हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व

हाल ही में सोशियल मिडिया पर एक वीडियो सार्वजनिक हुआ है। जिसमे एक तेंदुआ शिकार करता है। उसका शिकार मादा जीव मरा हुआ है तभी तेंदुए की नजर उसके पेट से चिपटे बच्चे पर पड़ी। तेंदुआ चिंतित है उसके चेहरे पर पश्चाताप के भाव है। जेसे कोई भारी भूल हो गई है। तेंदुआ बच्चे को बचाने की जुगत में लगा है। उसे चाटता है। सहलाता है उठाकर सुरक्षित जगह ले जाता है।
दूसरी तरफ दुनियां में फैले बरबर आतंकी है। क्रोध घृणा क्रूरता मिश्रित भाव और नजर से पंक्ति में बिठाकर इंसानो उनके बच्चो और महिलाओं का सर कलम करते वीडियो बनाकर दुनिया को वीभत्स दृश्य बता रहे है। उनके दिलो दिमाग में रत्ती भर भी दया ममता करुणा तो छोड़ो कपङे कुकृत्य पर शर्म भी नहीं। लानत है ऐसे शांतिप्रिय लोगो और उनके चाहने वालो पर।ऐसे ही हजारो दृश्य मेरी नींद उड़ा देते है।

अपने भारत में ही आजादी के साथ बटवारे के दिनों में जबकि इंसानों को गाजर मुली की तरह काटा गया था, उस वक्त के दृश्य याद करके क्या आप की नींद उड़ नही जाती है ? दुनियाँ में इतना आतंक फैला है सब धर्म के नाम पर।
जब हम इन बातों को उजागर करते है तब लोग हमसे उल्टा सवाल पूछते है। हालाँकि इन बातों को करने का हमारा उद्देश्य साफ है कि हम केवल सामान्यतः अनभिज्ञ रहने वाले बन्धुओं को सजगता और सही जानकारी के उद्देश्य से ही बताते है। फिरभी छद्म सेकुलर प्रकार के हमारे बन्धू ही हमसे सवाल करते है। वे पूछते है:- क्या आप बता सकते हैं कि आप इस का अंत कैसे देखते हैं? क्या आप और आपका संघ ये चाहता है कि इस धरती से सारे ऐसे इंसानों को ख़त्म कर दिया जाए जो की मुस्लिम धर्म को मानते हैं? और फिर क्या आप शान्तिप्रिय हो जायेंगे? या फिर इसाई या दुसरे धर्म के लोगों को टारगेट बनायेंगे?
हमारा स्पस्ट जवाब है:- नही हम ऐसा कदापि नहीं सोचते है। हम भारत भूमि पर रहने वाले किसी भी व्यक्ति को पराया नही मानते है। हमने ऐसा विचार कभी नही रखा की सभी विधर्मियो को खत्म करदें। सङ्घ अपनी स्थापना से ही सह अस्तित्व का विचार लेकर चला है।यदि संघ के बारे में आपके ये विचार है तो आप बिलकुल भ्रमित है। किसी के विचार जानने का माध्यम दूसरों की कही-सुनी बातें जब होती है तब भ्रामकता ही होती है। आप सत्य जानने के स्थान पर सुनी हुई बात को ही सत्य स्थापित करने का दुराग्रह करते रहते है। संघ अपनी स्थापना 1925 से ही हिन्दू संघठन है। कभी भी एंटी मुस्लिम नही हैं। यह केवल दुष्प्रचार करने वालों का षड्यंत्र है। हमारा तो यह मानना है कि जो भी भारत माता को माता मानता है जो भारत माता की जय बोलता है यानि इस देश की संस्कॄति को मानता है वह हिन्दू  ही है। अगर आप सोचते है की सङ्घ अन्य धर्मावलम्बियों को मारना चाहता है तो यह आपका पूर्वाग्रह है। लोग बिना जाने ही तुच्छ व्यग्तिगत स्वार्थों के कारण भ्रामक बात फेलाते है। मेरा तो ऐसे लोगों से सीधा प्रश्न है कि आप लोग बताओ आप सङ्घ को कितना जानते हो?? आप सङ्घ के हिन्दू राष्ट्र के विचार के बारे में कितना जानते हो? कितना सङ्घ की कार्य पद्दति के बारे में कितना सङ्घ के सकारात्मक कार्यों के बारे में जानते हो। आप केवल नकारात्मक कुप्रचार के द्वारा ही सङ्घ के बारे में धारणा बनाकर बेठे है।मै तो कहता हूँ आप थोडा समय निकालो और अपने सङ्घ के बारे में जानो फिर किसी समय शंशय हो तो उसके बारे में चर्चा करो। हम मानते है हर भारत वासी सङ्घ में है सङ्घ यानि समस्त हिंदुओं का सांस्कृतिक सामाजिक संघठन। उनमे कुछ व्यक्ति आज स्वयंसेवक है कुछ कल होंगे।
स्वयंसवक बातों को घुमा फिराकर नही कहता वह सीधी सपाट बात करने का आदि है। विरोधी लोग बात को घुमाकर फिराकर  स्वयंसेवक को आक्रामक हत्यारा दक्षिणपंथी कुछ भी साबित कर देते है। इस देश का सत्यानाश बौद्धिक विलास के चलते चालाक कम्युनिष्ट प्रकार के ओर छद्म सेकुलर प्रकार के लिखकों  वक्ताओं ने ही किया है।

मेरे मित्र ऐसा भी कहते है कि किसी और पन्थ को मानाने वाले लोगों की नज़र में देश के लिए दुआ करने वाला, मुल्क की ख़ैरियत चाहने वाला, वतन में अमन की ख़्वाहिश रखने वाला कोई भी व्यक्ति मुस्लिम ही होता है। आप भी यदि मुल्क में आमन और चेन चाहते है मतलब आप भी मुस्लिम हुए।
मेरा मानना है कि धर्म और सम्प्रदाय बिलकुल अलग हैं। एक व्यक्ति धार्मिक हो सकता है बिना किसी सम्प्रदाय को माने। वही तो सन्तान धर्मी है वैदिक धर्मी है। हिन्दू शब्द को हम उसी अर्थ में लेते है किसी संप्रदाय के अर्थ में नही लेते है। इसी अर्थ को ध्यान में रखकर हम कहते है कि 'हिंदुत्व ही राष्ट्रीयत्व है' भारत का हित चिंतन करने वाला उसी अनुरूप कार्य व्यवहार करने वाला हर व्यक्ति हिन्दू ही है। मेरे हिन्दू कहने से संकीर्ण मानसिकता वाले उसे पूजा पद्दति से ही जोड़गें। मै हिन्दू का अर्थ पूजा पद्धति नही जीवन पद्धति को मानता हूँ।

सोच का दायर तो सब को बढ़ाना पड़ेगा । हिंदुस्तान की खूबसूरती ही सब धर्मों को बराबर सम्मान देने वाली छवि में थी। इसलिए क्या हिंदुत्व हिंदुत्व करते हो? ऐसा कहने वाले स्वयं को श्रेष्ठ और विशाल ह्रदय बताने से नही चूकते। पर उनका ध्यान इस और नही जाता कि हिन्दू समाज की विशालता ही है कि हमने सबका स्वागत किया। सबको समाविष्ट कर सकने की क्षमता यदि किसी में है तो केवल और केवल हिन्दू में ही है। शेष विश्व तो आज भी सम्प्रदाय के नाम पर कत्ले आम कर रहा है। बिना हिंदुत्व के इस राष्ट्र में सबको जीने अपना पन्थ मानने का अवसर सम्भव ही नही। हिंदुत्व की विशेषता सर्व ग्राही सर्व स्वीकार्यता यह चाहिए ही चाहिए। इसकी दुहाई भी देंगे बस हिंदुत्व शब्द विलोपित करना एकमेव ध्येय छद्म सेकुलरी चलते है।
उनका बचकाना सा तर्क है कि अगर आपको जीवन की ही बात करनी है तो जीवन की ही बात की जाय इंसान की ही बात की जाय। सब हिन्दू हैं ये बात हटा दीजिये। भारत हिन्दू राष्ट्र है यह मत कहिये। हम निष्पक्षता की बात करते है। बौद्धिक विलसियों को यह नही मालूम की इस राष्ट्र की श्रेष्ठ संस्कॄति जीवन पद्धति श्रेष्ठ चिंतन ने ही इसे विश्व गुरु तक पहुंचाया है। हिंदुत्व ही राष्ट्र की पहचान है। इसको छोड़ने का अर्थ राष्ट्र का स्वयं आत्महत्या कर लेना है।
पूरे हिन्दुस्तान में एक ही तरह की जीवन पद्धति है और वह है हिन्दू जीवन पद्धति। बाहर से देखने पर भ्रामक धारणा बन जाती है हमारे यहाँ तरह- तरह की जीवन पद्धतियाँ विद्यमान हैं। पंजाब में जिस तरह की जीवन पद्धति है वही आसाम में या मिजोरम में या बंगाल में नहीं है। जो हिमाचल में है वह अंडमान में या निकोबार में नहीं है जो राजस्थान में है वह उड़ीसा से भि‍न्न है। अब इस भि‍न्नता को कैसे से एक जीवन पद्धति‍ि कहा जा सकता है। इसी तरह भिन्नता के आग्रही को पन्थ सम्प्रदाय पहनावा भाषा आदि के आधार पर भी अनन्त भि‍न्नताएँ शामिल दिखाई देती है। ऐसे लोगों को भारत के हिंदुत्व के मूल चिंतन के एक ही होने की या तो जाकारी नही अथवा जानबूझ कर उसे छुपाते हुए भिन्नता के नाम पर हमे बांटने का षड्यंत्र कर रहा है। भारत के हर व्यक्ति में मूल चिंतन है:- 'सर्वेभ्वन्तु सुखिनः' 'वसुधैव कुटम्बकम ' "पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र है"
कभी कभी पूछा जाता है कि क्या हम इस भि‍न्नता को ही हमारी पहचान नहीं मान सकते ?   क्योंकि हमदरअसल तो हम सब  भ‍िन्नताओं से ही बने हैं। दो मनुष्य कभी एक समान नहीं हो सकते। हम भ‍िन्नताओं के ही पुंज हैं।
विभिन्नता देखना अच्छा है लेकिन यह संकीर्ण विचार से ही आता है। फिर भिन्नता को ही पहचान के रूप में स्वीकार करने का अर्थ संकीर्णता को स्वीकार करना है। हिंदुत्व संकीर्णता का विचार करने की छूट या आजादी नही देता है। समानता देखने के लिए विचारों की दृष्टिकोण की विशालता चाहिए।
दो इंसानो की, दो प्रान्तों की, दो सम्प्रदायों की विभिन्नता केवल उनकी तुच्छ चीजो में ही मिलेगी यह तलाशना संकीर्णता ही है। वैष्णव कृष्ण उपासक है और शैव शिव के उपासक इसलिए दोनों भिन्न है विरोधी है। लेकिन एक ही कुटुंब के कुछ व्यक्ति वैष्णव कुछ शैव है। प्यार से आजीवन साथ रहते है कहीं कोई विवाद नही। क्योकि दोनों जानते है की उपासना के मार्ग भिन्न है लेकिन ईश्वर एक ही है। यही है हिंदुत्व की श्रेष्ठता। यह भिन्नता का विचार संकीर्णता से ही आया। समानता के लिए उनसे ऊपर उठकर दृष्टिकोण व्यापक करना होगा।
मै जब हिन्दू जीवन पद्धति की समानता कहता हूँ तो इसका मतलब खान पान, पहनावा, त्योहारो के नाम  नृत्य गान, भाषा, नही है। यह सब तो तुच्छ चीजें है। जीवन पद्धति की समानता का मतलब जीवन के प्रति धारणा, नजरिया, मान्यता है।
मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव गुरु का सम्मान जीव दया। संसार के हर प्राणी के सुख की कामना सर्वे भवन्तु सुखिनः सबके स्वास्थ्य की कामना। जीवन के प्रति धारणा सिद्धान्त मान्यता धर्म के मुलभुत आधार सारे हिंदुस्तान में एक ही है इसलिए सब हिन्दू ही है।
यदि किसीको हिन्दू शब्द से ही चिढ है खीज है जलन है तो यह उसकी मानसिकता ही है।

किसी किसी को लगता है कि समानता देखने की चाह ही वह गाँठ है जहाँ से दिक्कतें शुरू होती हैं। पहले मैं समानता देखने का आग्रह पालता हूँ, फिर लोगों में समानता तलाशना शुरू करता हूूँ और उनके बाद समान नहीं म‍िलने पर उन्हें समान बनाने निकल पड़ता हूँ फिर भी कोई आनाकानी करे तो उससे उलझ पड़ता हूँ। लेकिन हिन्दू दर्शन में ऐसा नही नही है। हिन्दू समानता देखने का आग्रही नही बल्कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक जीव विश्व के प्रत्येक प्राणी को अपने समान ही देखता है। मै ही सबमें व्याप्त हूँ। आत्मवत् सर्वभूतेषु का भाव है। हम यह मानते है कि भौतिक रूप से
मेेरा अतिथ‍ि मुझसे भि‍न्न है, माँ मुझसे अलग व्‍यक्त‍ि है, पि‍ता मुझसे भि‍न्न व्यक्त‍ि हैं, गुरु मुझसे भि‍न्न व्यक्त‍ि है और शि‍ष्य भी मुझसे भि‍न्न व्यक्त‍ि है। इन सबका व्य‍क्त‍ित्व मुझसे भि‍न्न तरह से बना है मुझे उस भि‍न्न व्यक्ति‍त्व का सम्मान करना चाहिए। मैं इस भि‍न्नता का सम्मान करते हुए उनके सुख की कामना करता हूँ, उनके प्रति संवेदना रखता हूँ।इनके सुखी होने या इनके प्रति संवेदनशील होने , इनके स्वस्थ होने के लिए अपने मत को बलात् थोपने की आकांक्षा नहीं रखता हूँ। उन्हें अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता देता हूँ। मैं इनके समान होने की आकांक्षा नहीं पालना चाहता। क्योकि में जानता हूँ कि हिन्दू संस्कॄति के मूल तत्व माला के धागे के समान है जो बाहर से भिन्न भिन्न रंग रूप आकर प्रकार में दिखने वाले सभी मनके एकसाथ जुड़कर सुंदर माला का रूप लिए हुए है।

हम दो तरह से देखते हैं। एक सियार की तरह और एक जिराफ की तरह। सियार की तरह जब हम देखते है तो बहुत कम जगह दिखाई पड़ती है।देखने का दायरा छोटा हो जाता है और जो कुछ ही चीजें दिखती हैं, वे ही दुनिया लगती हैं। क्योंकि इक्की दुक्की ही चीज़ों की दुनिया है तो वो बस अपने जैसी लगती एक समान।मेरी दुनिया मेरे हिसाब की मेरे समान। जैसे ही किसी दूसरे घेरे में जाते है। वैसे ही भिन्नता दिखाई देती है। हम बेचैन हो जाते है। क्योकि हमें यह नही मालूम कि अलग अलग दिखने वाली सभी भिन्नताएं अपनी जगह सत्य भी है और नही भी। ये सब एक ही माला के मनकों के समान है।जब हम जिराफ़ की तरह देखते हैं तो कुछ ऊंचाई से देखते हैं। हम बहुत चीज़ों तो देख पाते हैं। कई रंग, कई प्रकार, कई सतह। हम देख पाते हैं कि दुनिया बहुत बड़ी है। और भिन्नताओं से भरी हुई है। इन सब भिन्नताओं को स्वीकार करते हुए मूल तत्व जो सबको जोड़े हुए है उसका ज्ञान रहता है। इसलिए भिन्नता को लेकर घबराते नहीं। हम इस तरह भिन्नताओं में से विकल्प चुनते हैं और अपना जीवन बनाते हैं, उसे जीते हैं। इस तरह जीते हुए होश भी बनाये रखते है।

लेकिन कठिनाई तब होती है जब हम दूसरे को तुच्छ और सियार मानकर व्यवहार करते है और स्वयं को जिराफ यानि उच्च मानते है। दूसरे को नीचा दिखाने की मानसिकता के चलते ही भिन्नता से घबराते है बाकि तो जैसा मै वेसा ही मेरा मित्र वेसा ही भाई वेसा ही पड़ोसी सब मेरे समान ही है। "मम मन्त्र समानता।" एक डिजायनदार चद्दर में आपको अनगिनत विभिन्नता दिखती है अनगिनत  विकल्प दीखते है। अनेक रंग दीखते है। क्योकि आपकी सोच आपकी दृष्टी बहरी रूप रंग तक संकीर्णता से ग्रसित होने के कारण सीमित है। पर मूल का चिंतन करने वाले को उस पूरे कपड़े में धागे की समानता दिखती है। रंग और डिजायन तो कपड़े के बह्यडम्बर है। धर्म का मूल तो एक ही है। जब तक आपको हर धागे की व्यक्तिगता उसके व्यक्तिव उसके अस्तित्व का ही चिंतन रहेगा तबतक कपड़ा कभी बन नही सकेगा। कपड़ा बनाने के लिए विभिन्नता को स्वीकारते और उसके आग्रह को त्यागते हुए उसे खीचना तानना बहुत कुछ सहन करना पड़ेगा। व्यक्तिव की विभिन्नता और स्वतंत्रता रहने पर हिन्दू समाज का रूप पाश्चात्य समाज का रूप बनने लगेगा।

हमारी हिन्दू संस्कॄति स्व को छोड़ सबके
साथ पर आधारित है। भारत की संस्कॄति सनातन संस्कॄति है। इसे हिन्दू हमने नही कहा। बाहरी आक्रांताओ ने हमे हिन्दू कहा। हमे तो कोई नाम देने की जरूरत ही नही थी। सबमे समानता थी। संस्कृति की भिन्नता को दर्शाने के लिए विदेशी आक्रांताओं ने हमें हिन्दू कहा। आज वही शब्द हमारी पहचान बनता गया और इसलिए हमने पहचान के लिए स्वीकार कर लिया। इस देश में अनेक आक्रांता आये जिनकी संस्कृति हमसे भिन्न थी। शक आये हूंण आये कुषाण आये हाल ही में पारसी आये यहूदी आये। आज वे कहाँ खो गए? हमारी सर्वस्वीकार्यता की ताकत ने  हमारी समान मानाने की मानसिकता ने हमारी अद्भुत पाचन शक्ति ने  सबको पचा लिया। सभी हममें समा गए। यह समानता उन सियारों के बस की नही जो खुद को जिराफ मानते है। यह समानता पवित्र गंगा की है जिसमे छोटी छोटी सेकड़ों धाराएं मिलकर अपना नाम और पहचान खोकर पवित्र गंगा ही हो जाती है।
यदि किसी को ऐसा लगता है की सभी धर्मो में वही अच्छी बातें है जो हिन्दू में है। तो हाँ हम मानते है कि सभी धर्मो में श्रेष्ठ बातें है। परन्तु पहली बात कि आचरण की भिन्नता उन्हें हिन्दू से अलग करती है। दूसरा यह की ईसा और मूसा के धर्म बुलेट गोली और पेरासिटामोल गोली के बदले ही फेला है। हिदूं प्रसारवादि नही रहा यह मूल अंतर है। और बलात् धर्मान्तरण का पक्षपाती कभी नही रहा। हालाँकि भारत में धर्मान्तरण हमारी कमजोरी से ही हुआ। हम अपने हिन्दू बन्धुओ को बुलेट का सामना करने का साहस और पेरासिटामोल के लालच के सामने अडिग रहने की ताकत नही दे सके।
हम उनकी छोटी छोटी आवश्यकताओ की भी उपेक्षा करते रहे। हम उनको सम्हालने में नाकाम रहे। आज संघ का स्वयंसेवक यही काम करता है। इतिहास की भूलों न दोहराये और समाज का चैतन्य जाग्रत हो इस हेतु काम करता है। विरोधी इसी कारण से लोग डरते है।
एक घटना:- पूर्वांचल में रह रहे 500 यहूदी परिवारों को इजराइल हाल ही में भारत से वापिस ले गया। उसे उन लोगो की पहचान खोने और भारत याने हिन्दू की पाचन शक्ति से डर लगने लगा। क्या यह हमारी "मम मन्त्र समानता " की ताकत नही?

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