संस्कृत के श्लोक में छुपा गणितीय ज्ञान

देश में एक ऐसा वर्ग बन गया है जो कि संस्कृत भाषा से तो शून्य हैं परंतु उनकी छद्म धारणा यह बन गयी है कि संस्कृत भाषा में जो कुछ भी लिखा है वे सब पूजा पाठ के मंत्र ही होंगे जबकि वास्तविकता इससे भिन्न है। देखते हैं - "चतुरस्रं मण्डलं चिकीर्षन्न् अक्षयार्धं मध्यात्प्राचीमभ्यापातयेत्। यदतिशिष्यते तस्य सह तृतीयेन मण्डलं परिलिखेत्।" बौधायन ने उक्त श्लोक को लिखा है ! इसका अर्थ है - यदि वर्ग की भुजा 2a हो तो वृत्त की त्रिज्या r = [a+1/3(√2a – a)] = [1+1/3(√2 – 1)] a ये क्या है ? अरे ये तो कोई गणित या विज्ञान का सूत्र लगता है शायद ईसा के जन्म से पूर्व पिंगल के छंद शास्त्र में एक श्लोक प्रकट हुआ था।हालायुध ने अपने ग्रंथ मृतसंजीवनी मे , जो पिंगल के छन्द शास्त्र पर भाष्य है , इस श्लोक का उल्लेख किया है - परे पूर्णमिति। उपरिष्टादेकं चतुरस्रकोष्ठं लिखित्वा तस्याधस्तात् उभयतोर्धनिष्क्रान्तं कोष्ठद्वयं लिखेत्। तस्याप्यधस्तात् त्रयं तस्याप्यधस्तात् चतुष्टयं यावदभिमतं स्थानमिति मेरुप्रस्तारः। तस्य प्रथमे कोष्ठे एकसंख्यां व्यवस्थाप्य लक्षणमिदं प्रवर्तयेत्। तत्र परे कोष्ठे यत् वृत्तसंख्याजातं तत...