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भारत की ताकत हिंदी


अपनी बात : भारत की ताकत है हिन्दी

बात पखवाड़े भर पहले की है। स्वाधीनता दिवस के मौके पर भारत में शुभकामना संदेशों की साझेदारी जिस समय पूरे जोरों पर थी ठीक उसी समय ट्विटर की चौपाल पर #stopimposinghindi का नारा बार-बार अलग-अलग संदेशों में लहराने लगा।
स्वतंत्रता की वर्षगांठ पर लोगों के मन में हिन्दी विरोध की गांठ लगाने वाले लोग कौन हो सकते हैं, इस सवाल को बूझने का सबसे सही समय हिन्दी पखवाड़ा ही है।
हिन्दी के प्रति वैमनस्य खड़ा करने वालों को उनकी इच्छा और भय के संदर्भ में समझना चाहिए। उपरोक्त नारे और इसे उछालने के मौके के चयन से दो बातें एकदम साफ हैं। पहली यह कि हिन्दी विरोध भले बात अन्य भारतीय भाषाओं की करता दिखे, लेकिन आता वह अंग्रेजी का लबादा ओढ़कर ही है। यानी, भारतीय भाषाओं को आपस में लड़ाकर राष्ट्रभाषा के शीर्ष स्थान पर खालीपन पैदा करना ही इस विरोध की मंशा रहती है। दूसरी, भारत को एक सूत्र में बांधने की हिन्दी की शक्ति उन लोगों को डराती है जो आज भी राष्ट्र व्यवस्थाओं को परतंत्रता की अंग्रेजी जंजीरों में बांधे रखना चाहते हैं।

भारत में हिन्दी से आमने-सामने की लड़ाई अंग्रेजी के बूते की बात नहीं। भारतीय भाषाओं के उस भरे-पूरे परिवार से अंग्रेजी थरथराती है जिसकी अगुआ हिन्दी है। इसमें संदेह नहीं कि बांटो और राज करो की ब्रिटिश तर्ज पर अंग्रेजी के व्यूहकार भारतीय भाषा परिवार को बांटना चाहते हैं।
हिन्दी के अन्य भाषाओं से विरोध या इसे थोपे जाने की बात अपने आप में मूर्खतापूर्ण है। हिन्दी भला तमिल, कन्नड़, मलयालम या बंगाली की विरोधी कैसे हो सकती है? गंगा भला यमुना, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा या तीस्ता की विरोधी कैसे हो सकती है? इसी भूमि की अपनी अन्य भगिनी भाषाओं से दुराव का प्रश्न हिन्दी के मन में नहीं उठता। गुजराती, बंगाली, मराठी बोलियों के अलग-अनूठे शब्द अपनी झोली में भरती और पूरे देश में समझी-बोली जाती हिन्दी की ताकत यह है कि इसने समाचार, विज्ञापन, बाजार, राजनीति जैसे हर मोर्चे पर अंग्रेजी को धूल चटाई है। अपनी विमर्शकारी भूमिका का भ्रम बचाने की उधेड़बुन में लगे अंग्रेजी के समाचार पत्र और चैनल कई हिन्दी अखबारों के स्थानीय संस्करणों के सामने बौने हैं। विदेशी कंपनियों के उत्पादों को हिन्दी के कंधे पर चढ़े बिना बाजार नहीं मिलता। राजनीति के मंचों पर अंग्रेजी चमक वाले मोहरे पिट चुके हैं।
सवाल है कि यदि हिन्दी का ऐसा डंका बज रहा है तो फिर चिंता की बात ही क्या है? फिर अंग्रेजी है कहां? उत्तर है, अंग्रेजी भारतीय व्यवस्था की ब्रिटिशकालीन मांदों में छिपी है। देश स्वतंत्र हुआ परंतु व्यवस्था के ‘इंग्लिश उपासक’ कर्णधार हिन्दी जनाधार को दुहते रहे।
सवार्ेच्च न्यायालय के कामकाज में, नौकरशाही की टिप्पणियों में, हर नीतिगत विमर्श के संचालन सूत्रों में, अंग्रेजी की घुसपैठ हर उस जगह पर गहरी है जहां यह ज्यादा घातक है।
संविधान निर्माता अंग्रेजी को ज्यादा छूट और बढ़ावा देने के पक्षधर नहीं थे। 15 वर्ष के संक्रमण काल में, 1965 तक भारत को अंग्रेजी का जुआ उतारकर स्वभाषा पर आना था। लेकिन संविधान निर्माताओं की इच्छा का पालन करने में पर्याप्त राजनैतिक रुचि नहीं दिखाई गई। महात्मा गांधी ने जिस भाषा के सहारे इस देश को जगाया, सुभाष बाबू और भगत सिंह के ओजस्वी आह्वानों का आधार बनी उस हिन्दी के प्रति सत्ता के केन्द्र निष्ठावान नहीं रहे। इसके उलट भारतीय भाषाओं को हिन्दी के विरोध में लामबंद करने के राजनैतिक षड्यंत्र किए गए।
वैसे, स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हिन्दी के विरुद्ध अभियान छेड़ने वाले भले ही ट्विटर पर जरा देर में उखड़ गए हों, राष्ट्रविरोधी कंदराओं में स्वाधीनता के 68 वर्ष बाद भी जमे हुए हैं। जरूरत इन तत्वों की पहचान करने और समस्या का उपचार करने की है। हिन्दी को मजबूत करना राष्ट्र को मजबूत करना है। उसे नीति निर्धारण में सम्मानजनक स्थान दिलाना देश के उन विभिन्न भाषा-भाषी समूहों में आत्मविश्वास भरना है जो अंग्रेजी के सामने लड़खड़ाते हैं और हिन्दी की छांह में राहत पाते हैं।
भारतीय भाषाओं से पर्याप्त पर्यायवाची शब्दों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देते हुए, तकनीकी शब्दावलियों को सहज हिन्दी शब्दों में उतारने का प्रयास करते हुए, कंप्यूटर पर लिखाई और छपाई की दृष्टि से हिन्दी अक्षरों को सार्वभौमिक तौर पर स्वीकार्य सुन्दर-सुस्पष्ट रूप से तैयार करते हुए हिन्दी को बढ़ाना आज की आवश्यकता है। बिना शासकीय प्रश्रय के हिन्दी की इतनी शक्ति है तो जरा सहारा लगने पर यह राष्ट्र की सामूहिक चेतना का कैसा चमत्कारिक सूत्र साबित हो सकती है… जरा सोचिए!

हिंदी भाषा से जुड़े ऐसे कई फैक्ट हैं जिन्हें हम आप नहीं जानते हैं

राष्ट्रीय एकता की प्रतीक है “हिन्दी”

14 सितंबर, 1949 के दिन ही हिंदी को हिंदुस्तान में राजभाषा का दर्जा दिया गया था. तब से हर साल इस दिन हिंदी दिवस मनाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है?? इसके पीछे भी एक वजह है.
भारत में बोली जाती हैं सैकड़ों भाषाएं और बोलियां
साल 1947 में जब अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ तो देश के सामने भाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल था. भारत का अपना संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हुआ. देश को चलाने के लिए जिन भी कानूनों की आवश्यकता थी उन सबका निर्माण हो चुका था।
लेकिन भारत की राष्ट्रभाषा किस भाषा को चुना जाए ये काफी अहम मुद्दा था. काफी सोच विचार के बाद हिंदी और अंग्रेजी को राष्ट्र की भाषा चुन लिया गया. संविधान सभा ने सर्वसहमति से देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार कर लिया था. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी.
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि इस दिन का महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाएगा.आपको ये भी बता दें पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया था।
अब आपको हिन्दी भाषा के कुछ ऐसे रोचक तथ्य बताते हैं जो आपने इससे पहले कभी ना कभी सुने होंगे ना पढे होंगे।
हिन्दी शब्द फारसी शब्द ‘हिन्द’ से आया है, जिसका मतलब ‘सिंधु नदी के समीप रहने वाले लोग. 11वीं सदी में जब तुर्कों ने पंजाब और गंगा के मैदानी इलाकों पर हमला किया, तब उन्होने हिन्द शब्द का इस्तेमाल यहां रहने वाले लोगों के लिए किया। दरअसल ये भाषा अभ्रंश है, तुर्क लोग ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ करते थे। इसलिए सिंध का हिन्द हो गया।
भारतीय संविधान ने 14 सितंबर 1949 में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा मिला था. दिया. इसलिए हर साल हम 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाते हैं.
बिहार वो पहला राज्य था जिसने 1881 में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में चुना था।
2015 में एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में जो भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है वो ‘हिन्दी’ है।
हिन्दी दिवस 14 सितंबर और विश्वे हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है. सबसे पहले इसकी शुरुआत नागपुर से 1975 में हुई थी। वर्ष 2006 में इसे आधिकारिक दर्जा और विश्वभर में पहचान मिली.
हालांकि हिन्दी भारत की भाषा है लेकिन ये भारत के अलावा और भी कई देशों में बोली जाती है. जैसे- मॉरीशस, फ़िजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबेगो और नेपाल.
हिन्दी भाषा की सबसे रोचक बात ये है की हिन्दी शब्दों को जैसे बोला जाता है वैसे ही लिखा भी जाता है. इसलिए और भाषाओं की तुलना में इस भाषा को सीखना बहुत आसान है.
भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी है. हमारे देश के 77% लोग हिंदी लिखते, पढ़ते, बोलते और समझते हैं. हिंदी उनके कामकाज का भी हिस्सां है.
जंगल, कर्मा, योगा, बंगला, चीता, लूटपाट, ठग और अवतार आदि कुछ ऐसे शब्द हैं जिनका अँग्रेजी में भी प्रयोग किया जाता है। ये सभी शब्द हिन्दी भाषा से ही लिए गए हैं।
हिंदी का नमस्तेप शब्दज ऐसा शब्दद है जिसको सबसे ज्यादा बार बोला जाता है. एक अनुमान के मुताबिक हर पांच में से एक व्य क्ति हिंदी में इंटरनेट का उपयोग करता है.
वेब एड्रेस बनाने के लिए दुनिया की 7 भाषाओं का प्रयोग किया जाता है और गर्व की बात ये है की हिन्दी भी उनमे से एक है।
हिन्दी व्याकरण में 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं।
अमेरिका की 45 यूनिवर्सिटी और पूरी दुनिया की 146 यूनिवर्सिटीयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है।
एक चीनी न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 70% चीनी ही मंदारिन बोलते हैं. जबकि हिंदुस्तान में हिंदी बोलने वालों की संख्या 78% है। दुनियाभर में 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है. जबकि सिर्फ 20 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा, और 44 करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी या पांचवीं भाषा हिंदी है.
वैसे तो हिन्दी में ऐसे ना जाने कितने शब्द हैं जिनके एक नहीं अनेकों अर्थ निकलते हैं। उदाहरण के लिए- हरि एक ऐसा शब्द है, जिसके अनेकों अर्थ हैं:- जैसे भगवान, विष्णु, वायु, यमराज, हवा, इन्द्र, चन्द्र, सूर्य, शेर, किरण, घोड़ा, तोता, सांप, वानर और मेंढक, उपेन्द्र आदि।
आपको ये जानकार बड़ी हैरानी होगी की हिन्दी साहित्य का पहला लेखक हिंदुस्तानी नहीं था, ना ही वो कोई हिन्दू या मुसलमान था. वो लेखक फ्रांसीसी था जिनका नाम ग्रानिस द तैसी था।

आइए राष्ट्रभाषा हिन्दी को विस्तार पूर्वक समझने का प्रयास करते हैं…

हिन्दी
भारतीय भाषा

हिन्दी विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केन्द्रीय स्तर पर भारत में दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिंदुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है, क्योंकि भारत के संविधान में किसी भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। किन्तु एथनॉलोग (Ethnologue) के अनुसार हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है।

हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात की जनता भी हिन्दी बोलती है। फरवरी २०१९ में अबू धाबी में हिन्दी को न्यायालय की तीसरी भाषा के रूप में मान्यता मिली।
2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिंदी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में ८,६३,०७७; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिंदी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है।
इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी समान है। एक विशाल संख्या में लोग हिंदी और उर्दू दोनों को ही समझते हैं। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है।
हिन्दी भारत में सम्पर्क भाषा का कार्य करती है और कुछ हद तक पूरे भारत में आमतौर पर एक सरल रूप में समझी जानेवाली भाषा है। हिन्दी का कभी-कभी नौ भारतीय राज्यों के संदर्भ में भी उपयोग किया जाता है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिंदी है और हिन्दी भाषी बहुमत है, अर्थात् बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का।
‘देशी’, ‘भाखा’ (भाषा), ‘देशना वचन’ (विद्यापति), ‘हिंदवी’, ‘दक्खिनी’, ‘रेखता’, ‘आर्यभाषा’ (दयानन्द सरस्वती), ‘हिंदुस्तानी’, ‘खड़ी बोली’, ‘भारती’ आदि हिंदी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न संदर्भों में प्रयुक्त हुए हैं।
हिन्दी, यूरोपीय भाषा-परिवार परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्य उपशाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है। हिन्द-आर्य भाषाएँ वो भाषाएँ हैं जो संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। उर्दू, कश्मीरी, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, रोमानी, मराठी नेपाली जैसी भाषाएँ भी हिन्द-आर्य भाषाएँ हैं।

लिपि : देवनागरी
हिन्दी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी नाम से भी पुकारा जाता है। देवनागरी में ११ स्वर और ३३ व्यंजन हैं और अनुस्वार, अनुनासिक एवं विसर्ग होता है तथा इसे बायें से दाईं ओर लिखा जाता है।
हिंदी’ शब्द की उत्पत्ति
हिन्दी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत शब्द सिंधु से माना जाता है। ‘सिंधु’ सिंध नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिंधु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिंदू’, हिंदी और फिर ‘हिंद’ हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिंद शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द+ईक) ‘हिंदीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इन्दिका’ या अंग्रेजी शब्द ‘इंडिया’ आदि इस ‘हिंदीक’ के ही विकसित रूप हैं। हिंदी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्दी’ के ‘जफरनामा’(1424) में मिलता है।
प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने अपने ” हिंदी एवं उर्दू का अद्वैत ” शीर्षक आलेख में हिंदी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में ‘स्’ ध्वनि नहीं बोली जाती थी। ‘स्’ को ‘ह्’ रूप में बोला जाता था। जैसे संस्कृत के ‘असुर’ शब्द को वहाँ ‘अहुर’ कहा जाता था। अफ़ग़ानिस्तान के बाद सिंधु नदी के इस पार हिंदुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी ‘हिंद’, ‘हिंदुश’ के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को ‘एडजेक्टिव’ के रूप में ‘हिन्दीक’ कहा गया है जिसका मतलब है ‘हिन्द का’। यही ‘हिन्दीक’ शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में ‘इन्दिके’, ‘इन्दिका’, लैटिन में ‘इन्दिया’ तथा अंग्रेज़ी में ‘इण्डिया’ बन गया। अरबी एवं फ़ारसी साहित्य में भारत (हिंद) में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए ‘ज़बान-ए-हिन्दी’, पद का उपयोग हुआ है। भारत आने के बाद अरबी-फारसी बोलने वालों ने ‘ज़बान-ए-हिंदी’, ‘हिंदी ज़बान’ अथवा ‘हिंदी’ का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया। भारत के गैर-मुस्लिम लोग तो इस क्षेत्र में बोले जाने वाले भाषा-रूप को ‘भाखा’ नाम से पुकारते थे, ‘हिंदी’ नाम से नहीं।
हिन्दी के विभिन्न नाम या रूप

देशी भाषा, आदी भाषा, हिन्दवी, खड़ी बोली

हिन्दी भाषा का इतिहास

हिन्‍दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। हिन्‍दी भाषा व साहित्‍य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्‍था ‘अवहट्ठ’ से हिन्‍दी का उद्भव स्‍वीकार करते हैं। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसी अवहट्ठ को ‘पुरानी हिन्दी’ नाम दिया।
अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रांतिकाल कहा जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक संदर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रूप था – वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ।
अपभ्रंश के सम्बंध में ‘देशी’ शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में ‘देशी’ से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। प्रश्न यह कि देशीय शब्द किस भाषा के थे ? भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है ‘जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से भिन्न है। ये ‘देशी’ शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावत: अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परंतु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़ता है, प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयास हुये हैं :-
हिन्दी व्याकरण का मानकीकरण
वर्तनी का मानकीकरण
शिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा देवनागरी का मानकीकरण
वैज्ञानिक ढंग से देवनागरी लिखने के लिये एकरूपता के प्रयास
यूनिकोड का विकास

हिन्दी की शैलियाँ

हिन्दी संघ की राजभाषा है। इसके अलावा पीले रंग में दिखाये गये क्षेत्रों (राज्यों) की राजभाषा भी है।
भाषाविदों के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं :
(१) उच्च हिन्दी – हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे शुद्ध हिन्दी भी कहते हैं। आजकल इसमें अंग्रेज़ी के भी कई शब्द आ गये हैं (ख़ास तौर पर बोलचाल की भाषा में)। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी।
(२) दक्खिनी – उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं।
(३) रेख़्ता – उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था।
(४) उर्दू – हिन्दवी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है।
हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद ३४३, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिन्दी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है, इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार,तेलंगाना और दिल्ली में द्वितीय राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है।

राष्ट्रभाषा

यद्यपि राष्ट्रभाषा के विषय में भारतीय संविधान में कुछ भी नहीं कहा गया है किन्तु राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा कहा था। उन्होने 29 मार्च 1918 को इंदौर में आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। उस समय उन्होंने अपने सार्वजनिक उद्बोधन में पहली बार आह्वान किया था कि हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिये। उन्होने यह भी कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। उन्होने तो यहाँ तक कहा था कि हिन्दी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है।
आजाद हिन्द फौज का राष्ट्रगान ‘शुभ सुख चैन’ हिन्दी में था। उनका अभियान गीत ‘कदम कदम बढ़ाए जा’ भी हिन्दी में था।

हिन्दी का वैश्विक प्रसार

सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1997 में ‘सैन्सस ऑफ़ इंडिया’ का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अंग्रेजी भाषियों से अधिक है।
विश्वभाषा बनने के सभी गुण हिन्दी में विद्यमान हैं। बीसवीं शती के अंतिम दो दशकों में हिन्दी का अनतरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। हिंदी एशिया के व्यापारिक जगत् में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिंबित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिन्दी की मांग जिस तेजी से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों में 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिन्दी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई के ‘हम एफ-एम’ सहित अनेक देश हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, जर्मनी के डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिन्दी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
दिसम्बर २०१६ में विश्व आर्थिक मंच ने १० सर्वाधिक शक्तिशाली भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिन्दी भी एक है। इसी प्रकार ‘कोर लैंग्वेजेज’ नामक साइट ने ‘दस सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाषाओं’ में हिन्दी को स्थान दिया था। के-इण्टरनेशनल ने वर्ष २०१७ के लिये सीखने योग्य सर्वाधिक उपयुक्त नौ भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिया है।
हिन्दी का एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने और विश्व हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन को संस्थागत व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से ११ फरवरी २००८ को विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना की गयी थी। संयुक्त राष्ट्र रेडियो अपना प्रसारण हिन्दी में भी करना आरम्भ किया है। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाये जाने के लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। अगस्त २०१८ से संयुक्त राष्ट्र ने साप्ताहिक हिन्दी समाचार बुलेटिन आरम्भ किया है।

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