संत नरसी मेहता: भक्त, कवि और समाज सुधारक
संत नरसी मेहता, जिन्हें नरसी भगत के नाम से भी जाना जाता है, 15वीं सदी के महान वैष्णव संत और गुजराती साहित्य के आदि कवि थे। उनका जन्म 17 दिसंबर 1414 (पंचमी, शुक्ल पक्ष, 1471 विक्रम संवत) को गुजरात के जूनागढ़ जिले के तलाजा गांव में हुआ था। उनका जीवन भक्ति, साहित्य और समाज सुधार का अद्भुत संगम था। संत नरसी ने अपने काव्य, भजनों और सामाजिक कार्यों के माध्यम से सनातन धर्म की परंपराओं को एक नई दिशा दी। प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक जागरण नरसी मेहता का बचपन संघर्षों से भरा था। माता-पिता का देहांत होने के कारण उनका पालन-पोषण उनकी दादी जयगौरी ने किया। बचपन में वह आठ वर्ष तक बोलने में असमर्थ थे, लेकिन एक वैष्णव संत के आशीर्वाद से उनकी वाणी लौट आई। उनका विवाह मानेकबाई से हुआ, लेकिन जीवन में निर्धनता और तिरस्कार के कारण वह अक्सर भक्ति और संत समाज के करीब रहे। एक बार जब उनकी भाभी ने तिरस्कार किया, तो व्यथित नरसी शिव मंदिर में तपस्या करने चले गए। मान्यता है कि उन्हें शिव के दर्शन हुए और वरदान स्वरूप भगवान कृष्ण की भक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस अनुभव के बाद उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। व...