संदेश

सितंबर 6, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

राजनीति के घोड़े के ढाई घर

चित्र
कभी कभी सोचते है तो बहुत ही आश्चर्य होता है कि हमारा नेतृत्व कहाँ तक सोच लेता है। अब ध्यान से सोचें तो समझ आएगा कि बीजेपी ने ... शिवसेना से अलग होना मंजूर किया था लेकिन उद्धव को मुख्यमंत्री बनाना स्वीकार नहीं किया था ऐसा क्यों? सोशल मीडिया में ज्यादातर लोगों का आकलन था कि बीजेपी ने सत्ता लोभ के कारण मुख्यमंत्री पद शिवसेना को नहीं दे रही है। लेकिन, अब शायद ये समझ आ गया होगा कि बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद शिवसेना को क्यों नहीं दिया। क्योंकि, शिवसेना और बीजेपी 30 से भी ज्यादा वर्षों से एक-दूसरे के सहभागी रहे थे, इसीलिए बीजेपी को शिवसेना की कार्यप्रणाली अच्छे से मालूम होगी। इसीलिए, कुछ विद्वानों आकलन है कि.... बीजेपी को ये अंदरूनी बात भी मालूम होगी कि.... शिवसेना के बॉलीवुड माफिया, मुंबई के ड्रग माफिया, दाऊद आदि के साथ कैसे संबंध हैं ??? साथ ही बीजेपी को शिवसेना के "हिंदूवादी पार्टी" की असलियत भी मालूम होगी। लेकिन, चूँकि.... शिवसेना की छवि एक कट्टर हिंदूवादी पार्टी की ही थी इसीलिए जनता उस सच को स्वीकार नहीं करती। इसीलिए... शिवसेना को नंगा करने करने के लिए उसे दुश्मन खेमे के साथ जाने...

अपनी हिन्दू पहचान से जुड़ी कंगना

चित्र
कंगना के अतीत में झाँकते हुए एक प्रश्न उठता है... कंगना आखिर एक सफल स्टार कैसे बन गयी? क्या उसने कोम्प्रोमाईज़ नहीं किये होंगे? क्या उसने इन लुच्चों से फेवर्स नहीं माँगे होंगे? क्या वह इनसे मिली हुई नहीं होगी? बेशक! उसने जरूर कोम्प्रोमाईज़ किये होंगे. हर साल हजारों कंगनाएँ बॉलीवुड का दरवाजा खटखटाने आती हैं, और उसमें से अधिकांशतः गलियों की खाक छान कर धक्के खाकर लौट जाती हैं. अगर कंगना ने कोई कोम्प्रोमाईज़ नहीं किये होते तो वह भी उनमें से ही एक होती और आप उसका नाम भी नहीं जानते. चित्र साभार पर कंगना ने कोम्प्रोमाईज़ किया तो क्या कोम्प्रोमाईज़ किया? उसने अपनी व्यक्तिगत जिंदगी कोम्प्रोमाईज़ की होगी, अपना देश और धर्म नहीं कोम्प्रोमाईज़ किया. किसी अंडरवर्ल्ड में नहीं घुसी, किसी तैमूर को नहीं जना. और उसने जो भी कोम्प्रोमाईज़ किये, और उससे जो स्टारडम कमाया वह आज हमारे ही काम आ रहा है. उसने जो कीमत चुकाई उसका फायदा आज देश को ही हो रहा है. दस साल पहले वह क्या सोचती थी और क्या बोलती थी इसका हिसाब लगाना आसान नहीं है. क्योंकि पूरा देश ही दस साल पहले जो सोचता था वह आज नहीं सोचता. दस साल पहले इस देश ने मनमोह...

सरगढ़ी का युद्ध दिवस

चित्र
12.09.1897 आज ही के दिन इतिहास का एक ऐसा दिन है जब भारत की सिख रजीमेंट की चोथी बटालियन के 21 सिख जवान योद्धाओं ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दस हजार अफगानों को रोका और 1400 से ज्यादा मुस्लिम हमलावरों को गाजर मुली की तरह काटा। आज सरगड़ी समर दिवस की वर्षी है, आज ही के दिन 12सित.1897 को अफगानिस्तान से मुस्लिम हमलावरों ने सरगढ़ी में हमला किया था। उनकी संख्या 10 हज़ार से अधिक थी। सरगढ़ी जो अब पाकिस्तान में आता है, तब ये भारत में ही था। 36 सिख यूनिट के हवालदार इशरसिंह सरगढ़ी पोस्ट पर तैनात थे। उनके साथ उनके 20 साथी और थे कुल मिलाकर मात्र 21 की संख्या थी। ये 21सिख सरगढ़ी पोस्ट को संभाल रहे थे। 12सितम्बर को अचानक 10 हज़ार मुस्लिम हमलावरों ने सरगढ़ी पर हमला कर दिया, उनकी भीड़ हथियार पैदल और घोड़ों पर होते हुए सरगढ़ी आ रही थी। इशर सिंह को सूचना मिली। बताया गया की 10 हज़ार पठान आ रहे है। हमला करने। फिर कहा गया की आप लोग सरगढ़ी पोस्ट छोड़कर पीछे चले जाइए लेकिन इशर सिंह कहाँ मानने वाले थे। भारत के योद्धा पराक्रमी थे।  इशर सिंह ने फैसला किया की हम अपनी पोस्ट की रक्षा करेंगे। इशर सिंह ने सभी 20 को बुलाया और कह...

धनबल के दम पर धर्मांतरण पर लगे रोक

चित्र
चित्र साभार गूगल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 13 ईसाई संगठनों के विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA) लाइसेंस को सस्पेंड कर दिया है। आपके लिए यह खबर कितना महत्व रखती है यह आपको तय करना है। लेकिन इससे पहले यह समझना है कि मिशनरी संगठनों के लिए अति महत्वपूर्ण है। इसका साधारण सा एक कारण है। उनको दुनिया भर में फैलाव की जिद है किसी भी कीमत पर, क्या आपको घर बचाने की परवाह है? वे प्रसार वादी है। सबको निगल जाने को आतुर है। क्या आप स्वयं के रक्षण की परवाह करते है? वे सम्पूर्ण जगत को ईसायत की छतरी के नीचे लाने को मचल रहे है क्या सभी मार्ग उस ईश्वर तक ले जाते है इस गीता के इस वाक्य को मानने वाले (आप) इस विचार को जिंदा रखने की संरक्षित रखने की तरफ कुछ करने को तत्पर है?  वे निरन्तर बाहुबल, धनबल, सत्ताबल, मीडिया बल, के सहारे अपना जनबल बढ़ाने में लगे है क्या आप अपने आत्मबल को मजबूत कर डटे रहकर आपको बचाने आने वाले की बात सुनने और अपनी बात कहने की हिम्मत दिखा सकते है? अब विचार करिए। यह खबर कितना महत्व रखती है। वैसे मंत्रालय ने यह निर्णय पिछड़े इलाकों में आदिवासियों को प्रलोभन देकर उनके धर्मांतरण कराए जाने क...

स्वामी विवेकानंद का सन्देश: नर सेवा नारायण सेवा

चित्र
चित्र साभर गूगल बचपन से जिज्ञासु नरेंद्र किसी भी प्रमाण के बिना किसी बात को नहीं मानता था। वह अनेक संतो के पास जाता और स्पष्ट शब्दों में पूछता कि क्या आपने ईश्वर को देखा है? किसी के उत्तर से वह संतुष्ट नहीं हो पाया। किंतु रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आते ही उसकी जिज्ञासा शांत होने लगी। जैसा उत्तर उसे परमहंस जी से मिला वैसा स्पष्ट उत्तर कहीं नहीं मिला। गुरु और शिष्य का संबंध निरंतर प्रगाढ़ होता गया। जैसे परमहंस जी नरेंद्र की राह देख रहे हों ऐसा व्यवहार उन्होंने पहली बार ही दर्शाया था। किंतु एक समय ऐसा आया जब गुरु परमहंस जी अपने समस्त शिष्यों और मठ की जिम्मेदारी नरेंद्र को देकर इस संसार से प्रयाण कर गए। सन्यासी नरेंद्र अब विविदिशानंद हो गए। उनके मस्तिष्क में अनेक प्रकार के द्वंद चलते रहे थे। व्यक्तिगत आत्म उन्नति और समाधि सुख की ओर जाए अथवा संसार की सेवा की तरफ जाए। इस द्वंद में ही उन्होंने संपूर्ण भारत का पैदल ही दो बार भ्रमण किया। भ्रमण के दौरान भारत की अत्यंत दयनीय अवस्था को वे देखते गए। उन्होंने चिंतन किया कि भारत गौरवशाली, वैभवशाली स्थिति से इतना पतन की अवस्था में किस प्रकार आ गया।...

कैलाश पर शिव पूजन को तैयार रहिए

चित्र
चित्र साभार गूगल आज हर भारतवासी देशभक्त के मन मस्तिष्क में अनेक प्रश्न घूम रहे हैं। क्या हम बिना वीजा परेशानी के कैलाश यात्रा कर सकेंगे? क्या तिब्बत की निर्वासित सरकार बहाल हो सकेगी? क्या दक्षिण हिमालय जो सदियों से हमारा है, वह ड्रैगन के दखल से मुक्त हो सकेगा? क्या भारत चीन को उसकी भाषा में जवाब दे सकेगा? राष्ट्रभक्त का उत्तर निश्चय ही हां में होगा। उसके उतर के कुछ आधार है। आज आनेक आशंकाओं और आशाओं के बीच भारतीय जनमानस झूलता दिखाई दे रहा है।ऐसे कठिन प्रश्नों का उत्तर तो कोई विदेशनीति विशेषज्ञ, अर्थशास्त्री और सैन्य विशेषज्ञों का पैनल ही दे सके। किंतु एक आशावाद भारतीय को आशा की किरण दिखाई देने लगी है। उसे लगने लगा है कि उसने सही हाथों में केंद्र की सत्ता सौंपी है। जिसके कदम कैलाश की ओर बढ़ने ही वाले हैं। लगता है देश के नेतृत्व ने कैलाश मानसरोवर में स्नान कर कैलाश पर्वत पर विराजित महादेव के पूजन के पंचपात्र तैयार कर लिए हैं। गंगाजली भी भर कर रखी हुई है। आइए जानते हैं, क्या है नेतृत्व के पंचपात्र? एक एक कर क्रमशः समझते हैं:- चित्र प्रतीकात्मक 1) पहला पात्र विदेशनीति:- पिछले 6 वर्षों में...