काव्य

जो नर निराश नही होते। जीवन में सफल वही होते। जो वृत लेते नित कर्मों का। औरों की आस नही रखते। निज पौरुष केबल वेही सदा। अमृत का पान किया करते। आओ हम भी भाग्य जगाएं। अपने भुजबल धरती तोलें। निज जीवन उज्ज्वल करें। औरों की आस विश्वास बनें। पीड़ित शोषित मानवता की। निःस्वार्थ सेवा का वृत धारें। ध्येय एक ही भारत जय हो। सतत- सजग- अडिग चलें। धुन के धनी हे "मनमोहन"। लक्ष्य पे लक्ष्य गढते जाते।