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अक्तूबर 18, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विजयादशमी पर विशेष: सांस्कृतिक राष्ट्रभाव की ओर बढ़ता भारत का मूल समाज

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जड़ों की तरफ बढ़ते कदम- वर्तमान में भारत अपनी जड़ों की तरफ कदम बढ़ा चुका है। भारत अपने उस अतीत की ओर जो गौरवशाली है, उस अतीत की ओर जो वैभवशाली है लौट रहा है। आज उन करोड़ों भारतीयों का जीवन उद्देश्य साकार रूप ले रहा है, जो परतंत्रता के काल में सैकड़ों वर्षो के दौरान इस वैभवशाली स्थिति को प्राप्त करने के लिए संघर्षरत रहे है। भारत आज पुनः भारतवर्ष बनने की ओर कदम बढ़ा चुका है। भारत की सर्वांगीण सुरक्षा, स्वतंत्रता और विकास के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास प्रारंभ हो रहे हैं। वास्तव में इस सबके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1925 से अविरत कार्यरत है। इस दिशा में अपनी स्थापना दिवस विजयादशमी के अवसर पर संघ प्रतिवर्ष एक कदम और आगे बढ़ जाता है। संघ राष्ट्र जागरण का एक मौन सशक्त आंदोलन बन चुका है। संघ स्वयंसेवकों का प्रखर राष्ट्रवाद आज भारत के कोने कोने में देश प्रेम, समाजसेवा, हिंदू जागरण और राष्ट्रीय चेतना की अलख जगा रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले विशाल हिंदू समाज के प्रत्येक पंथ, जाति, वर्ग के अनुयायियों की सम्मिलित विजयशालिनी शक्ति के आज जो दर्शन हो रहे हैं, उसके पीछे संघ का ही अथक, अविरत पर...

कृषि बिल पर विपक्ष का विरोध एक षड्यंत्र

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लगभग एक माह पूर्व संसद के दोनों सदनों से पास हुआ कृषि बिल राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अधिनियम/कानून का रूप ले चुका है। यह अधिनियमन किसानों को इस बात का अधिकार दे रहा है कि वे अपनी कृषि उपज को प्रतिस्पर्धात्मक बाज़ार मूल्यों पर अपने राज्य के अंदर अथवा देश के किसी भी हिस्से में बिना किसी बाधा के बेच सकें और अधिक लाभ ले सकें। किसानों की आर्थिक स्थिति में तभी सुधार आ सकता है जब उनकी उपज को लागत मूल्य से अधिक कीमत मिल रही हो। यह अधिनियमन किसानों को न केवल कृषि उपज के मूल्य निर्धारण करने में सहायता करेगा बल्कि अब उन्हें इस बात का भी अधिकार भी देगा कि वे अपनी फसल का भंडारण और ख़रीद-फरोख्त किस तरह और कहां कर सकते हैं। यह जगह किसी किसान के खेत की मेड़ भी हो सकती है और किसी फ़ैक्टरी का परिसर भी। अभी तक की व्यवस्था में किसानों के सामने इस बात की बाध्यता थी कि वह अपनी उपज मंडी में अथवा सरकार द्वारा निर्धारित एवं निर्दिष्ट स्थान पर ही बेच सकते थे। अब तक तो किसान को उसकी उपज का मूल्य निर्धारण सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य(MSP) से काफी कम कीमत पर किया जाता रहा और उसके सामने इस कम मूल्य...

आरएसएस में ऐसा क्या है जो नौजवानों को आकर्षित करता है।

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किसी ने पूछा-  आरएसएस से जुड़ने से मुझे क्या फायदा और नुकसान होगा? तो जानिए- समकालीन भारत में राजनीतिक बदलाव के पीछे हिन्दुत्व की विचारधारा और उसके वाहक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की निर्विवादित रूप से केन्द्रीय भूमिका है। यह बदलाव असाधारण है। इसने न सिर्फ स्थापित राजनीति को निष्प्रभावी किया बल्कि वैकल्पिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टिकोणों को बढ़ती हुई स्वीकृति के साथ स्थापित करने का काम किया है। भारत में वैचारिक संघर्ष और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कोई नई बात नहीं है। जिन्हें यह परिवर्तन अचानक और अप्रत्याशित लगता है वे सम्भवतः देश के भीतर दशकों से हो रहे ज़मीनी स्तर के बदलाव को न समझ पाए हैं और न ही आज भी समझने की कोशिश कर रहे हैं। संघ के प्रभाव के पीछे बीस के दशक से ही पीढ़ी दर पीढ़ी युवाओं का आकर्षण रहा है। आज इसे भारत के युवाओं का भारी समर्थन मिला हुआ है। स्वभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि कथित रूप से प्रगतिशीलता, बदलाव और क्रांति की बात करने वाली विचारधाराएं हाशिए पर क्यों चली गईं ? स्वयंसेवकों के साथ समाज की सज्जन शक्ति को गतिविधियों में जोड़ें जिन्हें वे पश्चिम के बुद्धिजी...

कोविड महामारी और बच्चो की पढ़ाई

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यह सर्वकालिक सत्य है कि बड़ी कक्षाओं के छात्रो को स्व अध्ययन करने की ओर प्रवृत्त करना चाहिए जिससे कि वे स्वयं अध्ययन कर तथ्यों को समझ सके।। जो छात्र स्व अध्ययन करने के अभ्यस्त हो जाते हैं वे जीवन भर हर अध्ययन कक्षा में श्रेष्ठ परिणाम देते ही हैं। इसके लिए शिक्षक और अभिभावक छात्रों को प्रेरित करने के साथ ही साथ इसका अभ्यास भी करवाएं यह ज़रूरी है, तभी वे अध्ययन कर पाएंगे। कोविड-19 महामारी काल में प्रत्यक्ष कक्षा शिक्षण बाधित हुआ है। कक्षाओं में एक साथ लंबे समय तक अधिक संख्या में छात्रों को बुलाकर शिक्षण करवाया जाना कब प्रारंभ हो सकेगा ऐसा स्पष्ट कहा नहीं जा सकता। ऐसे में शिक्षकों के बिना अध्ययन कराया जाना बाधित ही होगा। शिक्षा विभाग के अधिकारी, शिक्षाविद और अभिभावक इस दिशा में चिंतित भी है और विकल्प की तलाश में बही है। छात्रों को घर बैठे ही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से जोड़े रखने के लिए आनन-फानन में जो निर्णय लिया गया था, वह था ऑनलाइन शिक्षण का। पिछले एक-दो माह में इस विकल्प को उपयोग में लेते हुए हम सब ने इसकी खूबियों को भी जाना तो इसकी सीमाओं की भी जानकारी हुई। ऑनलाइन शिक्षण के साइड इफेक्ट ...

भारत क्यों 800 वर्षों तक गुलाम रहा?

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 भारत क्यों 800 वर्ष गुलाम रहा? इसका उत्तर, जम्मू कश्मीर के पूर्व CM फारूक अब्दुल्ला के हालिया वक्तव्य में मिल जाता है।  एक टीवी चैनल द्वारा पूछे चीन संबंधी सवाल पर अब्दुल्ला कहते हैं, 'अल्लाह करे कि उनके जोर से हमारे लोगों को मदद मिले और अनुच्छेद 370-35ए बहाल हो।' फारूक का यह वक्तव्य ऐसे समय पर आया है, जब सीमा पर भारत-चीन युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं।  यह न तो कोई पहली घटना है और न ही फारूक ऐसा विचार रखने वाले पहले व्यक्ति। वास्तव में, फारूक उन भारतीयों में से एक हैं, जो 'बौद्धिक दासता' रूपी रोग से ग्रस्त हैं। यह पहली बार नहीं है, जब 'व्यक्तिगत हिसाब', 'महत्वाकांक्षा' और 'मजहबी जुनून' पूरा करने और सत्ता पाने की उत्कंठा में कोई जन्म से 'भारतीय'देश के प्रति अपनी संदिग्ध निष्ठा के साथ या विदेशी शक्तियों के हिमायती के रूप में सामने आया हो। क्या मीर जाफर ने बंगाल का नवाब बनने की लालसा में प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की मदद नहीं की? क्या यह सत्य नहीं कि जयचंद, पृथ्वीराज चौहान से निजी रंजिश के कारण विदेशी इस्लामी आक्रांता मोहम्मद गौरी से जा मि...

राष्ट्रीय शिक्षा नीति और हमारी ज्ञान विरासत-1

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वासुदेव प्रजापति आदिकाल से अखिल विश्व को देती जीवन यही धरा, गौरवशाली परम्परा। सघन ध्यान एकाग्र ज्योति से, किये गहनतम अनुसन्धान। कला शिल्प संगीत रसायन, गणित अणु आयुर्विज्ञान। सभी विधायें आलोकित कर, महिमा मय भूलोक वरा।। गौरवशाली परम्परा।। हमारे देश की ज्ञान परम्परा अति प्राचीन एवं गौरवशाली रही है। पश्चिमी जगत को जब पहली बार भारतीय ज्ञान तथा साहित्य की एक झलक मात्र मिली तो वह विस्मय-चकित हो गया। सन 1789 में विलियम जोन्स ने जब कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम् व पंडित नारायण लिखित हितोपदेश पढ़ा तो उसका मन मयूर नाँच उठा। उसने उसी समय दोनों रचनाओं का अनुवाद कर लिया। सन 1794 में मनु के धर्मशास्त्र का परिचय मिला तो उसका भी लैटिन में अनुवाद कर लिया गया। सन 1801 में अन्तकुवेतिल दुपरोन ने दारा शिकोह कृत उपनिषदों के फारसी अनुवाद का लैटिन में ओपनेखत (उपनिषद्) नाम से अनुवाद कर लिया। उपनिषदों के अनुवाद को पढने के प्रसिद्ध जर्मन विद्वान शोपन हॉवर ने कहा – “उपनिषद् सर्वोच्च मानव बुद्धि की उपज है। यह मेरे जीवन के लिए शान्ति का आश्वासन रहा है और मेरी मृत्यु के बाद तक बना रहेगा।” सन 1805 में हेनरी कोलब्रुक...