अजेय शक्ति का निर्माण: विचार नवनीत





   हमारी सदा यही प्रार्थना रही है "सभी सुखी हो, सभी की सदा अनिष्ठ से मुक्ति हो" जबकि वर्तमान का पश्चिम "अधिकतम संख्या का अधिकतम हित" के आदर्श वाक्य से आगे नहीं बढ़ पाया है।
हमारा उद्दात आदर्श रहा है, प्राणी मात्र का पूर्ण कल्याण, मातृभूमि, समाज एवं परंपराओं के प्रति श्रद्धा, जो कि राष्ट्र की कल्पना के अंतर्गत आती है जो व्यक्ति में वास्तविक सेवा और बलिदान की भावना को प्रेरित करती है। 
राष्ट्रवाद नष्ट नहीं किया जा सकता है और ना ही उसे नष्ट करना चाहिए। 
हिंदू समाज की अप्रतिम राष्ट्रीय प्रतिभा के अनुरूप उसे पुनः संगठित करने का पवित्र कर्तव्य जिसके द्वारा हम राष्ट्रों के मध्य सामंजस्य पूर्ण सहयोग चाहते हैं उसका विलोपन नहीं, तथा जिसको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ग्रहण किया है न केवल भारत के ही सच्चे राष्ट्रीय पुनरुत्थान का एक कार्यक्रम मात्र है अपितु संसार की एकता एवं मानव कल्याण के स्वप्न को चरितार्थ करने की अनिवार्य पूर्व भूमिका है। 
हमारे ऊपर हिंदू समाज को इसलिए स्वस्थ दशा में सुरक्षित रखने का पवित्र कर्तव्य है।
भारत के बाहर के संसार ने आत्मा के शास्त्र का अध्ययन नहीं किया। वे अपनी इंद्रियों के बाह्य संसार के अध्ययन के अभाव में बहिर्मुखी बने रहे इसलिए पाश्चात्य योग, आत्मा, जगत के ज्ञान एव अनुभव से शून्य रहे। जबकि हमारे पूर्वजों ने इंद्रियों से परे जाकर संसार में प्रवेश करके अनुभव किया है। जिससे एक संपूर्ण राष्ट्र की तपस्या और त्याग तथा सैकड़ों शताब्दियों का अनुभव विश्व की आध्यात्मिक प्रश्नों को शांत करने के लिए ज्ञान के स्रोत के रूप में भारत में वर्तमान है।
फिलिपिंस में न्यायालय के विशाल कक्ष में मनु की इस फटी की प्रतिमा है जिस पर लिखा है- "मानव जाति का प्रथम महान एवं श्रेष्ठ प्रज्ञा संपन्न विधि निर्माता"।
जिसमें अपने जीवन को उन्नत बनाने की लग्न अथवा योग्यता का अभाव है वह दूसरों को महानता का मार्ग कैसे दिखा सकता है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस राष्ट्रीय लक्ष्य को पूर्ण करने का संकल्प लिया है कि मानव जाति को अपना अद्वितीय ज्ञान प्रदान करने की योग्यता संपादन करने के लिए तथा संसार की एकता और कल्याण हेतु जीवित रहने एवं उद्योग करने के लिए हमें संसार के समक्ष आत्मविश्वासपूर्ण, पुनरुत्थान शील व सामर्थ्यशाली राष्ट्र के रूप में खड़ा होना होगा।

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