महाकाल भस्म आरती के दर्शन
डायरी के पन्नों से
जीवन का श्रेष्ठतम समय जिसे बार बार दोहराना चाहूंगा।
8 और 9 सितंबर उज्जैन की यात्रा के दौरान , 9 सितम्बर 2018 को 1:30AM पर अलार्म बजने से 5 मिनट पहले मैं जाग गया। दरअसल नींद कहाँ आई थी। स्नान आदि से निवर्त होकर भक्त निवास के स्वागत कक्ष में 2:30AM पर सभी पहुंच गए। यह भवन संघ की प्रेरणा से स्वयंसेवको के प्रयासों से महाकाल के दर्शनार्थियों हेतु आवास की उत्तम व्यवस्था देने के लिए बनाया गया है। जिन परिचित ने भस्म आरती के लिए पहले आरक्षण करवाया था, उनके साथ सभी 18 लोग मन्दिर के लिए रवाना हुये।
द्वार क्रमांक 4 से होकर सीधे कंट्रोल रूम में आ गए। थोड़ा विराम और फिर मन्दिर के एकदम पास उपस्थित। थोडा भीड़ भाड़ से निकल कर महाकाल को जल अर्पण किया। जलपात्र एक ही था, स्वाभाविक ही था मैं और मेरी अर्धांगिनी ने एकसाथ उसी से जलाभिषेक किया। मन ही मन महिम्न स्त्रोत्र का पाठ किया। बाहर आते ही तुरन्त नंदी के पीछे बेठने को जगह मिल गई। भीड़ आती गई जल चढ़ाती गई। 4:30am तक यही क्रम चला।
मन्दिर में जाने के लिए धोती आवश्यक है। ऊपर नंगे बदन। सहज ही जनेऊ दिख जाता है। भारतीय परंपरा अनुसार वेश धारण कर मंदिर दर्शन का अपना ही आनंद है।
4:30am पर पुजारी ने पूजन प्रारम्भ किया। नाना द्रव्यों से अभिषेक होता रहा, इन्ही चर्मचक्षुओं के सामने। पंडितों के हाथों का सहज संचालन उनके अभ्यास का प्रतीक है। अब प्रारम्भ हुआ महाकाल का श्रृंगार। पुष्प, मुकुट, हर्बल द्रव्यों से सुंदर नेत्र भ्रू, मूंछ, ओष्ठ, नेत्र भाल आदि का स्वरूप धीरे धीरे उभरता गया। बादाम,काजू आदि से रचनाएं और भी उभरती गई। महाकाल को सजाने वाला पण्डित कोई कलाकार से कम न था। इसी बीच एक पुजारी अल्हड़ सा घुंघराले लंबे बाल, हाथों में रुद्राक्ष, गले मे रुद्राक्ष, मोरपंख का पंखा झुलाते बार बार बाहर आता भक्त दर्शन के आनंद में मग्न।
अब दिखे सबसे वरिष्ठ पुजारी। एक पोटली लिए हुए। घोषणा हुई...... महिलाएं कृपया घूंघट निकाल लें। कुछ ने नहीं माना तो किसी ने टोका नहीं। महाकाल को कपड़े से आवरित किया गया। पुजारी ने पोटली उठाई और प्रारम्भ..... भस्म छन छन कर महादेव पर बरसना प्रारम्भ। जयकारा अनायास ही गूंज उठा। व्यवस्थापकों ने शांत रहने का इशारा किया... सब मौन हो गए। फिर घोषणा हुई महिलाएं घूंघट हटा लें। दर्शन के बाद.... वस्त्र आवरण हटाकर अनावरित किया।
भक्तों के दिये वस्त्र, भेंट, प्रसाद, पुष्प, माला सब कुछ एक एक कर चढ़ने लगे। उतरोतर सुंदर, अद्भुत, अकल्पनीय, अनिर्वचनीय, नयनाभिराम श्रंगार उभरता गया।
5:30AM पर एकदम से ज्योत उभरी...... घण्टा, डमरू, झांझ, ताल ...... एक साथ गरज उठे, जय महाकाल घोष के साथ आरती प्रारम्भ। 19 मिनट बाद एकदम से गर्भगृह की लाइट बन्द ....... अब केवल महाकाल का स्वरूप उभर कर नेत्रों में बस गया..... शरीर मे रोमांच भर गया। भक्त स्तब्ध, अपलक, निःशब्द, उस स्वरूप को पी जाने को आतुर। संसार में हूँ कि स्वर्ग में का विस्मरण! मैं कौन हूँ? मेरा घर परिवार, मेरे कष्ट, दुख, मेरा अहंकार, मेरी "मैं" सब कुछ विलीन, विस्मृत..... फिर से लाइट जली। आरती पूर्ण हुई। बाहर निकलने का आग्रह किया गया..... लौट कर इसी संसार में आना ही था.......और आ गया आप सबके बीच.... अपने उसी संसार में उसी अहंकार के साथ, उसी स्वरूप में जिसमे इतने समय से था। इस पूरे दर्शन, पूजन, आरती के दौरान किसी पुजारी, पण्डित, व्यवस्थापक आदि ने किसी भी व्यक्ति को न तो जाती पूछी और न ही अन्य कोई पहचान ही पूछी। केवल आधारकार्ड होना आवश्यक था। किसी ने भी मेरी जनेऊ देखकर, ब्राह्मण जानकर कोई विशेष महत्व भी नहीं दिया। आज लगा हम फिजूल ही जाती का अभिमान लिए घूमते है। काम तो हमारा व्यवहार, सम्पर्क और सबसे महत्वपूर्ण हमारे कार्य ही आते हैं।
#जय_महाकाल
मनमोहन पुरोहित
मनुमहाराज 7023078881
मरुभूमि राइटर्स फोरम
वा सर अविस्मरणीय पल और इससे भी सुन्दर व मार्मिक वर्णन जय महाकाल
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएं