संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट और भारत

  

  जब भी पड़ौसी देशों की अवांछनीय हरकतों की चर्चा होती है, तो नेहरू  की गलतियों का 70 वर्षो से दंश झेल रहा भारत अपनी नीतियों पर पुनर्विचार के लिए विवश हो जाता है! नेहरू की गलतियों के कारण भारत ने अपना बड़ा भूभाग खोया. संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य भारत, संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले 26 देशों में भी भारत! स्वतंत्रता के बाद ये नेहरू की मूर्खता के कारण हाथ में आई हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की सीट दो बार चीन को सौंप दी गई! 1947 में नेहरू ने प्रधानमंत्री के साथ साथ विदेश मंत्री का पदभार भी संभाला. वो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और रूस की साम्यवादी विचारधारा से बहुत ही अधिक प्रभावित थे। इसलिए जब 1949 में माओत्से तुंग ने कुओमितांग पार्टी को खदेड़ कर पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना का गठन किया तो उसे सबसे पहले मान्यता देने वालों में भारत ही था। नेहरू को भरोसा था कि एक दिन भारत और चीन दोस्ती की नयी मिसाल बनायेंगे। उन्हें यकीन था हिंदी चीनी भाई भाई बनेंगे।जनसँख्या की दृष्टि से भारत उस वक़्त भी दूसरा सबसे बड़ा देश था।  जबकि ताइवान भारत के मुकाबले एक बहुत ही छोटा द्वीप। उन्ही दिनों अमेरिका के सियासी गलियारों में ये चर्चा उठने लगी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सीट ताइवान से लेकर भारत को दे दी जाए। इस बात का जिक्र पंडित नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी (अमेरिका में भारतीय राजदूत) पंडित ने अमेरिका से लिखी एक चिट्ठी में किया। उन्होंने नेहरू को चिट्ठी लिखते हुए कहा कि वाशिंगटन में ये चर्चा चल रही है, कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की स्थायी सीट दे दी जाए, लेकिन नेहरू का मानना था कि इस सीट पर चीन का अधिकार है, और ताइवान से लेकर वो सीट चीन को दे देनी चाहिए।
नेहरू का ये भी मानना था कि चीन की सीट ताइवान को देना चीन के लिए अपमानजनक बात होगी। उनका ये भी मानना था कि अगर भारत ने वो सीट स्वीकार की तो भारत और चीन के रिश्ते बिगड़ जायेंगे।  इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित की चिट्ठी के जवाब में लिखा। नेहरू का ये भी मानना था कि भारत सुरक्षा परिषद् की सीट का हकदार तो है लेकिन जब तक चीन को उसका अधिकार नहीं मिल जाता तब तक भारत अपना अधिकार स्वीकार नहीं कर सकता। 


1955 में तत्कालीन सोवियत प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिन ने भी भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने के लिए परिषद की सीटें बढ़ाने का सुझाव दिया था। लेकिन तब भी नेहरू ने यही जवाब दिया कि चीन को जब तक स्थायी सीट नहीं मिल जाती तब तक भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पर दावा नहीं करेगा! 
नेहरू किसी भी कीमत पर चीन की दोस्ती खोना नहीं चाहते थे, और उन्होंने इसके लिए देशहित को ताक पर रख दिया। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक विश्लेषक आज भी मानते हैं, कि नेहरू ने एक ऐसी गलती कि जो कोई भी देश नहीं करता, कम से कम अपने हितों की तिलांजलि दे कर तो कतई नहीं। नेहरू ने उस समय देश हित की चिंता की होती तो कम से कम 65 वर्ष पूर्व भारत भी वीटो-अधिकार से सज्जित होता! कश्मीर समस्या भी कब की हल हो चुकी होती, भारत विरोधी इस्लामिक आतंकियों का संरक्षक चीन भी वीटो द्वारा बार बार उनको बचाने में सफल नहीं होता! संयुक्त राष्ट्र के 75 वर्ष पूरे होने पर वैश्विक मंच पर प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के सांगठनिक ढांचे में सुधार का मुद्दा उठाया है! लेकिन वीटो प्राप्त 5 देशों में से एक मात्र देश चीन भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का विरोध कर रहा है! 

लेखन- गंगा सिंह राजपुरोहित

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