क्या था ऑपरेशन पोलो?
17 सितंबर 1948 को हैदराबाद के मेजर जनरल सैयद अहमद अल एदूर्स ने भारत के मेजर जनरल जयन्त नाथ चौधरी के सामने सिकन्दराबाद में आत्मसमर्पण कि करते हुए।
भारत की आजादी जितनी लगती है उतनी सरल न रही। भारत को खण्ड खण्ड करके छोड़ने का स्वप्न लिए अंग्रजों ने लंबे समय तक कुचक्र रचे। आम नागरिक से लेकर बड़े बड़े राजनीतिज्ञ इसमें उलझते गए। न केवल 2 हिस्सों में पाकिस्तान और बीच में हिंदुस्तान का षड्यंत्र खेला बल्कि हिंदुस्तान की 567 देशी रियासतों का कुनबा ऐसा ऐसा बिखेरा कि जैसे काले तिल का भरा कटोरा दिया हो और कह गए सहेज लो अपने हिंदुस्तान को! खास बात यह कि सबको आजाद रहने का अधिकार नामक जहर भी खिला गए। आपसी प्रेम भाईचारा, एक राष्ट्र की पहचान रूपी गुड़ गायब था।
देश के सामने एक विकट चुनौती थी। ऐसे में आधुनिक भारत के पुनरुद्धारक, रचनाकार लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल आगे आते है। उनके अथक प्रयास, कठोर निर्णय क्षमता, दृढ़ता, कूटनीतिक सूझबूझ, चतुराई सब कुछ का दर्शन भारत एकीकरण के दौरान हो गया।
इधर विभाजन के दौरान हैदराबाद भी उन शाही घरानो में से था जिन्हे अंग्रेजों द्वारा पूर्ण आजादी दी गई थी। सन् 1724 से सन् 1948 तक निजाम हैदराबाद राज्य के शासक थे। हालाँकि 1948 में उनके पास दो ही विकल्प बचे थे। भारत या पाकिस्तान में शामिल होना। ज्यादातर हिन्दू आबादी वाले राज्य के मुसलमान शासक और आखिरी निजाम ओस्मान अली खान ने आजाद रहने फैसला किया और अपने साधारण सेना के बल पर राज करने का फैसला किया। निजाम ने ज्यादातर मुस्लिम सैनिको वाली रजाकारों की सेना बनाई।
इधर भारत सरकार उत्सुकता से हैदराबाद की तरफ देख रही थी और सोच रही थी की हैदराबाद के निजाम खुद भारत संघ में सम्मिलित हो जायेंगे। लेकिन रजाकारों की सेना की दुर्दांतता बढ़ती जा रही थी। इधर मुस्लिम लीग के निर्माता जिन्ना के प्रभाव में हैदराबाद के निजाम नवाब बहादुर जंग ने लोकतंत्र को नहीं माना। नवाब ने काज़मी रज्मी को जो की एमआईएम (मजलिसे एत्तहुड मुस्लिमीन) का प्रमुख लीडर था, के द्वारा ने रजाकारों की सेना बनाई थी। इसमे लगभग 2 लाख सैनिक थे। मुस्लिम आबादी बढ़ाने की योजना करके उसने हैदराबाद में लूटपाट मचा दी। जबरन इस्लाम अपनाने का दबाव, हिन्दू औरतों के रेप, सामूहिक हत्याकांड करने शुरू कर दिए। क्योंकि वहां की हिन्दू बहुसंख्यक आबादी हैदराबाद को भारत में देखना चाहती थी। मीरपुर, नौखालिया नरसंहार उस समय अत्यधिक क्रूरतम घटनाएं हुई। पांच हजार से ज्यादा हिन्दुओ को रजाकार सेना मार चुकी थी। जो की आधिकारिक आंकड़े है। हैदराबाद के निजाम को पाकिस्तान से म्यांमार के रास्ते लगातार हथियार और पैसे की सहायता मिल रही थी।
ऑस्ट्रेलिया की कंपनी भी उन्हें हथियार सप्लाई कर रही थी। ऐसे में सरदार पटेल ने तय किया की इस तरह तो हैदराबाद भारत के दिल में नासूर बन जायेगा। उन्होंने आर्मी ऑपरेशन पोलो को प्लान किया। चूंकि यह सभी रियासतों में सबसे बड़ी एवं सबसे समृद्धशाली रियासत थी। जो दक्कन पठार के अधिकांश भाग को कवर करती थी। इस रियासत की अधिसंख्यक जनसंख्या हिंदू थी। जिस पर एक मुस्लिम शासक निजाम मीर उस्मान अली, शासन करता था। इसने एक स्वतंत्र राज्य की मांग की एवं भारत में शामिल होने से मना कर दिया। इसने जिन्ना से मदद का आश्वासन प्राप्त किया और इस प्रकार हैदराबाद को लेकर कशमकश एवं उलझनें समय के साथ बढ़ती गईं। पटेल एवं अन्य मध्यस्थों के निवेदनों एवं धमकियाँ निजाम के मानस पर कोई फर्क नहीं डाल सकीं थी। उसने लगातार यूरोप से हथियारों के आयात को जारी रखा। आखिर 13 सितंबर, 1948 के ‘ऑपरेशन पोलों के तहत भारतीय सैनिकों को हैदराबाद भेजा गया। 4 दिन तक चले सशस्त्र संघर्ष के बाद अंतत: 5 वें दिन अर्थात 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद के मेजर जनरल सैयद अहमद अल एदूर्स ने भारत के मेजर जनरल जयन्त नाथ चौधरी के सामने सिकन्दराबाद में आत्मसमर्पण किया।
इस तरह हैदराबाद भारत का अभिन्न अंग बन गया। इस तरह 13 महीने 2 दिन के इंतजार के बाद हैदराबाद आधुनिक भारत का अभिन्न अंग बन पाया।
17 सितम्बर 1948 का दिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वास्तव में एक निर्णायक मोड़ था। हैदराबाद की जनता की सामूहिक इच्छा-शक्ति ने न केवल इस क्षेत्र को एक स्वतंत्र देश बनाने हेतु निजाम के प्रयासों को निष्फल कर दिया बल्कि इस प्रांत को भारत संघ में मिलाने का भी निश्चय किया। जब 15 अगस्त 1947 को पूरा भारत स्वतंत्रता दिवस मना रहा था तो निजाम के राजसी शासन के लोग हैदराबाद राज्य को भारत में मिलाने की मांग करने पर अत्याचार और दमन का सामना कर रहे थे। हैदराबाद की जनता ने निजाम और उसकी निजी सेना 'रजाकारों' की क्रूरता से निडर होकर अपनी आजादी के लिए पूरे जोश से लड़ाई जारी रखी। यदि निजाम को उसके षड़यंत्र में सफल होने दिया जाता तो भारत का नक्शा वह नहीं होता जो आज है। यह सरदार पटेल का प्रखर राष्ट्रवाद ही था कि उन्होंने कठोरता और कूटनीति के समिश्रण को साधते हुए न केवल हैदराबाद नामक नाशूर बनने न दिया बल्कि समस्त भारत का गठन किया। इसलिए सरदार पटेल को आधुनिक भारत के शिल्पकार कहना कोई अतिशयोक्ति न होगी।
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