108 की संख्या का महत्व ही क्यों जब हम माला करते है तो मन में अक्सर ये प्रश्न आता है कि माला में १०८ मनके ही क्यों होते है.इससे कम या ज्यादा क्यों नहीं ? हमारे धर्म में 108 की संख्या मह...
आने वाली चैत्रीय वर्ष प्रतिपदा हेतु स्वरचित :- बीत गया जो,बीत गया ! रात गई,बात गई ! बहुत कुछ अनचाहा हो गया... बहुत कुछ अनकिया रह गया ! चलो फिर से एक नई शुरूआत करें ! आने वाला है नव वर्ष ...
धर्म की विषय वस्तु भौतिक पदार्थ नही है फिर भौतिक विज्ञान से उसका तर्क निकलना क्यों? . विज्ञान की विषय वस्तु जगत है भौतिक है मेटीरियल है लौकिक है जबकि धर्म की ब्रह्म।धर्म को हमेशा सिद्ध ही किया जाएगा ये जरूरी नहीं है।ये अनुभूति का विषय है न की सिद्ध करने का।जैसे रदरफोर्ड समेत दुनिया के किसी भी वैज्ञानुक ने इलेक्ट्रोन प्रोटोन नही देखा पर उसके लक्षण देख कर अनुभब किया है इसी प्रकार ब्रह्म है। वो लोग इलेक्ट्रॉन प्रोटोन न्यूट्रॉन को कैसे मान लेते है?? क्या उन्होंने कभी उनको देखा?? फिर हम देखते है कि परमाणु विषयक सभी अवधारणा को नई अवधारणा ध्वस्त कर देती है मतलब पिछली फर्जी थी?? अवज्ञेयनिक?? अन्धविश्वास?? यह जरूरी नही की धर्म के हर विषय को आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धात की कसौटी पर कसा जाये और वह भी ऐसा विज्ञान जो स्वयम् स्थिर नही। हर नई अवधारणा पुरानी को गलत अर्थात अन्धविश्वाश सिद्ध करती है। वह समय आ गया जब हम अपने ऋषियों के अनुभूति जन्य ज्ञान विज्ञानं धर्म अध्यात्म की कसोटी पर आधुनिक विज्ञानं को कसें फिर उसे माने । आपका क्या विचार है?????