अपनी हिन्दू पहचान से जुड़ी कंगना



कंगना के अतीत में झाँकते हुए एक प्रश्न उठता है...
कंगना आखिर एक सफल स्टार कैसे बन गयी?
क्या उसने कोम्प्रोमाईज़ नहीं किये होंगे?
क्या उसने इन लुच्चों से फेवर्स नहीं माँगे होंगे?
क्या वह इनसे मिली हुई नहीं होगी?

बेशक! उसने जरूर कोम्प्रोमाईज़ किये होंगे. हर साल हजारों कंगनाएँ बॉलीवुड का दरवाजा खटखटाने आती हैं, और उसमें से अधिकांशतः गलियों की खाक छान कर धक्के खाकर लौट जाती हैं. अगर कंगना ने कोई कोम्प्रोमाईज़ नहीं किये होते तो वह भी उनमें से ही एक होती और आप उसका नाम भी नहीं जानते.


चित्र साभार


पर कंगना ने कोम्प्रोमाईज़ किया तो क्या कोम्प्रोमाईज़ किया?
उसने अपनी व्यक्तिगत जिंदगी कोम्प्रोमाईज़ की होगी, अपना देश और धर्म नहीं कोम्प्रोमाईज़ किया. किसी अंडरवर्ल्ड में नहीं घुसी, किसी तैमूर को नहीं जना. और उसने जो भी कोम्प्रोमाईज़ किये, और उससे जो स्टारडम कमाया वह आज हमारे ही काम आ रहा है. उसने जो कीमत चुकाई उसका फायदा आज देश को ही हो रहा है.

दस साल पहले वह क्या सोचती थी और क्या बोलती थी इसका हिसाब लगाना आसान नहीं है. क्योंकि पूरा देश ही दस साल पहले जो सोचता था वह आज नहीं सोचता. दस साल पहले इस देश ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना था. इस देश ने दस वर्षों में बहुत दूरी तय की है, और कंगना ने पूरे देश से ज्यादा ही दूरी तय की है. उसे उसकी इस विचार यात्रा के लिए सराहना मिलनी चाहिए, आलोचना नहीं.

कंगना आज सफल है, एक स्टार है. उसके सामने उसका आधा कैरियर पड़ा है पर उसे किनारे कर के उसने देशहित में हमारे साथ खड़ा होना चुना. यह आमतौर पर नहीं होता. एक हिन्दू जैसे जैसे सफल होता जाता है, अपनी जड़ों और अपनी पहचान से दूर होता जाता है. सदी के महानायक को ही देख लीजिए... उन्हें जिंदगी से और क्या मिलना है जो उनके पास आज नहीं है?अमिताभ बच्चन अब और क्या हो जाएंगे? लेकिन वे भी हाजी अली और अजमेरशरीफ में चद्दर चढ़ाते नज़र आ जाते हैं. उनका सामाजिक कद बीस फुट का है लेकिन जिम्मिपना (dhimmi) नहीं जाता. कंगना जैसे जैसे ऊपर गई है, वैसे वैसे अपनी हिन्दू पहचान के करीब आई है. इसकी जितनी कद्र की जाए, कम है.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जलते पुस्तकालय, जलती सभ्यताएं

करपात्री महाराज ने इंदिरा गांधी को क्यों श्राप दिया?

संघ नींव में विसर्जित पुष्प भाग १