशाही को देखते हुए चीन में चल रही गणतांत्रिक सरकार के खिलाफ माओ जे़डोंग ने कम्युनिज्म की क्रांति की शुरुआत की।

लगभग चार दशक तक चले गृह युद्ध को अंततः चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने जीता और मौज डाउन वहां के तानाशाह बने। इसके बाद माओ जे़डोंग के कार्यकाल में 4 करोड़ से अधिक नागरिकों की हत्या की गई।

यह सभी तानाशाह कार्ल मार्क्स के विचार साम्यवाद से ही प्रभावित थे और कम्युनिस्ट पार्टी के अंतर्गत यह सभी गतिविधियां संचालित हो रही थी।

सोवियत संघ के संस्थापक तानाशाह और लाखों लोगों की हत्या करने वाले व्लादीमीर लेनिन ने मार्क्सवादी विचार पर कई किताबें लिखी थी और उन्होंने मार्क्स के विचार को "एकमात्र सही क्रांतिकारी सिद्धांत" के रूप में वर्णित किया था।

उसी तरह चीन में भी करोड़ों लोगों की हत्या करने वाले माओ जे़डोंग का भी मानना था कि मार्क्स के विचार "अच्छे सही और सुंदर" का प्रतिनिधित्व करते हैं।

कंबोडिया, लाओस, वियतनाम, उत्तर कोरिया, क्यूबा, नेपाल और चीन में साम्यवाद के नाम पर जमकर उत्पात मचाया गया और रक्त वह आकर कथित क्रांति का नाम दिया गया।

मार्क्सवाद के नाम पर सबसे अधिक हत्याएं करने वाले तानाशाह का सबसे बड़ा उदाहरण है सोवियत संघ का तानाशाह स्टालिन। इनके बारे में अमेरिकी इतिहासकार स्टीफन कोटकिन ने एक बार कहा था कि सोवियत संघ का तानाशाह स्टालिन राक्षसी प्रवृत्ति का है इसलिए मार्क्सवादी है, ऐसा नहीं है। वह मार्क्सवादी है इसीलिए राक्षसी प्रवृत्ति का है।

यदि हम स्टालिन के बारे में पढ़े, तो उसने एक युवा व्यक्ति के रूप में मार्क्स के सिद्धांतों को काफी गहराई से अध्ययन किया और फिर सत्ता हासिल करने के बाद उन्होंने उसी सिद्धांतों को अपने राजनीतिक अभ्यास में डाल दिया।

दरअसल स्टालिन ने अपने ही लाखों लोगों को इसमें नहीं मारा क्योंकि वह पागल था बल्कि उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसका मानना था कि मार्क्स के सिद्धांतों को पूरा करने के लिए इसी की आवश्यकता है।

यदि हम मार्क्स के विचारों की समीक्षा करें तो यह पूरी तरह से बकवास और व्यवहारिक रुप से पूरी तरह गलत और खतरनाक साबित होता है। बीसवीं सदी के महान दार्शनिक कार्ल पॉपर ने कार्ल मार्क्स की आलोचना करते हुए कहा था कि वह एक "गलत प्रोफेट" थे।

यदि हम इनकी बातों को समझे और अधिक प्रमाणों से चीजों का आकलन करें तो पता चलता है कि बीसवीं शताब्दी में संवाद को छोड़कर पूंजीवाद को अपनाने वाले देश वर्तमान में लोकतांत्रिक, खुले और समृद्ध समाज की ओर अग्रसर है और वहां नागरिक स्वतंत्रता भी पूरी तरह से हासिल है।

इसके विपरीत यदि हम मार्क्सवाद के नाम पर पूंजीवाद को खारिज करने वाले सभी शासन का आकलन पिछले शताब्दी में करें तो यह पता चलता है कि लगभग सभी शासन पूरी तरह विफल साबित हुए हैं।

द डेविल एंड कार्ल मार्क्स किताब लिखने वाले पॉल केन्गोर जो कि ग्रोव सिटी कॉलेज में प्रोफेसर हैं उनका कहना है कि, पॉलिटिकल लेफ्ट की वजह से शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालयों एवं अन्य संस्थानों में साम्यवाद या वामपंथ से जुड़े लोगों का कब्जा है जिसकी वजह से वामपंथ की वजह से हुए अपराधों को छुपाने की कोशिश की जाती है। उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों में कभी भी वामपंथ से जुड़े हुए घटनाएं नहीं होती।

इसके अलावा कार्ल मार्क्स की निजी जिंदगी में भी ऐसे गहरे और गंदे राज छिपे हुए हैं जो कभी बाहर नहीं आते। कैथोलिक वर्ल्ड रिपोर्ट को दिए एक इंटरव्यू में पॉल केन्गोर कहते हैं कि कार्ल मार्क्स का अपनी पत्नी के अलावा घर में ही आने वाली एक युवा नर्स के साथ अवैध यौन संबंध था। उस युवा नर्स को लेनचेन के नाम से जाना जाता था। इसके अलावा सच्चाई यह भी है कि कार्ल मार्क्स ने जो कि दुनिया भर में सर्वहारा वर्ग के चैंपियन के रूप में जाने जाते हैं उन्होंने अपने घर में काम करने वाली नर्स को एक पैसे भी वेतन के नाम पर नहीं दिया।

उन्होंने उन्होंने आगे कहा कि कार्ल मार्क्स जिन्होंने स्नान करने से इंकार कर दिया और शेविंग करने से भी मना कर दिया और उनके शरीर में कई जगह घाव उभर आये उसने अपने पत्नी के पीठ पीछे एक दूसरे स्त्री के साथ अवैध संबंध बनाएं।

लेखक के अनुसार वर्ष 1951 में उसने उसने एक बच्चे को जन्म दिया जिसे भी अपनाने से कार्ल मार्क्स ने इंकार कर दिया।

सिर्फ इतना ही नहीं तमाम नारीवाद का प्रचार करने वाले वामपंथी मार्क्स के नारीवाद विरोधी रूप को स्वीकार करने से कतराते हैं। कार्ल मार्क्स ने अपने सहयोगी और वामपंथ की स्थापना करने वाले पार्टनर एंगेल्स को पत्र में लिखा था की "अफसोस कि मेरी पत्नी ने एक लड़की को जन्म दिया है, लड़के को नहीं।"

कार्ल मार्क्स के जीवन को जितना गहन अध्ययन कर कर देखें तो यह पता चलता है कि मार्क्स का विचार पूरी तरह से खोखला और बनावटी है। इसमें ना ही मानवता है और ना ही कोई विनम्रता। इसी मार्क्स के विचार ने आज भारत के बड़े भूभाग पर माओवाद के नाम पर नक्सली आतंक फैलाया हुआ है।

इसी मार्क्स के विचार को अपनाने वाले मार्क्सवादी इतिहासकारों ने भारत का इतिहास लिखा और वास्तविक जानकारियों को छुपाते हुए पूरी तरह से झूठी रचनाएं की।

यदि सही मायने में कहा जाए तो कार्ल मार्क्स के विचार ने पूरी दुनिया को और दुनिया के नागरिकों को बर्बाद करने का कार्य किया है।

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