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राष्ट्रवादी सरकार के 7 वर्ष में हमने क्या पाया?

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मोदी सरकार को सात साल पूरे हो गए हैं। सात साल में पहली बार है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुश्किल में घिरे दिख रहे हैं। शायद ये भी पहली बार है जब सरकार की ओर से इस मौके पर किसी विशेष आयोजन का ऐलान नहीं किया गया। लेकिन, पिछले सात सालों में मोदी सरकार ने कई ऐसे फैसले किए हैं जो चर्चा में रहे। सरकार के सात साल पूरे होने पर आइए जानते हैं ऐसे ही सात फैसलों के बारे में, जिन्होंने न सिर्फ सुर्खियां बटोरी बल्कि हर भारतीय पर असर डाला। क्या बदलाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर आकर कहा कि आज रात से 500 और 1000 रुपए के नोट बेकार हो जाएंगे। इन्हें बैंकों में जमा करने की छूट मिली। सरकार का पूरा जोर डिजिटल करेंसी बढ़ाने और डिजिटल इकोनॉमी बनाने पर शिफ्ट हो गया। मिनिमम कैश का कॉन्सेप्ट आया। नॉलेज पार्टः प्रधानमंत्री के फैसले से एक ही झटके में 85% करेंसी कागज में बदल गई। बैंकों में पुराने 500 और 1000 रुपए के नोट जमा हो सकते थे। सरकार ने 500 और 2000 के नए नोट जारी किए। इसे हासिल करने पूरा देश ही ATM की लाइन में लग गया। नोटबंदी के 21 महीने बाद रिजर्व बैंक की रिपोर्ट आई कि नोटबंदी के दौरान रिजर्व बै...

आभिजात्य कवयित्रियाँ

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व्यंग्य बाण लेखक प्रवीण मकवाना        ये वे महिलाएँ होतीं हैं, जिनके घर दो से अधिक मेहमान आ जाएं तो खाना बाहर से ऑर्डर करना पड़ता है। वे सुंदर तो होतीं ही हैं, यदि कुछ नहीं होती, तो मेकअप बाबा का आशीष प्राप्त कर लेतीं हैं। अपनी साड़ी को नाभि से अँगुल-अष्ट नीचे बाँधती हैं ... इनका प्रिय रँग होता है - पिंक और ब्लैक। अधिसंख्य के ब्लाउज बैकलेस होते हैं। सोफे पर बैठी होतीं हैं, और इनके चित्त में एक विचार ( सतही विचार... आप इसे दार्शनिकता से जोड़ने का अपराध न करें ) कौंधता है। यही वह क्षण होता है जब इन्हें लगता है कि " मेरे भीतर कवयित्री होने की ठोस प्रतिभा है। " फिर क्या ... अपने बिट्टू की कॉपी का अंतिम पन्ना फाड़ देतीं हैं। चिड़िया, कोयल, पेड़-पत्ते, गुलाब, खुशबू, गलियाँ, अंज़ाम, अज़नबी, जैसे कई कई शब्द असहाय होकर पन्ने पर गिर पड़ते हैं। कुछ उद्भावना, कुछ स्मृति, कुछ आसपास का तो कुछ कवियों का चुराया चेप दिया जाता है ... बन जाता है एक टूटा फूटा गद्य। कच्चा माल तैयार है। अब यह कच्चा माल अपने सोना बाबू को व्हाट्सअप पर भेज दिया जाता है। भाई तो प्रतीक्षा में ही बैठा होता है। अरे बेटू ! यह तूने...

इजरायल पर प्रधानमंत्री नेहरू की कथित विदेश नीति पर मुस्लिम तुष्टीकरण हावी..!

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संविधान सभा में 4 दिसंबर, 1947 को भारत की विदेश नीति पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा – अरब और यहूदियों के मामले का समाधान फिलिस्तीन कमेटी की माइनॉरिटी रिपोर्ट है. इस पर भारत सरकार ने हस्ताक्षर किये थे. हालाँकि, कमेटी की रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकतर देशों ने स्वीकार नहीं किया था. इसके अनुसार यहूदियों को फिलिस्तीन के अंतर्गत स्थानीय स्वायित्व दिए जाने का प्रस्ताव था. यानि यहूदियों के लिए एक स्वतंत्र देश की मांग को बाधित करने की दिशा में यह एक कदम था, जिसमें प्रधानमंत्री नेहरू भी शामिल हो गए थे. भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की फिलिस्तीन पर विशेष समिति का सदस्य था, जिसने फिलिस्तीन की 55 प्रतिशत जमीन इजरायल को देने का एक प्रस्ताव रखा था. समिति में भारत की तरफ से सदस्य अब्दुल रहमान ने इस विभाजन को एकदम नकार दिया और प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा मध्यस्ता का एक नया प्रस्ताव रखा गया. भारत ने अरब देशों को सुझाव दिया कि फिलिस्तीन को मुसलमान और यहूदियों का एक महासंघ बना दिया जाए. जिसे सभी मुस्लिम देशों विशेषकर इजिप्ट ने सिरे से ख़ारिज कर दिया. एक तरफ प्रधानमंत्री नेहरू की अजीबो-गरीब कल्पनाओं को मध्य ए...