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महाकुंभ 2025: सनातन परंपरा, अखाड़ों की शोभायात्रा और राष्ट्रीय चेतना का जागरण

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महाकुंभ 2025: सनातन परंपरा, अखाड़ों की शोभायात्रा और राष्ट्रीय चेतना का जागरण प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 न केवल एक धार्मिक आयोजन था, बल्कि यह भारत की सनातन परंपरा , राष्ट्रीय चेतना , और सांस्कृतिक एकता का भव्य प्रदर्शन भी था। यह आयोजन करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था और समर्पण का प्रतीक बना। इस ऐतिहासिक पर्व की सफलता में सरकार, समाज और संत समाज का विशेष योगदान रहा, जिन्होंने इसे दिव्य और भव्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गंगा तट पर सनातन परंपरा का भव्य दृश्य महाकुंभ के दौरान गंगा स्नान और त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने के लिए लाखों श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे। यह दृश्य भारत की आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रमाण था। देशभर से आए भक्तों ने हिंदू धर्म की परंपराओं को संजोते हुए पवित्र स्नान किया और अपनी आस्था प्रकट की। इस महाकुंभ का एक प्रमुख आकर्षण अखाड़ों की शोभायात्रा रही। नागा साधु , संन्यासी, और महंत पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित हाथियों, घोड़ों, और रथों पर सवार होकर शोभायात्रा में सम्मिलित हुए। गंगा तट पर भगवा पताकाओं की लहराती छटा, संन्यासियो...

सेक्युलरिज्म की भ्रामक अवधारणा: भारतीय परिप्रेक्ष्य में पुनर्विश्लेषण

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सेक्युलरिज्म की भ्रामक अवधारणा: भारतीय परिप्रेक्ष्य में पुनर्विश्लेषण सेक्युलरिज्म की भ्रामक अवधारणा: भारतीय परिप्रेक्ष्य में पुनर्विश्लेषण हाल ही में पुणे में एक न्यायालय भवन की आधारशिला रखते समय आयोजित  ‘भूमि-पूजन’  कार्यक्रम पर  सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अभय एस. ओका  ने टिप्पणी की कि न्यायालय परिसर में किसी भी प्रकार की  पूजा-अर्चना या दीप-प्रज्वलन  जैसे अनुष्ठानों को समाप्त कर देना चाहिए। उनके अनुसार, ऐसे अवसरों पर  संविधान की प्रस्तावना  के समक्ष सिर झुकाकर  पंथनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । इससे पहले,  सेवानिवृत्त न्यायाधीश कुरियन जोसेफ  ने भी सर्वोच्च न्यायालय के आदर्श वाक्य  ‘यतो धर्मस्ततो जयः’  (जहां धर्म है, वहां जय है) को बदलने की वकालत की थी। उनका मत था कि सत्य ही संविधान है, जबकि धर्म सदा सत्य नहीं होता। उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया कि जब अन्य राष्ट्रीय संस्थानों और उच्च न्यायालयों में  ‘सत्यमेव जयते’  को आदर्श वाक्य के रूप में स्वीकार किया गया है, तो फिर  सर्वोच्च न्यायालय का आदर्श ...