नक्सली संगठन में महिला माओवादियों का होता है शोषण, बलात्कर से लेकर मारपीट तक
हत्या, लूट, बम ब्लास्ट, लोकतंत्र विरोधी गतिविधियां करने वाले माओवादियों का किसान विरोधी, जनजातीय विरोधी, ग्रामीण विरोधी, विकास विरोधी, लोकतंत्र विरोधी और समानता विरोधी रूपी चेहरा हमेशा सामने आता रहा है।
सामाजिक बराबरी और नैतिकता की बात करने वाले वामपंथ के इस अतिवादी संगठन जिसे हम नक्सली और माओवादी संगठन या विचारधारा के रूप में जानते हैं वह लगातार महिलाओं का भी शोषण करता रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो कभी मुख्यधारा की खबरों में नहीं आता।
नक्सलियों-माओवादियों के संगठन से सरेंडर किए हुए महिला नक्सलियों ने खुद अपने मुंह जबानी इन बातों को कहा है।
माओवादियों के संगठन में महिलाओं के साथ अत्यधिक अत्याचार होता है।
महिला नक्सलियों पर ना सिर्फ शादी का दबाव बनाया जाता है बल्कि यदि वो शादी के लिए तैयार ना हो तो उनके साथ शारीरिक संबंध के लिए जबरदस्ती भी की जाती है।
नक्सलियों-माओवादियों के संगठन में महिलाओं की स्थिति इतनी खराब है कि यदि कोई महिला नक्सली शादी या शारीरिक संबंध के लिए आसानी से तैयार ना हो तो उस पर इतना दबाव बनाया जाता है की कुछ महिलाएं आत्महत्या तक कर लेती हैं।
माओवादी संगठन में सिर्फ हिंसा और पैसे का जोर है, ना कोई नियम है और ना ही कोई अनुशासन। माओवादी संगठन के बारे में यह आरोप लगाने वाले नक्सली दंपत्ति सुधाकरण और उसकी पत्नी नीलिमा ने जब सरेंडर किया था तो उन्होंने यह भी बताया कि संगठन में महिलाओं के शोषण और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण ही उन्होंने उस रास्ते को छोड़ कर मुख्यधारा में जुड़ने का फैसला किया था।
यह एकमात्र उदाहरण नहीं है कि माओवादी संगठन पर महिलाओं या महिला नक्सलियों के शोषण का आरोप है। इससे अलावा भी कई महिला नक्सलियों ने आत्मसमर्पण के बाद इस बात का खुलासा किया है कि नक्सली - माओवादी लगातार उनका यौन शोषण करते हैं।
इस वर्ष मार्च के माह में माओवादियों के चंगुल से कुछ महिलाएं जो मुक्त होकर बाहर निकले थे उन्होंने भी बताया था कि माओवादी संगठन में महिला नक्सलियों के साथ जानवरों सा सलूक होता है।
सरेंडर महिला मां वादियों ने बताया था कि उनके साथ दुराचार और हिंसा की वारदातें आम हो चुकी है। साथ ही महिला नक्सलियों के साथ शारीरिक शोषण भी माओवादी संगठन में आम बात है।
2014 में छत्तीसगढ़ के कुंडा गांव और नारायणपुर में 3 महिलाओं समेत पांच इनामी माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया था। सरेंडर करने वाले माओवादियों में एक महिला माओवादी ने खुलकर बताया था की उसने माओवादी संगठन में यौन शोषण से परेशान होकर आत्मसमर्पण किया है।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में माओवादी संगठन के दल्ली राजहरा एरिया कमिटी के सदस्य सरेंडर माओवादी दिनेश उर्फ नवल सिंह उर्फ बिल्लू ने बताया था कि आंध्र प्रदेश के बड़े तेलुगू माओवादी छत्तीसगढ़ की जनजातीय महिलाओं का यौन शोषण करते हैं।
झारखंड से गिरफ्तार हुए 10 लाख का इनामी माओवादी दीपक उरांव ने गिरफ्तार होने के बाद बताया था कि माओवादी संगठनों में महिलाओं का शोषण किया जाता है।
2010 में माओवादी संगठन से सरेंडर करने वाली पूर्व माओवादी शोभा मंडी और उमा उर्फ शिखा में अपनी किताब में लिखा है कि माओवादी शिविरों में महिलाओं की जिंदगी सबसे मुश्किल होती है। उनका वहां जमकर शारीरिक शोषण किया जाता है।
अपनी किताब में सरेंडर महिला माओवादी ने खुलासा किया कि उनके साथी कमांडर ने 7 साल तक कई बार उसके साथ बलात्कार किया। यह भी तब हुआ जब वह 25-30 सशस्त्र माओवादियों की कमांडर हुआ करती थी।
सरेंडर महिला माओवादी के अनुसार माओवादियों के बीच पत्नियों की अदला बदली साथ ही महिला माओवादियों को मारना पीटना और उनका बलात्कार करना बेहद आम है। इस किताब के अनुसार जितने बड़े माओवादी नेता है वह संगठन की ज्यादातर महिलाओं का शोषण करते हैं।
आंध्र प्रदेश के एक लाख के इनामी नक्सली नेता ने समर्पण के बाद बताया था कि कैसे बड़े नक्सली - माओवादी छत्तीसगढ़ के जनजाति महिलाओं का यौन शोषण करते हैं। यौन शोषण का विरोध करने पर उन्हें अपमानित किया जाता है और तरह-तरह की यातना दी जाती है। उस आत्मसामर्पित नक्सली के अनुसार छत्तीसगढ़ के आदिवासी महिला नक्सलियों का शोषण यहां के नक्सलियों को नीचा दिखाने के लिए किया जाता है।
पूर्व में सरेंडर महिला नक्सलियों ने यह भी बताया था कि अधिकतर महिला नक्सली शौक से नक्सलवाद में नहीं शामिल होती।
माओवादी-नक्सली नेता कई तरह के प्रलोभन देते हैं। नक्सलियों द्वारा कुछ लोगों के नाम जबरदस्ती पुलिस रिकॉर्ड में शामिल कर दिया जाता है। इसके बाद शीर्ष नक्सली नेता महिला नक्सली नेताओं के साथ "सेक्स स्लेव" की तरह बर्ताव करते हैं।
महिला कैडर के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाते हैं। माओवादी संगठन में नक्सलियों के बीच महिलाओं को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य यही होता है।
कुछ सरेंडर महिला नक्सलियों ने यह भी बताया है कि पुरुष नक्सली कमांडर महिला नक्सलियों से ना सिर्फ विवाह और प्रेम संबंध कर यौन शोषण करते हैं बल्कि बंदूक की नोक पर भी उनका शारीरिक शोषण किया जाता है।
ऐसे ही एक वाकये के दौरान महिला नक्सली ने यौन शोषण से तंग आकर भागने का प्रयास किया। भागने के दौरान जब नक्सली कमांडर ने उस महिला नक्सली को पकड़ लिया तो उसके बाद उस महिला नक्सली को स्वयं को गोली मारने का आदेश दिया गया। नक्सलियों के बीच यौन शोषण होने के दबाव के चलते उस महिला नक्सली ने खुद को गोली मार ली।
नक्सली माओवादी नेता ना सिर्फ महिला नक्सलियों का यौन शोषण करते हैं बल्कि यदि कोई महिला नक्सली गर्भवती हो जाए तो उनका जबरन गर्भपात कराया जाता है।
जितनी भी महिला नक्सली संगठन में होती है उन सभी के साथ दैहिक शोषण किया जाता है। उस महिला नक्सली ने खुद बताया कि जब वह 3 माह की गर्भवती हो गई थी तो उससे कई बार बलात्कार करने वाले नक्सली कमांडर एकलाल लोहरा ने लोहरदगा के एक घर में ₹15000 देकर उसका गर्भपात कराया था।
नक्सली संगठनों में महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय है और शायद ही कोई महिला नक्सली स्वेच्छा से इन संगठनों में शामिल होती है।
नक्सली संगठन में नाबालिक उम्र की लड़कियों को ज्यादातर शामिल किया जाता है। यह लड़कियां स्वेच्छा से नहीं बल्कि जबरदस्ती इन संगठनों में शामिल होती है।
नाबालिक लड़कियों के साथ कई नक्सली नेता यौन शोषण करते हैं. नक्सली संगठन में ना सिर्फ महिलाओं की स्थिति दयनीय है बल्कि संगठन के भीतर जात-पात, आदिवासी-गैरआदिवासी जैसी भावनाएं काफी ज्यादा समाई हुई है। जात-पात और जनजाति-गैर जनजाति के नाम पर भी शोषण में कोई कमी नहीं है।
दरअसल मुख्यधारा की मीडिया और उससे जुड़े बुद्धिजीवी वर्ग के लोग हमेशा से नक्सलियों के जन्म की वजह समाज में फैले गैर बराबरी को जिम्मेदार ठहराता है।
लेकिन उन्हीं नक्सलियों माओवादियों द्वारा महिलाओं का बुरी तरह से शोषण करने पर समाज के विशेष बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों की कोई टिप्पणी नहीं कि जाती है।
आखिर क्या कारण है कि महिला सशक्तिकरण की बात करने वाले, महिलाओं के अधिकार की बात करने वाले, महिला आयोग की बात करने वाले, फेमिनिज्म की बात करने वाले लोगों को नक्सलियों द्वारा महिलाओं महिलाओं का लगातार किया जा रहा शोषण नहीं दिखता?
क्या नक्सलियों के संगठन में अपने अस्तित्व से जूझ रही महिलाओं का कोई हक नहीं है? क्या उनके संवैधानिक अधिकार नहीं है? आखिर कब तक ये महिलाएं ऐसे ही शोषित होती रहेंगी? कौन उठाएगा इनके लिए आवाज़?
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