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संगम के जल पर भ्रम और वैज्ञानिक सच्चाई

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संगम के जल पर भ्रम और वैज्ञानिक सच्चाई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा संगम के जल की गुणवत्ता पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को सौंपी गई रिपोर्ट को आधार बनाकर कुछ संस्थानों और विपक्ष ने जनता में भ्रम फैलाने का प्रयास किया। उत्तर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में स्पष्ट रूप से कहा कि संगम का जल आचमन करने योग्य है। उन्होंने यह भी बताया कि अब तक 57 करोड़ श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा चुके हैं और किसी ने भी जलजनित बीमारियों से ग्रस्त होने की शिकायत नहीं की है। वैज्ञानिक प्रमाण और जल की शुद्धता भारत के शीर्ष वैज्ञानिक और दिवंगत मिसाइलमैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सहयोगी वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने भ्रम फैलाने वालों को चुनौती दी है कि कोई भी विशेषज्ञ आकर हमारे सामने प्रयोगशाला में संगम जल की जांच करवा सकता है। उनके अनुसार, संगम का जल अल्कलाइन जल की तरह शुद्ध पाया गया है। उन्होंने स्वयं संगम नोज, अरैल सहित विभिन्न घाटों से जल के नमूने एकत्र कर सूक्ष्म परीक्षण किया और निष्कर्ष निकाला कि: जल म...

मातृभाषा: शिक्षा, रोजगार और सांस्कृतिक समृद्धि का आधार

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"जिस भाषा को हम अपने हृदय की गहराइयों से नहीं अपनाते, उसमें सृजनात्मकता, मौलिकता और आत्माभिव्यक्ति संभव नहीं।" 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने, भाषा की महत्ता को समझने और मातृभाषा के संरक्षण हेतु कार्य करने की प्रेरणा देता है। मातृभाषा केवल संचार का साधन नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, पहचान और बौद्धिक विकास का मूल आधार है। मातृभाषा और रोजगार के अवसर आज के वैश्वीकृत दौर में यह धारणा बनाई गई है कि केवल अंग्रेजी जानने वाले लोग ही बेहतर नौकरियों के योग्य होते हैं। लेकिन यह एक मिथक है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मद्रास के एक अध्ययन के अनुसार, मातृभाषा में शिक्षित छात्र अधिक तर्कशील और विश्लेषणात्मक होते हैं। यूरोपीय संघ के एक शोध के अनुसार, स्थानीय भाषा में कार्य करने वाली कंपनियों की उत्पादकता अधिक होती है। फ्रांस, जर्मनी, चीन और जापान जैसे देशों में स्थानीय भाषा में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा देकर अर्थव्यवस्था को मजबूत किया गया है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेज़न जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अब भार...

मातृभाषा दिवस: शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्रीय उन्नति का आधार

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"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।" भारतेंदु हरिश्चंद्र 21 फरवरी को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। यह दिवस हमें अपनी भाषा, संस्कृति और शिक्षा प्रणाली पर पुनर्विचार करने का अवसर देता है। मातृभाषा न केवल संवाद का माध्यम होती है, बल्कि यह हमारी सोच, मानसिक विकास और सृजनात्मकता को भी गहराई से प्रभावित करती है। मातृभाषा में शिक्षा: वैज्ञानिक दृष्टिकोण विगत दशकों में कई शोधों से स्पष्ट हुआ है कि मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी अधिक बौद्धिक क्षमता और सृजनात्मकता प्रदर्शित करते हैं। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र की डॉ. नंदिनी सिंह के अध्ययन के अनुसार, अंग्रेजी पढ़ने से मस्तिष्क का केवल एक हिस्सा सक्रिय होता है, जबकि हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में अध्ययन करने से मस्तिष्क के दोनों भाग सक्रिय होते हैं। भारतीय वैज्ञानिक सी.वी. श्रीनाथ शास्त्री के अनुसार, भारतीय भाषाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थी विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में अधिक प्रगति करते हैं। जापान, चीन, रूस, जर्मनी और फ्रांस...

समृद्धि से संघर्ष तक – छावा और इतिहास का सच

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प्रश्न: भारत जैसा सुखी, समृद्ध और हरा-भरा देश, जहाँ शांति, पवित्रता और समृद्धि थी, उसका विनाश कैसे हुआ? किसने इस धरती को जलाया? उत्तर: इस्लामी आक्रमण। यह मात्र इतिहास का एक अध्याय नहीं, बल्कि विश्व इतिहास के सबसे क्रूर अत्याचारों की गाथा है, जिसे भुक्तभोगियों से छिपाकर रखा गया। भारतीय सेक्यूलर बिरादरी ने इसे दबाया, क्योंकि वे या तो डरते थे या किसी बड़ी साजिश का हिस्सा थे। इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने की साजिश भारतीय फिल्मों में दशकों तक भारत के वास्तविक शत्रु को शत्रु की तरह दिखाने से परहेज किया गया। 1997 में जेपी दत्ता ने फ़िल्म बॉर्डर बनाई। इससे पहले किसी भी भारतीय फ़िल्म में पाकिस्तान को विलेन के रूप में नहीं दिखाया गया था। बॉर्डर और ग़दर ने इस वास्तविकता को सामने रखा और सुपरहिट रहीं। "छावा" – इतिहास की आँखों में आँखें डालने का साहस छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित फ़िल्म "छावा" भी इसी परंपरा का हिस्सा है। पहली बार, इतिहास के उन दर्दनाक पन्नों को खोलने का प्रयास किया गया है, जिनसे लोग बचते रहे हैं। ...

भारतीय उद्योग और वैश्विक षड्यंत्र: एक विश्लेषण

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भारत के शीर्ष उद्योगपति गौतम अडानी के खिलाफ पिछले पांच वर्षों से लगातार दुष्प्रचार किया जा रहा है। अमेरिकी चीन-विरोधी लॉबी के इशारे पर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। इसी क्रम में, जार्ज सोरोस की कंपनी हिंडनबर्ग ने अडानी समूह के शेयर बाजार को गिराने के लिए बेबुनियाद आरोप लगाए, जिससे खुद मुनाफा कमाने की कोशिश की गई। षड्यंत्र और अमेरिकी न्याय प्रणाली का दुरुपयोग योजनाबद्ध तरीके से अमेरिका की निचली अदालत में अडानी के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया। गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया गया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत और भारतीयों की प्रतिष्ठा से जोड़कर अमेरिका के राष्ट्रपति पर दबाव बनाया। परिणामस्वरूप, हिंडनबर्ग को अपना कारोबार बंद करना पड़ा और अडानी के खिलाफ वारंट जारी करने वाले अमेरिकी जज ने इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उस कानून को ही रद्द कर दिया, जो अमेरिका में किसी विदेशी नागरिक पर मुकदमा चलाने की अनुमति देता था। भारत में राष्ट्रवाद की मजबूती भारत-विरोधी डीप स्टेट का प्रभाव विपक्ष के सहयोग के बावजूद कम हो रहा है। भारतीय समाज रा...

प्रखर राष्ट्रभक्त, समाज सुधारक, पत्रकार, महाकवि : सुब्रमण्यम भारती

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चमक रहा उत्तुंग हिमालय, यह नगराज हमारा ही है। जोड़ नहीं धरती पर जिसका वह नगराज हमारा ही है । नदी हमारी ही है गंगा, प्लावित करती मधुरस धारा ।  बहती है क्या कहीं और भी, ऐसी पावन कल कल धारा ।।  सम्मानित जो सकल विश्व में महिमा जिनकी बहुत रही है।  अमर ग्रंथ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है ।।  गायेंगे यश हम सब इसका यह है स्वर्णिम देश हमारा ।  आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।  देशभक्ति से ओतप्रोत तमिल भाषा में दे लिखित और हिंदी में अनुवादित की गई उपरोक्त पंक्तियां महाकवि सुब्रमण्यम भारती को हैं। यह कविता पूरी नहीं है अपितु उसका एक छोटा सा भाग है जो उनको देशभक्ति का एक छोटा सा नमूना भर है। उन्होंने 400 से अधिक रचनाएं लिखीं हैं जो हमारे साहित्य की अमर धरोहर बनकर हमारा उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन कर रहीं हैं। तमिलनाडु के एक छोटे से गांव एट्टायापुरम में 11 दिसम्बर, 1882 को जन्मे महाकवि सुब्रमण्यम भारती महान राष्ट्रभक्त विचारक, स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, पत्रकार, समाज सुधारक, नारी शिक्षा के प्रखर पक्षधर, साहित्यकार, धर्म ग्रंथों की मीमांसा करने ...