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नरसिम्हा राव: वह प्रधानमंत्री जिसे अपने ही दल से अपमान झेलना पड़ा

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  नरसिम्हा राव: वह प्रधानमंत्री जिसे अपने ही दल से अपमान झेलना पड़ा।            चित्र साभार गूगल  भारतीय युवा कांग्रेस (IYC) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास ने आज सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करी । इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नसीहत देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार और स्मारक स्थल बनाने पर ज्ञान दिया । तो इन कांग्रेस वालों को यह जानना चाहिए कि आज से ठीक 20 साल पूर्व इन्होंने इन्हीं के प्रधानमंत्री रहे नरसिंहराव के साथ कैसा दुर्व्यवहार किया था । सभी को इस सच को जानना चाहिए।               चित्र साभार गूगल उनकी सलाह अपनी जगह है किंतु आइए जानते है भारत 9वें प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हाराव और उनके प्रति कांग्रेस के नेताओ के व्यवहार के बारे में। भारत  के 9वें प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव का कार्यकाल भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर माना जाता है। 1991 से 1996 के बीच, जब देश आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा था, नरसिम्हा राव ने देश...

नया साल, नई उम्मीदें और पुराने सबक: सावधानी ही सुरक्षा है

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नया साल, नई उम्मीदें और पुराने सबक: सावधानी ही सुरक्षा है। मनमोहन पुरोहित (मनुमहाराज)           चित्र साभार गूगल साल का आखिरी हफ्ता शुरू हो चुका है, और पूरा देश नए साल के स्वागत के लिए तैयार है। हर कोई अपने तरीके से इस उत्सव को खास बनाने की कोशिश में जुटा है। नदियों, झीलों, समुद्र के किनारे और पहाड़ों के पर्यटन स्थलों की बुकिंग लगभग फुल हो चुकी है। बड़े शहरों के बार, होटल और रेस्टोरेंट सज-धजकर मेहमानों के स्वागत के लिए तैयार हैं। लेकिन इस उमंग और उत्साह के बीच, यह याद रखना बेहद जरूरी है कि हर साल यह जश्न कई परिवारों के लिए जीवनभर का दुख बन जाता है। पिछले साल, सौ से अधिक युवाओं ने अपने घर लौटने की उम्मीद के साथ पार्टी की थी, लेकिन वे कभी वापस नहीं आए। कुछ सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हुए, तो कुछ नशे में हुए झगड़ों में अपनी जान गंवा बैठे। इससे भी अधिक भयावह थे बलात्कार और छेड़छाड़ के मामले, जिन्होंने बेटियों की अस्मिता और उनके परिवारों की खुशियों को छीन लिया। वीर बाल दिवस, यह भी पढ़ें           चित्र साभार गूगल उत्सव की ...

वीर बाल दिवस: साहस, बलिदान और धर्म की अद्वितीय गाथा

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         फोटो साभार गूगल भारत के इतिहास में ऐसा बलिदान और साहस का उदाहरण दुर्लभ है, जो गुरु गोविन्द सिंह और उनके चार साहबजादों ने प्रस्तुत किया। दिसंबर माह का अंतिम सप्ताह, विशेषकर 21 से 27 दिसंबर, सिख पंथ और भारतीय संस्कृति के इतिहास में अमर है। इस दौरान गुरु गोविन्द सिंह के परिवार ने जिस प्रकार से क्रूरतम यातनाओं का सामना किया और अपने धर्म, संस्कृति एवं राष्ट्र के सम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बलिदान को स्मरणीय बनाने के लिए 26 दिसंबर को "वीर बाल दिवस" के रूप में मनाने का आव्हान किया। यह दिवस उन साहबजादों के अप्रतिम बलिदान और साहस को नमन करने का अवसर है, जिन्होंने मात्र बाल्यावस्था में धर्मांतरण के क्रूर आदेश को नकारते हुए जीवित दीवार में चुनवाए जाने का साहस दिखाया। यह भी पढ़ें  क्या है विजय दिवस गुरु गोविन्द सिंह और उनका संघर्षकाल सिख पंथ के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह, उस समय आनंदपुर साहिब किले में निवास कर रहे थे। औरंगजेब के नेतृत्व में मुगल शासन ने सिख पंथ को जड...