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नवंबर 15, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संस्कृत के श्लोक में छुपा गणितीय ज्ञान

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देश में एक ऐसा वर्ग बन गया है जो कि संस्कृत भाषा से तो शून्य हैं परंतु उनकी छद्म धारणा यह बन गयी है कि संस्कृत भाषा में जो कुछ भी लिखा है वे सब पूजा पाठ के मंत्र ही होंगे जबकि वास्तविकता इससे भिन्न है। देखते हैं - "चतुरस्रं मण्डलं चिकीर्षन्न् अक्षयार्धं मध्यात्प्राचीमभ्यापातयेत्। यदतिशिष्यते तस्य सह तृतीयेन मण्डलं परिलिखेत्।" बौधायन ने उक्त श्लोक को लिखा है ! इसका अर्थ है - यदि वर्ग की भुजा 2a हो तो वृत्त की त्रिज्या r = [a+1/3(√2a – a)] = [1+1/3(√2 – 1)] a ये क्या है ? अरे ये तो कोई गणित या विज्ञान का सूत्र लगता है शायद ईसा के जन्म से पूर्व पिंगल के छंद शास्त्र में एक श्लोक प्रकट हुआ था।हालायुध ने अपने ग्रंथ मृतसंजीवनी मे , जो पिंगल के छन्द शास्त्र पर भाष्य है , इस श्लोक का उल्लेख किया है - परे पूर्णमिति। उपरिष्टादेकं चतुरस्रकोष्ठं लिखित्वा तस्याधस्तात् उभयतोर्धनिष्क्रान्तं कोष्ठद्वयं लिखेत्। तस्याप्यधस्तात् त्रयं तस्याप्यधस्तात् चतुष्टयं यावदभिमतं स्थानमिति मेरुप्रस्तारः। तस्य प्रथमे कोष्ठे एकसंख्यां व्यवस्थाप्य लक्षणमिदं प्रवर्तयेत्। तत्र परे कोष्ठे यत् वृत्तसंख्याजातं तत...

डूबती कांग्रेस के बिलबिलाते चाटुकार

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विकल्पहीनता के चलते देशवासी न चाहते हुए भी विदेशी सोनिया माईनो के संगठन को ढ़ोते रहे थे। राजनैतिक, बौद्धिक रूप से सर्व सामर्थ्यवान वर्ग भी सता की मलाई के लालच में प्रतिपल अपमानित होकर भी सोनिया, राहुल एवं प्रियंका के चरण चाटुकार बनकर उनकी झूठी जय जयकार कर अपना हेतु सिद्ध करते रहे!  लेकिन अब कांग्रेस राजनीतिक रूप से मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई है। उसकी असहाय स्थिति का फायदा उठाकर कपिल सिब्बल जैसे थूककर चाटने वाले चाटुकारों में भी बोलने का साहस पैदा हो गया है! बिहार सहित अन्य राज्यों के उपचुनावों में कांग्रेस की दुर्गति पर आंसू बहाते हुए सिब्बल जैसा चापलूस विलाप कर रहा है। उसका कहना है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी में लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं होने के कारण वर्किंग कमेटी में शामिल सदस्य बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं! सत्य तो है लेकिन देरी से बोला गया है। शिक्षाविद गिजुभाई बधेका ढोंगी (कपिल सिब्बल) कह रहा हैं, कि जब पिछले 6 वर्षों से कांग्रेस पार्टी ने आत्ममंथन नहीं किया तो अब कौन आशा करे कि वो ऐसा करेगी। सत्य भी है संगठनात्मक रूप से पार्टी में क्या गड़बड़ी है, ये सभी को पता है। इसका जवाब...

शिक्षाविद गिजुभाई बधेका: 15 नवम्बर जन्म दिवस विशेष

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गिजुभाई बधेका को गुजरात में ‘मूछालीमाँ’ अर्थात ‘मूछोंवाली माँ’ के नाम से जाना जाता है। शिशु व बाल शिक्षा के संबंध में अनेक प्रयोग कर प्रचलित परम्परा से हटकर नई व्यवस्था के साथ शिक्षा पद्धति का आविस्करण किया। कहानी, बाल अभिनय गीत, नाटक और खेल के माध्यम से पढ़ाने की पद्धति प्रस्थापित की। बच्चों के लिए शिक्षक, लेखक, अभिनेता, कवि बने।। उत्तम शिक्षक निर्माण के लिए बाल अध्यापन मंदिर खोले। समाज में जागृति के लिए अभियान चलाया। माता-पिता, शिक्षकों और सरकार को बच्चों के प्रति दायित्व बोध कराया। पढ़ाई और अनुशासन के नाम पर हो रहे जुल्मों से बच्चों को स्वतंत्रता दिलवाने के लिए आन्दोलन कर एक नए मार्ग का निर्माण किया। गुजरात राज्य के सौराष्ट्र विस्तार के अमरेली जिल्ले के चीतल स्थान में 15 नवंबर, 1885 में उनका जन्म हुआ था। उनका पूरा नाम ‘गिरिजाशंकर भगवानजी बधेका’ था। माता का नाम काशीबा था। महात्मा गांधी की तरह वकालत के झूठे दावों में ज्यादा रूचि नहीं टिकी। अपने पुत्र को उत्तम शिक्षा देने के लिए स्वयं एक शिक्षा शास्त्री बन गए। 23 जून, 1939 को हमने अनूठा बाल शिक्षा शास्त्री खो दिया। गिजुभाई की बालशिक्षा क...

भगवान राम का अयोध्या पुनरागमन और राज्याभिषेक

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तापस वेशधारी राम, जनकसुता सीता और सौमित्र लक्ष्मण को पुष्पक से उतरता देख शत्रुघ्न, कौशल्या-सुमित्रा-कैकेयी सहित सभी माताएं, गौतम, वामदेव, जाबालि, काश्यप, वशिष्ठ पुत्र सुयज्ञ सहित आठों मंत्री लपकते हुए आगे को बढ़े। परन्तु राम निश्चल खड़े रहे। उनकी दृष्टि अन्य किसी को नहीं देख रही थी, वे तो दूर टकटकी लगाए अनुज भरत को ही देख पा रहे थे। वे भरत जो राम को देख इतने विभोर थे कि पगों को आगे बढ़ाना ही भूल चुके थे। राम, भरत को इतनी तल्लीनता से देख रहे थे कि राम की ओर बढ़ रहे अन्य सभी लोग सकुचाए से खड़े रह गए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भी प्रेम के वशीभूत हो सामान्य मर्यादा का ध्यान न रख सके। अपने गुरुजनों, माताओं को यूहीं खड़ा छोड़ वे भरत की ओर बढ़ चले। भरत ने जब श्रीराम को अपनी ओर आता देखा तो उनकी तन्द्रा टूटी और वे जैसे गौधूलि बेला में कोई बछड़ा अपनी गौ माता को वन से वापस आता देख तड़पता-उछलता हुआ पास भागा चला आता है, राम के निकट दौड़े चले आये। श्रीराम ने अपनी भुजाएं फैला दी, परन्तु भरत ने राम की बांहों का मोह त्याग उनके चरण पकड़ लिए। कितने बड़भागी हैं वे, जिन्हें राम की खुली बाहें मिलती हैं, और...