उत्सव प्रिय समाज के उत्सवों में हिंसा की काली छाया क्यों?

ऐसा नहीं है कि स्वयं शांति प्रिया मजहब के अनुयाई कहलाने वाले लोगों ने हमारे त्योहारों और उत्सवों के धार्मिक आयोजनों को लक्षित कर पहली बार उपद्रव किया हो। बल्कि उनके द्वारा इस प्रकार के कृत्यों की लंबी काली परंपरा का इतिहास रहा है फिर भी वर्तमान में हुई घटनाएं कुछ अलग स्पष्ट संकेत करती हुई थी दिखाई देती है।
जब महमूद गजनबी और महमूद गौरी ने भारत पर हमला किया था तब हम कमजोर या कोई गरीब देश नहीं थे। हमारी संगठन ना होने की कमजोरी और एक दूसरे का सहयोग न करने की मानसिकता ने ही उन्हें सफल बनाया था।  किंतु जब अंग्रेज इस देश से गए तब हम बेहद गरीब और संगठन आभाव में कमजोर हुए थे।

अंग्रेजों के शासन से मुक्ति के बाद से आज तक निरंतर हम जिहादी आग में झुलस रहे हैं किंतु इस आग के कारणों और समाधान को हम अब तक खोज नहीं पाए हैं। हाल ही में उत्सव के अवसर पर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, खरगोन, करौली, हरिद्वार, खंभात, लोहरदगा, बोकारो एवम जोधपुर आदि शहरों में जिहादी आग लग गई। हिंदू पक्ष पर आघात तो हुआ ही ऊपर से जिन्होंने आग लगाई उन्हें ही पीड़ित पक्ष बताने के प्रयास प्रारंभ हो गए। इस प्रकार की सोच देश की एकता और अखंडता के लिए बहुत ही घातक है। वर्ष प्रतिपदा एवं वासंती नवरात्र पर राजस्थान के करौली तथा रामनवमी पर लोहरदगा बोकारो खरगोन खंभात हिम्मतनगर मुंबई कोलार बाकुंडा कोलकाता में एक साथ की गई हिंसक घटनाएं पूर्व नियोजन के साथ सोची-समझी गई रणनीति की दिशा में संकेत करती है। इन घटनाओं में चिंता की बात यह थी की हमलों के दौरान घटनाओं को अंजाम देने वाले आज पड़ोस में रहने वाले नित्य प्रति मिलने जुलने वाले परिचित पड़ोसी व्यक्ति तक सम्मिलित थे जिन्होंने यह उजागर कर दिया कि रोज मैंने बात करने वाला कोई अब्दुल चाचा आपके प्रति इतनी घृणा पाले हुए जी रहा है। इन घटनाओं में एक पैटर्न भी देखने को मिलता है। ऐसा देखा गया कि जिहादी घटना से 1 दिन पूर्व ही घटना को अंजाम देने वाला समूह अपने घर की महिलाओं और बच्चों को अन्यत्र भेज देते हैं ताकि किसी भी विपरीत प्रतिक्रिया या प्रतिकार का असर उन पर ना हो अनेक स्थानीय लोग इस तथ्य को दबे सुर में नाम उजागर होने की शर्त पर स्वीकार भी करते हैं। मध्य-प्रदेश के खरगोन में भी ऐसा ही हुआ और फिर तालाब चौक से निकलकर शोभायात्रा एक मस्जिद के पास पहुंची कि उस पर पत्थर बरसने प्रारंभ हो गए इसके बाद दर्जनों मुहल्लों में हिंसक हमले प्रारंभ हो गए शीतला माता के मंदिर में तोड़फोड़ से लेकर सामान्य हिंदू घरों में लूटपाट और आगजनी की घटनाएं हुई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि इन हमलों में उनके पड़ोसियों के साथ डेढ़ सौ से 200 बाहरी कट्टरपंथी संदिग्ध दंगाई इसमें शामिल थे वह बाहरी लोग रामनवमी से दो-चार दिन पूर्व ही मस्जिद क्षेत्र में रहने के लिए आए थे इस प्रकार की घटनाओं के पैटर्न से चिंता होना आवश्यक है चिंता यह भी है कि किस प्रकार यह दंगाई हमारे खुफिया तंत्र को चुनौती दे रहे हैं।
बड़वानी जिले के सेंधवा स्थित जोगवाड़ा सड़क मार्ग पर रामनवमी की मुख्य शोभायात्रा में सम्मिलित होने जा रहे श्रद्धालुओं पर भी पथराव किया गया, जिससे भगदड़ मच गई और अनेक श्रद्धालुओं को गंभीर चोटें आर्इं। गुजरात में साबरकांठा स्थित हिम्मतनगर के छपरिया क्षेत्र में दंगाइयों ने शोभायात्रा में सम्मिलित श्रद्धालुओं पर अचानक हमला बोल दिया। लोहरदगा के सदर थाना क्षेत्र के हिरही गांव में शोभायात्रा पर पत्थर बरसाने के बाद उपद्रवियों ने रामनवमी मेले में खड़ी 10 से अधिक मोटरसाइकिलों, तीन ठेलों, एक टेंपो, चार साइकिलों और कई दुकानों में आग लगा दी।
कुल मिलाकर करौली से लेकर खरगौन तथा कुरनूल से लेकर जहाँगीरपुरी तक की शोभायात्राओं पर हुए हमलों की प्रकृति और पद्धति एक-सी थी, प्रयोजन और परिणाम एक-सा था। सभी हमलों में दंगाइयों द्वारा घरों-मुहल्लों एवं मस्जिदों की छतों से पत्थरबाजी की गई, कांच की बोतलें फेंकी गई, हमलावर भीड़ द्वारा तमंचे व तलवारें चलाई गई, पेट्रोल बम फेंके गए तथा चिह्नित कर गैर-मुसलमानों के घरों-वाहनों एवं दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस-प्रशासन पर जानलेवा हमले किए गए। एक जैसा पैटर्न किसी षड्यन्त्र की तरफ इशारा करते दिखाई देते है।

क्या इन हमलों को किसी तात्कालिक घटना व प्रतिक्रिया का परिणाम या अचानक हुई मामूली झड़प या छिटपुट हिंसा कह सकते है? इस दिखता तो नहीं है कोई धृतराष्ट्र से ही होगा जिसे ये घटनाएं छिटपुट वारदात दिखाई देती हो। घरों एवं मस्जिदों की छतों पर जमा पत्थरों के ढेर, कांच की बोतलों, सरिया, तलवारों, असलहा, पेट्रोल-बमों आदि को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि शहर-शहर इनकी ये तैयारियां दिनों नहीं, महीनों से चल रही थीं। यह सचमुच एक संयोग नहीं, प्रयोग ही था प्रयोग ही नहीं इससे बढ़कर इसे तो जिहादी मानसिकता का उद्योग कहना चाहिए। कदाचित इसमें हाल ही में संपन्न हुए चुनाव-परिणामों के प्रति एक अनदेखी-आंतरिक खीझ, चिढ़ और सामूहिक गुस्सा भी प्रभावी एवं महत्वपूर्ण कारक के रूप में सम्मिलित हो।

क्या हिंदू बहुसंख्यक आबादी वाले दुनिया के एकमात्र देश भारत में आज यहां के सनातनी समाज को इतनी सुविधा, सहूलियत, स्वतंत्रता एवं अधिकार भी प्राप्त नहीं है कि वह हर्षोल्लास के साथ शोभायात्रा निकाल सके ?   घोर आश्चर्य और शर्म का विषय है कि तोड़-फोड़, लूट-मार, आगजनी व बम-तमंचे चलाने वाली ‘भीड़’ के अराजक व्यवहार एवं कट्टरपंथी विचारों पर प्रश्न उठाने के स्थान पर उलटे शोभायात्रा में सम्मिलित श्रद्धालुओं एवं भक्तजनों से यह पूछा जा रहा है कि उन्हें मुस्लिम बहुल इलाकों से शोभायात्रा निकालने की क्या आवश्यकता थी?

यानी अपने ही देश में श्रद्धा व भक्ति की सहज एवं पारंपरिक अभिव्यक्ति पर भी अब पहरे बैठाने की तैयारियां की जा रही हैं, साजिशें रची जा रही हैं?  कभी भी और कहीं भी, सड़क पर चाहे पार्क में नमाज अदा करने को अपना ‘अधिकार’ मानने वाले समुदाय को आज अपने पड़ोसियों व शहरवासियों के परंपरागत त्योहार मनाने पर भी आपत्ति होने लगी है! क्या वे यह चाहने लगे हैं कि हर्ष एवं उल्लास के तीव्र एवं स्वाभाविक मनोभाव भी उनसे पूछकर प्रकट किए जाए?  चिंता यह है कि हर गली, हर चौराहे, हर मुहल्ले को मजहबी नारों, उन्मादी तकरीरों और शक्ति-प्रदर्शक जुलूसों के शोर से भरने वाला समुदाय आज अन्य धर्मावलंबियों की सहज-स्वाभाविक श्रद्धाभिव्यक्ति पर भी पाबंदी चाहता है।  जबकि हिन्दू पक्ष ने कभी भी इन जिहादियों के किसी भी आयोजन पर कभी भी कोई आपत्ति नही की। फिर वामपंथी एवं तथाकथित पंथनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों द्वारा मुस्लिम बहुल इलाकों से शोभायात्रा निकालने पर असंगत, अनर्गल एवं अतार्किक प्रश्न उछालना एक जटिल समस्या व गंभीर संकट का सरलीकरण नहीं तो और क्या कहा जायेगा?  यह मात्र उन जिहादी घटनाओं का बचाव ही है।

गंगा जमुनी तहजीब की डुगडुगी बजाने वाले जमूरे न जाने कैसे ऐसे अवसरों पर अचानक से लुप्त हो जाते है और कुछ समय बाद फिर से निष्क्रियता त्यागकर प्रकट हो जाते है। क्या विविधता को विशेषता मानने वाली भारतीय संस्कृति में अब निश्चिंत और निर्द्वंद्व होकर अपना त्योहार मनाने का प्रचलन व स्थान नहीं बचेगा?

शोभायात्रा में कथित रूप से डीजे बजाने, उत्तेजक नारे लगाने को हिंसा व उपद्रव का कारण बताने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के अलग-अलग शहरों व हिस्सों में आए दिन उग्र, हिंसक एवं अराजक प्रदर्शन, बहुसंख्यक हिंदू समाज पर अकारण हमले जिहादियों की प्रवृत्ति व पहचान बनता जा रहा है। इस जिहादी मानसिकता को पहचानने के साथ इसके पैटर्न को समझकर समय रहते उपायों की तलाश कर लेना आवश्यक है।

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