"बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार: इतिहास की गलतियों से सबक लेने का समय"
बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रही घटनाएं समस्त सनातनियों के लिए एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती हैं। जहां जहां हिन्दू कम हुआ वहां वहां इस्लाम का आतंक अराजकता फैलती गई। यह स्थिति हमारे समाज के लिए चिंतन का विषय है, क्योंकि यह उन ऐतिहासिक गलतियों की याद दिलाती है जो गांधी और नेहरू जैसे नेताओं के द्वारा की गई थीं। जब धर्म के आधार पर देश का विभाजन हो गया था तब सम्पूर्ण जनसख्या की अदला बदली हो जानी चाहिए थी। किन्तु जिन नेताओं के प्रति हिंदू समाज ने लंबे समय तक आस्था बनाए रखी, आज उनकी नीतियों के परिणामस्वरूप हिंदू समाज को गंभीर परिणाम भुगतने पड़े हैं।
जिन क्षेत्रों अफगानिस्तान और पाकिस्तान में हिंदू समुदाय लगभग समाप्त हो गया, और बांग्लादेश में भी यह संख्या 33% से घटकर मात्र 7% रह गई है। यह एक ऐसा आंकड़ा है जो समाज को झकझोर देता है। स्थितियां यहां तक ही नही रुक रही है। भारत के अनेक राज्यो में हिन्दू अल्प संख्यक हो गया है। सीमावर्ती अनेक जिले है जो जहां से हिन्दू विलुप्त हो रहा है। आज दुनिया भर में इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर आवाज उठाने वाले इंडी गठबंधन के नेता, बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा और अत्याचारों पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह मौन न केवल उनके दोहरे मापदंडों को उजागर करता है, बल्कि उनकी कुत्सित मानसिकता को भी उजागर करता है। ये भारतीय राजनीति में एक गंभीर समस्या बन चुके हैं।
कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि बांग्लादेश के हिंदुओं की स्थिति से भारत को कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे बांग्लादेशी हैं। यह समझिए, यह दृष्टिकोण वही है जो 1947 के विभाजन के समय महात्मा गांधी ने अपनाया था। उन्होंने खलीफा के समर्थन में भारत के हिंदुओं की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया था। स्टैनली वोलपार्ट ने अपनी पुस्तक "जिन्ना व पाकिस्तान" (1984) में लिखा है कि जब खिला फत आंदोलन समाप्त हुआ, तो पूरे भारत में मुसलमानों ने हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण, और अन्य अत्याचार किए। उस समय भी गांधी ने इन घटनाओं पर मौन साध लिया था। उस वक्त का मौन आज के मौन से कमतर अपराध नहीं है।
आज की कांग्रेस और इंडी गठबंधन भी गांधी के इसी दोहरे मापदंड का अनुसरण कर रहे हैं। दशकों पहले कांग्रेस ने जो षड्यंत्र सनातन धर्म के खिलाफ रचा था, वही आज भी सेकुलरिज्म के नाम पर चलाया जा रहा है। उस समय भी गांधी और नेहरू को हिंदू समाज के हितैषी मानने की भूल हुई थी, और आज भी हिंदू समाज का एक बड़ा वर्ग इसी भूल को दोहरा रहा है, जिससे देश संकट में पड़ रहा है। एक बार की भूल से हिन्दू समाज ने कुछ न सीखा बार बार वही भूल दोहराता जा रहा है और स्वयं के अस्तित्व को खतरे में डालता जा रहा है।
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा और अन्य अमानवीय कृत्यों पर इंडी गठबंधन के किसी नेता का ध्यान नहीं है। यह स्थिति केवल बांग्लादेश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संकेत देती है कि यदि सनातन समाज अतीत से सीख नहीं लेता, तो वह भविष्य में भी तथाकथित सेकुलरों के हाथ का खिलौना बना रहेगा।
इसलिए, हिंदू समाज को सतर्क रहना चाहिए और उन गलतियों से सबक लेना चाहिए जो पहले हो चुकी हैं, ताकि भविष्य में वह अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए सही निर्णय ले सके।
आवाज उठनी चाहिए
जवाब देंहटाएंजोर से होनी चाहिए
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