धर्म के पक्ष में युद्धरत का स्वागत करना सीखिए




     महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने वाला था। दोनो सेनाएं आमने सामने खड़ी थी। युधिष्ठिर ने आह्वान किया की-   

"मेरा पक्ष धर्म का है। जो धर्म के लिए लड़ना चाहते हैं, वे अभी भी मेरे पक्ष में आ सकते हैं। मैं उसका स्वागत करूंगा।" 

युधिष्ठिर की इस आह्वान के बाद जिन्हें कौरव पक्ष से पांडव पक्ष में आना था वो आया और धर्मयुद्ध में अपना योगदान दिया।

यहाँ महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि जो भी महारथी कौरव सेना से पांडव सेना में आये उनका सभी ने स्वागत किया न कि उनका इतिहास निकालकर-

पूर्व में उन्होंने किसका साथ दिया? क्या किया?
क्या कहा?
कैसे रहे?
इस पर विमर्श किया।
अब जी, यह तो हो गई द्वापर युग की बात।
अब कलयुग है। घोर कलयुग! यहाँ भी एक धर्मयुद्ध चल रहा है। मगर धर्म ध्वजा उठाये हुए तथाकथित वीर नीति की जगह उल जलूल प्रसंगों में लगे हुए हैं।

वो उनके पक्ष में आने वाले हर योद्धा का इतिहास खंगालेंगे। भले ही स्वयं कुछ वर्ष पहले तक वामपंथियों के नैरेटिव को जाने अनजाने में आगे बढाते रहे हों मगर इन्हें बाकि सभी लोग आदर्श के पुतले चाहिए। जरा भी इधर उधर हुआ तो वो इसे अस्वीकार कर देंगे। अब ऐसे विचार पर क्या घंटा कोई आपका साथ देगा।

अभी वर्तमान में फ़िल्म अभिनेत्री कंगना रनावत ने बॉलीवुड के ड्रग्स माफिया, एन्टी हिन्दू और एन्टी इंडियन नैरेटिव को सबके सामने लाने का काम किया। यही आप हम कर रहे थे और चाहते थे। मगर हमारी पहुंच?
हमारी स्वीकार्यता?
उतने बड़े जनसमुदाय में नही है जितना इस अभिनेत्री की है। कोई अन्य नेता, गायक, अभिनेता, अभिनेत्री अपने करियर के कारण खुल कर सामने नही आ रहा है।

आपके फिल्मी महानायक और क्रिकेट के अनेको भगवान सर्वदा मौन रहते हैं ऐसे मुद्दों पर। क्यूकी उनको मोटा माल बनाना है। ऐसे में एक प्रसिद्ध अभिनेत्री अब स्वयं ही धर्मयुद्ध में आगे आकर आपका साथ दे रही है तो उसका इतिहास खंगालकर, उसके ट्वीट्स निकालकर या उसके फिल्मों की तस्वीरें निकालकर आदर्श बघारकर आप अपना खुदका ही नुकसान कर रहे हैं। क्योंकि वो वह काम कर रही है जो आप करना चाहते थे या होते हुए देखना चाहते थे। मगर आपकी क्षमता उसे स्वयं कर पाने की नही थी। अतः ऐसे लोगों का खुले हृदय से स्वागत करें, जब तक वो आपके विचारधारा के लिए सहयोगी है।
जब धर्मराज युधिष्ठिर और योगेश्वर कृष्ण ने कौरव सेना के महारथियों तक को स्वीकार कर लिया तो आप की अति नैतिकता के मानदंड यथार्थता के धरातल से कोसो दूर नजर आते हैं। क्योंकि आप और हम स्वयं भी इन मानदंडों पर खरा नही उतर पाएंगे।

आदर्श के पुतलों सम्हल जाओ!

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