क्या-क्या कुदरती घोषित कर दोगे आप ??
धारा_377 = वैचारिक पतन का गंदा खेल...
तस्वीर में दिख रहा बड़ा सा कुत्ता दरअसल एक आदमी है, जिसे लगता है कि वो सेक्सुअली एक कुत्ता है। वह चाहता है उसे कुत्ते की तरह ट्रीट किया जाये । ये ड्रेस सेक्स टॉयज़ बनाने वाली कंपनियां बनाती हैं, अच्छी कीमत पर बेचती हैं।
हार्मोन्स के इंजेक्शन से सेक्स चेंज की जुगाड़ तो बाजार ने खोज ली है, लेकिन अभी इंसान को कुत्ता बनाने वाले हार्मोन्स नहीं बन सके। लिहाजा मानसिक कुत्तों को ड्रेस ही बेची जा रही है। हो सकता है कि आने वाले सालों में इन्हें बोलना भुलाकर भौंकने की व्यवस्था कोई कंपनी खोज निकाले.!
ये कुत्ता कोई तस्वीर नहीं है। ये एक कम्युनिटी है। LGBT की तरह। ये खुद को 'ह्यूमन_पप्स' कहते हैं।
किसी एक आध शख्स के 'शौक' से शुरू हुई पप्स कम्युनिटी आज हजारों लाखों में पहुंच गई है। ब्रिटेन के एंटवर्प शहर में 'मिस्टर पपी यूरोप' की प्रतियोगिता आयोजित की गई। इनके अपने प्राइड क्लब्स भी हैं, दुनिया के तमाम शहरों में, जहां ये इकट्ठा होकर अपने अंदर के कुत्ते को गर्व से सेलिब्रेट करते हैं।
होमोसेक्सुअल्स की तरह ही ये कुत्ते और पिल्ले भी तमाम आयोजन करते हैं, और अपने अधिकारों की मांग करते हैं कि दुनिया उन्हें सम्मान से स्वीकार करे जैसे आम लोगों को स्वीकार करती है।
इसी तरह 'ज़ूफाइल्स' नाम से एक कम्युनिटी भी है। ये वो लोग हैं जिन्हें इंसान सेक्सुअली आकर्षित नहीं करते। चाहे फिर वो लड़की हो या लड़का.! इन्हें जानवरों से इंटरकोर्स आकर्षित करता है। इनमें से कई कहते हैं कि इंसानों के संपर्क में जब तक थे ये अपनी सेक्सुअलिटी को पहचान नहीं पाए थे। अब पहचान लिया, और सुखी हैं। ज़ूफाइल्स में भी कई आइडेन्टिटीज़ हैं।
जैसे कि कुत्तों के साथ सेक्सुअल रिश्ते बनाने वाले साइनोफाइल्स, घोड़ों से साथ वाले इक्विनोफाइल्स, सुअर के साथ वाले पोर्किनोफाइल्स.!!
ये सब भी समाज में स्वीकृति की मांग कर रहे हैं और इनके क्लब्स की संख्या 15-20 लाख तक पहुंच चुकी है।
कई देशों में ये लीगल भी है, कुछ में बैन.! डेनमार्क ने हाल में कानून बनाकर ज़ूफीलिया बैन कर दिया, इसे लेकर इस समाज में बहुत नाराज़गी है। भेदभाव बंद करने की मांग कर रहे हैं। कुछ का कहना है जानवर भी उनके साथ रिश्ते को एन्जॉय करते हैं और ये आपसी सहमति से होता है। कुछ कहते हैं कि जानवर को मारकर खाने की बात करने वाले जानवर से सेक्स में एनिमल राइट्स कहाँ से घुसेड़ लाते.?
एक सर्वे में पता चला कि 81% पुरुष और 100% ज़ूफ़ाइल महिलाएं केवल जानवरों से आकर्षण को ही अपने ज़ूफ़ाइल होने की वजह मानते हैं। उनके मुताबिक इसके पीछे न कोई कारण है, न मानसिक बीमारी.!! ये उनका नेचुरल ज़ूफ़िलिक सेक्सुअल ओरिएंटेशन है, जस्ट लाइक हेट्रोसेक्सुअल्स.!! इन्हें भी खुद पर 'प्राइड' है और समाज में अपनी सेक्सुअल आइडेंटिटी को सम्मान और बराबरी का स्थान दिलाना चाहते हैं.!!
इसी तरह खुद को लड़की की तस्वीर में देखकर एक्साइट होने वाले ऑटोगाइनेफाइल्स हैं, खुद को किसी जानवर की सेक्सुअल लाइफ में मानने वाले ऑटोज़ूफाइल्स, पेड़ो से सेक्स करना पसंद करने वाले डेंड्रोफाइल्स, कीड़ों को अपने ऊपर डालकर सेक्सुअल प्लेज़र लेने वाले फॉर्मिकोफाइल्स., ये सब अपने आपको सामान्य और आम लोगों की तरह बताते हैं.!!
सामान्यतः कानूनन अपराधी होने के चलते डार्क वेब पर छिपकर पीडोफाइल्स भी बच्चो के साथ सेक्स करने के अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इनके पास भी अपने मनोवैज्ञानिक और कथित मानवाधिकार के तर्क हैं।
सबके अपने तर्क हैं, आग्रह दुराग्रह हैं.! होमोसेक्सुअल्स की संख्या ज्यादा है तो उन्होंने होमोसेक्सयूलिटी को ज्यादा नेचुरल घोषित कर लिया.! जिनकी संख्या कम है वो अभी खुली 'प्राइड परेड' नहीं कर पाते।
लेकिन नेचर तो 'प्रोडक्टिवली पर्पसफुल' प्रक्रियाओं को पैदा करती है और यही नेचर के लिए नेचुरल होने का मतलब है। रिप्रोडक्शन को डिस्ट्रक्शन से अलग करने के लिए सेक्स में इमोशन्स, प्लेज़र, बॉन्डिंग और सिक्योरिटी को नेचर ने जोड़ दिया, ताकि सृजन खूबसूरत लगे।
शुद्ध साइंस की भाषा में कहें तो हर जाति के जीवन की हर गतिविधि का मकसद जीन ट्रांसफर ही है। लेकिन नेचर के साथ विकृति और अपवाद हमेशा लिंक्ड रहते। आज कथित समाजसेवी, मानवाधिकारवादी विकृति को 'प्राइड' बताने के लिए कैम्पेन कर रहे हैं।
नॉन-रिप्रोडक्टिव सेक्सुअल साइकोलॉजी को साइंस की भाषा में पैराफीलिया कहते हैं। खुद को अपोजिट सेक्स का सोचने वाले होमोसेक्सुअल्स हो या अपने आपको जानवर समझने वाले ऑटोज़ूफाइल्स, नेचर के सामान्य नियमों पर ये सब पैराफाइल्स असामान्य मानसिक या हार्मोनल विकृतियां ही हैं। कैंटर के रिसर्च पेपर में होमोसेक्सुअल्स के प्रति बहुत उदारता बरतते हुए भी निष्कर्ष यही निकला कि होमोसेक्सुअल्स और पैराफाइल्स में कई कोरिलेट्स हैं, और इस मनोदशा के पीछे के बहुत फैक्टर्स पर रिसर्च बाकी है। लेकिन जज साहब ने घोषणा कर दी कि होमोसेक्सुअलिटी एकदम सामान्य बात है।
दुनिया में सेक्स मार्केट इस समय करीब 35 बिलियन डॉलर का है। 2020 तक ये करीब 55 बिलियन डॉलर होगा। एक साल में तकरीबन 50,000 करोड़ की सेक्स चेंज सर्जरी भी हो रही है। बाजार के इस मेडिकल क्षेत्र में अभी बहुत स्कोप है। लेकिन बाजार ग्रो करे इसके लिए जरूरी है पहले विकृति को स्वीकृति मिले। उसके बाद शौक और फिर ट्रेंड बने। विज्ञापनों को ध्यान से देखा होगा या मार्केटिंग को पढ़ा होगा तो पहला फंडा है कि जहर भी बेचना है तो उसे ग्लोरीफाई किया जाए.!
ख़ैर, आजकल जब कुत्ते का पट्टा पहने इंसान आदमी बनने को तैयार नहीं, तो नेचुरल अननेचुरल की बात मजाक से ज्यादा क्या होगा.!! लेकिन बात ये है कि Section 377 हटने के पहले भी बैडरूम में कोई झांकने नहीं आता था, अब भी नहीं आएगा.!
लेकिन होमोसेक्सुअल्स की पर्सनल लाइफ अगर उनका पर्सनल मसला है तो होमोसेक्सुअलिटी को कोई इज्जत दे या हिकारत भरी निगाह से देखे., उसकी पर्सनल चॉइस में क्यों घुसना.??
वैसे, कोर्ट से Section 377 खत्म हुआ है, HIV और STDs का ख़तरा नहीं.!! .........
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