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नवंबर 22, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक घुमक्कड़ फक्कड़

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Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) #यहाँ_दीपक_नहीं_जीवन_जलते_हैं... आज जो लिख रहा हूँ... मुझे अपने पर विश्वास नहीं कि इन संवेदनाओं को शब्द दे भी पाऊँगा या नहीं..?? इसीलिए केवल पढ़ने से समझ नहीं आएगा.. और महसूस करने पर कुछ शेष नहीं रहेगा...!! क्योंकि शब्द विचारों को व्यक्त कर सकते हैं किंतु संवेदनाओं को नहीं..!! लेकिन यदि ईश्वर है तो आज मेरी सहायता ज़रूर करेगा। हमारे साथ ही एक प्रचारक हैं “फक्कड़”... जो कुछ हैं इसी नाम की तरह ही हैं। (संघ का प्रचारक अविवाहित रहता है, संघ जहाँ और जिस काम में भेजता है.. अपने पूरे सामर्थ्य से वही काम करता है) हमेशा हँसता, खिल-खिलाता... निश्छल व्यक्तित्व.. निराशा भरे वातावरण में आशा और साहस भरने वाला साहचर्य.. जीवंतता की प्रतिमूर्ति.. अल्हड़पन और मौज में उनका कोई सानी नहीं...!! अपने माता-पिता के एकलौते पुत्र, माँ का कुछ समय पहले कैन्सर से लड़ते-लड़ते देहावसान हो गया..पिताजी मानसिक पीड़ा के शिकार। घर में कोई देखरेख करने वाला नहीं... सब भगवान भरोसे...!!! कुछ दिनों पहले अपनी प्रचारक टोली के साथ ही कहीं घूमने गये थे। धार्मिक स्थल पर गये.. इसलिए पहुँचते ही एक पंड...

समय को बांधने वाले महावीर जी

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22 नवम्बर/जन्म-दिवस” संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री महावीर जी का जन्म 22 नवम्बर, 1951 को  वीरों की भूमि पंजाब में मानसा जिले के बुढलाड़ा में हुआ था। श्री दीवान चंद छाबड़ा उनके पिता और श्रीमती कृष्णा देवी उनकी माता जी थीं। विभाजन के बाद उनका परिवार बुढलाड़ा में आकर बस गया। श्री दीवान चंद जी पुराने स्वयंसेवक थे। बुढलाड़ा में भी वे नगर कार्यवाह के नाते काम करते रहे। अतः संघ का विचार महावीर जी को घर में ही प्राप्त हुआ। इसके बाद में शाखा जाने पर ये विचार क्रमशः संस्कार बन गये और संघ का काम ही उनके मन और प्राण की धड़कन बन गया।  वीरांगना झलकारी बाई महावीर जी की प्रारम्भिक शिक्षा बुढलाड़ा में ही हुई। वहां पर ही वे स्वयंसेवक बने। इसके बाद उन्होंने मानसा से बी.एस-सी. तथा फिर पंजाब वि.वि. चंडीगढ़ से सांख्यिकी में प्रथम श्रेणी में एम.एस-सी. किया। शिक्षा पूरी कर 1972 में वे प्रचारक बन गये। उनके प्रचारक जीवन का काफी भाग हिमाचल प्रदेश में बीता। मंडी व शिमला में जिला प्रचारक के बाद वे कांगड़ा में विभाग प्रचारक रहे। इसके बाद उन्हें हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर को मिलाकर बनाये गये ‘हिमगिरि’ प्रांत के सहप्...

वीरांगना झलकारी बाई

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“22 नवम्बर/जन्म-दिवस” भारत की स्वाधीनता के लिए 1857 में हुए संग्राम में पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कन्धे से कन्धा मिलाकर बराबर का सहयोग दिया था। कहीं-कहीं तो उनकी वीरता को देखकर अंग्रेज अधिकारी एवं पुलिसकर्मी आश्चर्यचकित रह जाते थे। ऐसी ही एक वीरांगना थी झलकारी बाई, जिसने अपने वीरोचित कार्यों से पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया। झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर, 1830 को ग्राम भोजला (झांसी, उ.प्र.) में हुआ था। उसके पिता मूलचन्द्र जी सेना में काम करते थे। इस कारण घर के वातावरण में शौर्य और देशभक्ति की भावना का प्रभाव था। घर में प्रायः सेना द्वारा लड़े गये युद्ध, सैन्य व्यूह और विजयों की चर्चा होती थी। मूलचन्द्र जी ने बचपन से ही झलकारी को अस्त्र-शस्त्रों का संचालन सिखाया। इसके साथ ही पेड़ों पर चढ़ने, नदियों में तैरने और ऊँचाई से छलांग लगाने जैसे कार्यों में भी झलकारी पारंगत हो गयी। एक बार झलकारी जंगल से लकड़ी काट कर ला रही थी, तो उसका सामना एक खूँखार चीते से हो गया। झलकारी ने कटार के एक वार से चीते का काम तमाम कर दिया और उसकी लाश कन्धे पर लादकर ले आयी। इससे गाँव में शोर मच गया। एक बार ...