व्यक्ति निर्माण करता आरएसएस: एक शाश्वत सत्य।

रेशिमबाग नागपुर,
तृतीय वर्ष (विशेष) 2019




संघ शिक्षावर्ग अब पूर्ण वयस्कता को प्राप्त हो गया है। वर्ग स्थल एक तपोथली है। संघ के प्रारम्भिक वर्षो में सभी वर्ग (प्रशिक्षण) यहीं होते थे। यह वह तपोभूमि है जहां से शिक्षित होकर हजारों हजारों ध्येय समर्पित कार्यकर्ताओं ने अपना तन, मन, धन और संपूर्ण जीवन लगाकर संघ कार्य को संपूर्ण हिंदू राष्ट्र में पहुंचाया है। इस दृष्टि से इस भूमि के रजकणों का स्पर्श ही पवित्र करने वाला है। यहां रहकर शिक्षा वर्ग करना अपने पुण्य का उदय होने पर ही संभव है। यह तपोस्थली 7 एकड़ में फैली है। जो न केवल भारत बल्कि विश्व में कहीं भी रह रहे स्वयंसेवकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। पवित्र धाम है। इस भूमि के लगभग मध्य में निर्मित स्मृति मंदिर में विराजित डॉक्टर हेडगेवार जी का विग्रह सब ओर से दिखाई देता है।
ऐसा लगता है कि डॉक्टर जी सतत देख रहे हैं। इस पूरे परिसर के किसी भी स्थान से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि डॉक्टर जी देख रहे हैं।


प्रातः तीसरा पहर 3:30AM का समय कुछ शिक्षार्थी जाग गए। अपनी दैनिक क्रियाओं में लग गए इनकी हलचल से निरंतर कोई न कोई जाग रहा है। 4:15AM पर जागरण का शंख बजे उठा और पूरे 848 शिक्षार्थी, प्रबंधक, शिक्षक, प्रांत प्रमुख, क्षेत्र प्रमुख, और वर्ग की टोली मिलाकर लगभग 1100 लोग जाग गए। सभी उत्साह से भरे हैं। एक दूसरे का सहयोग और समन्वय करते हुए सार्वजनिक शौचालय, स्नानागार का उपयोग करते हुए वे सभी निवृत हो रहे हैं। जिन्हें अपने घर पर शायद सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध है, जिन्हें घर पर हर कार्य में प्राथमिकता मिलती है। यहां आपसी सहयोग और समन्वय से सार्वजनिक जीवन जीने का यह सुखद दृश्य है। यहां सहनशीलता नहीं वरन एक दूसरे की स्वीकार्यता है।
5:00AM का समय हो गया अनेक शिक्षार्थी कैंटीन में चाय पान करते दिखते हैं। अनेक शिक्षार्थी स्मृति मंदिर में ध्यानस्थ बैठे हैं। कुछ शिक्षार्थी वहां स्मृति मंदिर में बैठकर सस्वर एवं अनाहत दोनों प्रकार से रोज यह प्रतिज्ञा दोहराने लगते हैं कि...
सर्वशक्तिमान श्री परमेश्वर तथा अपने पूर्वजों का स्मरण कर मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि अपने पवित्र हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति तथा हिंदू समाज का संरक्षण कर हिंदू राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के लिए मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूं। संघ का कार्य में प्रामाणिकता से, निस्वार्थ बुद्धि से तन, मन, धन पूर्वक करूंगा और इस व्रत का पालन मैं आजन्म करूंगा।
इसी समय समानांतर ही तीन समूह (अलग-अलग) स्मृति मंदिर के बाहर खड़े हैं, जो क्रमशः बंगला, हिंदी, और तेलुगु भाषा में अपना अपना गीत स्वर उच्चारण कर रहे हैं। इससे पहले इन्होंने के केशवाष्टक गाया। 5:40AM तक सभी व्यास सभागृह में आ पहुंचे।
व्यास सभागृह में सभी शांत बैठे हैं। भारत माता के विग्रह के सामने पुष्प रखे हैं। गूगल धूप की भीनी भीनी सुगंध आ रही है। वातावरण में हल्की ठंड है। असीम शांति में सभी दीर्घ श्वसन कर रहे हैं।शिक्षार्थियों को अचानक ध्वनि प्रसारक पर सुनाई देता है, सावधान....... ब्रह्मनाद..........
एक साथ सबने लंबी सांस भरी और गूंज उठा ओमकार ().... तीन बार ओमकार के बाद आधी पंक्ति अग्रेसर ने बोली, ॐ नमोस्तु परमात्माने....... सभी ने एक स्वर में एकात्मता स्त्रोत बोला तीन-चार दिन के सामान्य अभ्यास के बाद ही लय, ताल, यति के साथ सभी समवेत स्वर समवेत स्वर में बोलने के अभ्यस्त हो चुके हैं। एकात्मता मंत्र, आज का पंचांग, और महापुरुष परिचय भी हुआ। यहां से सभी सीधे संघ स्थान पहुंच गए। बिना किसी बिना किसी बातचीत मैदान की ओर जाते हुए स्मृति मंदिर के सामने स्वयंंसेवक प्रणाम कर रहे हैं। मंंदिर के सामने की तरफ से ऐसा लगता है कि डॉक्टर जी पीछे रथ पर विराजित है, आगे गुरुजी। मानो वे सारथी बनकर यज्ञ की ज्वाला के रूप में प्रज्वलित से दिखााई देते। यहां से दोनों को एक साथ प्रणाम हो जाता है। भला शिक्षार्थी इससे वंचित क्यों होगा?
5:45 a.m. पर एक लंबी एक छोटी एक लंबी एक छोटी सीटी के संकेत होते ही सब कुछ स्थिर हो गया। विधिवत शाखा लगी। एक दिन पूजनीय सरसंघचालक जी इसी समय उपस्थित थे। बाद में एक अन्य दिन सरकार्यवाह जी भी प्रातः शाखा आए थे। यहां 3-3 वाहिनी की कुल 5 अनिकीनी है। अनिकिनी 1 व 2 दंड विषय की है। वह दंड के प्रयोग, क्रमिका आदि सीख रहे हैं, पद विन्यास भी सीख रहे हैं। अनिकीनी 3,4 व 5 योग विषय की है। यह संधि योग, और आसन सीख रहे हैं। शाखा का तीसरा कालांश सबका समान है। कालांश है खेल का।
खेलते खेलते सभी प्रकार के आसन प्राणायाम योग आदि का लाभ मिल जाता है। यहां 40 से 65 वर्ष की आयु वाले प्रौढ़ों को खेलते हुए देखने का अपने आप में अलग ही आनंद अनुभव होता है। प्रौढ़ों के मुखमंडल पर बाल सुलभ मुस्कान, बच्चों की तरह विजिगीषु भाव, संघर्ष का भाव एक साथ देखते ही बनता है। शाखा पर होनेवाले खेल व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण स्थान रखते है।


शाखा विकीर के तुरंत बाद 7:00 से 8:00 a.m. पर सभी के लिए अनिवार्य योग कालांश है। विभिन्न विधियां सीखने को मिल रही है। जैसे भागीय श्वसन, एस एम आर टी, रोग निवारण हेतु पैकेज, हिलिंग प्रक्रिया, मधुमेह निवारण योग आदि अनेक प्रकार से बदल-बदल कर सीखने और अभ्यास करने का अवसर मिला है।
8:00 a.m. पर स्वास्थ्यवर्धक अल्पाहार के साथ स्नान आदि का समय भी है। अल्पाहार के साथ सभी अपने-अपने गण गीत का अभ्यास कर रहे हैं। कुछ शिक्षार्थी इस समय परिचय बढ़ाते हैं। एक दूसरे से मिलते हैं। एक दूसरे के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। क्योंकि संपूर्ण भारत के प्रत्येक प्रांत से आए हुए शिक्षार्थी यहां पर मिलते हैं। लघु भारत का स्वरूप अपने साथ समेटने का सुअवसर है। कुछ शिक्षार्थी वंशी, शंख, अनक आदि सीखने के लिए पुनः मैदान में पहुंच रहे हैं। सा..... रे..... ग..... से प्रारंभ करके वंशी वादकों ने ध्वजारोपण बजाने की यात्रा पूर्ण कर ली है। वंशी का प्रभाव तो पूरे दिन सत्रों के बीच के 10-15 मिनट के अंतराल में गूंजता ही रहता है। किसी ना किसी कोने में कोई अभ्यास करता दिख रहा है।


9:45 a.m. संवाद सत्र है अनेक विषयों को इस समय लिया गया।संघ के कार्य विभाग, गतिविधियां, संघ की रीति नीति आदि पर संवाद रहे एक दिन नगर के सेवा प्रकल्प देखने का अवसर भी रखा गया। अलग-अलग बसों में अपने अपने गणों के साथ जाकर विभिन्न सेवा प्रकल्प यथा शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार, संस्कार से संबंधित अनेक प्रकल्प जो नागपुर शहर में चल रहे हैं उन्हें देखने का अवसर मिला सेवा बस्तियों में स्वास्थ्य प्रकल्प के अंतर्गत साप्ताहिक अस्पताल उत्तम सेवाएं दे रहे हैं एक नगर के सेवा प्रकल्प में 6500 परिवार जुड़े हुए हैं इस कालांश में ही व्यक्तित्व विकास संघ कार्य की सर्व व्यापक था सर्व स्पर्शी होना आदि पर भी संवाद चला है सब को बोलने का अवसर मिल रहा है अपनी बात कहने का अवसर मिल रहा है शिक्षार्थी निरंतर अद्यतन हो रहे हैं।


11:00 बजे हैं। सभी अपने निर्धारित स्थान पर साहित्य (पुस्तक) लेकर स्वाध्याय करने लगे है। व्यक्तिगत जीवन में स्वयं का सर्वांगीण विकास करने के लिए स्वाध्याय महत्वपूर्ण है। स्वाध्याय की आदत होना महत्वपूर्ण है। इस परिसर में एक पुस्तक स्टाल है। शिक्षार्थी अपनी रुचि के अनुरूप पुस्तकें खरीद कर भी पढ़ रहे हैं।अनेक शिक्षार्थी अपने स्थान से पुस्तकें भी लाए हैं। अध्ययन के बिना समाज जीवन में कार्य करना कठिन ही है। इसलिए भी अध्ययन आवश्यक है। एक दिन इस समय पूजनीय सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने जिज्ञासा समाधान सत्र लिया था। इसमें 89 शिक्षार्थियों के विभिन्न प्रश्न रखे थे। उनमें से 25 से अधिक प्रश्नों का उन्होंने समाधान किया।
12:00 बजे से सभी भोजन मंडप में पहुंचने लगे। क्रमशः 1 वाहिनी 5 दिन तक भोजन परोसती है। भोजन परोसना प्रारंभ हुआ। 12:20PM सिटी का संकेत होते ही एकदम शांति...... और भोजन मंत्र प्रारंभ हुआ। 10 मिनट के अंदर सभी ने भोजन कर लिया। दूसरी पारी में परोसने वाले शिक्षार्थियों ने भोजन किया। अब 2:15PM तक का समय विश्रांति का है। फिर भी वंशी अभ्यास की ध्वनि सुनाई दे रही है।कुछ लेखन कार्य में लगे हैं। धीरे-धीरे सभी विश्रांति अवस्था में चले गए। यहां बने पांडुरंग भवन, यादव भवन, माधव भवन, मधुकर भवन, ठेंगड़ी भवन सब और एकदम शांति..... परिसर के मध्य में विराजित डॉक्टर जी सबको देख रहे हैं।
वे देख रहे है संघ रूपी जो बीज उन्होंने लगाया था वह किस प्रकार इस राष्ट्र के परमवैभव हेतु उद्यत है।

2:15PM पर शंख ध्वनि के साथ सभी जागते है। कुछेक ने कैंटीन से चाय पान किया। 2:45PM बौद्धिक वर्ग का समय है। यह कालांश प्रशिक्षणवर्ग की आत्मा है। सभी नियत समय पर बौद्धिक पांडाल व्यास सभागृह में 15 मिनट पहले ही आ गए। वर्ग गीत का सामूहिक गायन चल रहा है। सबको गीत याद हो गया इसलिए 1,000 से अधिक लोगों का एक साथ गायन मन मस्तिष्क के तारों को झंकृत कर दे रहा है। समय पर सीटी बजी सब उतिष्ठ हो गए। उपविस हुआ, परिचय हुआ, अमृत वचन और काव्य गीत हुआ। काव्य गीत सुनकर ऐसा लगता है जैसे किसान बीज बोने से पहले जमीन तैयार कर लेता है। वैसा ही काव्य गीत प्रभाव छोड़ता है। अब तक अनेक विषयों पर बौद्धिक हुए। मूल रूप से संघ के वैचारिक अधिष्ठान, कार्यपद्धती, धर्म, एकात्म मानव दर्शन, संघ का विकास, समाज में किए गए संघ के कार्य आदि विषयों का प्रतिपादन उच्च स्तरीय तरीके से हुआ । कार्यकर्ता के गुणों तथा वर्तमान परिस्थिति में क्या क्या ध्यान रखना ताकि निरंतर कार्य कर सकें इस विषय पर पूजनीय सरसंघचालक जी ने 2 दिन तक विषय लिया। सभी बौद्धिक सत्रों का सार भी गण कक्ष में उपलब्ध हो रहा है। शिक्षार्थी समय निकालकर लिख लेते हैं। अधिसंख्य शिक्षार्थी बौद्धिक के साथ साथ ही लिख रहे हैं। सत्र के तुरंत बाद तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम भाषा के शिक्षार्थी तुरंत समूह में बैठते हैं। हिंदी जानने वाले उनके साथी उन्हें उनकी भाषा में समझाते हैं। बौद्धिक के दौरान भाषा समझ नहीं आने पर भी श्रद्धा से इन स्वयंसेवकों द्वारा तन्मय होकर सुनना सब को प्रेरित करता है।
4:00PM प्रांत अनुसार अल्पाहार का समय है। नित्य अपने क्षेत्र के लोगों से मिलते रहने से परिचय में जीवंतता आती रहती है। इसके अतिरिक्त पूरा दिन अपने गण के साथ रहते है। गण में 19 शिक्षार्थी होते हैं। जो भिन्न-भिन्न प्रांतों से विभिन्न भाषाओं को जानने वाले, भिन्न भिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों को मानने वाले कक्ष में एक साथ होते हैं। एक दूसरे के क्षेत्र के बारे में जानने का सुअवसर मिलता है। किंतु 4:00 बजे के अल्पाहार के समय अपने ही क्षेत्र के लोगों से मिलकर आवश्यक सूचनाएं, जानकारियां ली जाती है। एक दूसरे के हाल-चाल पूछ लेते हैं, सब को संभाल लेते हैं। इसी समय कैंटीन में चाय भी चल रही है। कुछ शिक्षार्थी लघु बैंक से अपने जमा अधिकोष से राशि निकाल रहे हैं। कुछ कैंटीन के कूपन ले रहे हैं। बरामदा में ही एक व्यक्ति बैठा है जो शुल्क लेकर जूता पालिश कर रहा है। उसके आगे दाढ़ी बनाने वाला है। उधर कपड़े धोने व उन पर स्त्री करने वाला भी है। लेकिन अधिकांश शिक्षार्थी लगभग 90% शिक्षार्थी स्वयं ही अपने सभी कार्य करते हैं। एक कक्ष में पांच फोन रखे हुए हैं। अनिवार्य होने पर शिक्षार्थी क्रमशः पंक्ति बना कर बात कर रहे हैं। 4:00 से 5:00 का समय अपने संबंधियों से फोन पर बात करने का निर्धारित किया गया है। किसी भी शिक्षार्थी के पास अथवा शिक्षक या प्रबंधक के पास स्वयं का कोई फोन नहीं है। सभी का फोन स्विच ऑफ करके जमा कर लिया गया है। फोन के बिना जीवन कितना सरल होता है, यहां आकर ही अनुभव होता है।
अपनी गणवेश ठीक करके पहनने के बाद शाखा स्थल की तरफ जाने से पहले स्वयं को दर्पण में एक बार अवश्य देख ले रहे हैं। कुछ शिक्षार्थी 10 मिनट पहले ही पहुंच गए हैं। अपने अपने वाद्य पर अभ्यास भी कर रहे हैं।
5:15 पीएम पर शाखा लगी। अब तक तीन प्रकार से संपत कराना सीख चुके है। संघ..... दक्ष. की आज्ञा के बाद घोष प्रमुख की आज्ञा हुई 1..2..3.. 1..2..3.. और वंशी वादकों ने एक साथ ध्वजारोहण बजाया। ध्वज प्रणाम 123 के साथ शाखा प्रारंभ। अनिकीन प्रचल आज्ञा के साथी घोष वादन प्रारंभ हुआ। पूर्ण गणवेश धारी शिक्षार्थियों के दल संचलन करने लगे। संचलन करते हुए ही स्मृति मंदिर की एक परिक्रमा पूरी कर ली। सबके कदम मिल रहे हैं। ऐसा लगता है कि वेद मंत्र सँगच्छध्वम संवद्ध्वं संवोम्नांसि... स्वयं साकार हो उठा।


सामूहिक समता, दंड योग, व्यायाम योग, अचार पद्धति के बारे में बारी बारी से कालांश भी अब तक होते रहे हैं। शाखा विकीर के बाद संघ स्थान पर ही खड़े होकर सभी अपने-अपने गण गीत का अभ्यास कर रहे हैं। एक बार सायं संघ स्थान पर पूजनीय सरसंघचालक जी आए थे। सभी शिक्षार्थियों ने सरसंघचालक प्रणाम किया प्रत्युत प्रचलन के बाद शाखा लगी। उस दिन एक साथ तीन सरसंघचालक जी को प्रणाम हुआ। उस दिन दंडयोग प्रदर्शन के बाद सरसंघचालक जी ने कहा कि जैसी सांगिकता से प्रदर्शन इस वर्ग के शिक्षार्थियों से अपेक्षित था वैसा ही किया गया।


संघ स्थान से आवास कक्ष की ओर जाते समय स्मृति मंदिर के आगे से निकलते हुए ध्यान से देखने पर पांच द्वार बने हुए दिखाई देते हैं। इन द्वारों पर तीन-तीन धनुष बने हैं। यह पूरा वास्तु जोधपुर के पत्थर का बना है। यह जोधपुर के लिए गौरव की बात है। पांच द्वार संघ प्रार्थना में मांगे गए पांचों गुणों का प्रतिनिधित्व करते दिखते हैं। लगता है डॉक्टर जी पांचों द्वार से देख रहे हैं। प्रत्येक द्वार से एक एक गुण- अजेय शक्ति, सुशील, श्रुतं, वीरव्रत, और अक्षय ध्येयनिष्ठा ये पांचों गुण द्वार पर बने धनुष के द्वारा स्वयंसेवकों में निरंतर वृद्धि कर रहे हैं। अभी योग सहित और भी प्रदर्शन सरकार्यवाह जी के समक्ष होने हैं।
7:00 p.m. पर सभी गटानुसार बैठ गए हैं। समरसता मंत्र के बाद प्रतिदिन की तरह आज के बौद्धिक पर चर्चा हुई। चर्चाप्रवर्तक चर्चा की दिशा को कायम रखते हैं। बाकी सभी विद्वानों की टोली दिए गए विषय पर पर्याप्त उदाहरण देकर विषय का विस्तार करती है। चर्चा द्वारा ही प्रत्येक शिक्षार्थी को अपनी बात कहने का अवसर मिलता है। साथ ही अपने पूर्व ज्ञान का परिमार्जन और उन्नति करने का अवसर मिलता है।
8:30 भोजन मंत्र का समय है। सभी भोजन हेतु बैठते हैं। एक दिन इस समय से पूर्व सभी को सेवा बस्ती दर्शन हेतु जाना हुआ था।
उस दिन सभी भोजन हेतु अपने पात्र लेकर बैठ गए। भोजन परोसने का समय हो चला था। किंतु माइक पर सूचना होती है कि गाला क्रमांक 1 से 15 तक वितरण करने वाले शिक्षार्थी अभी पहुंचे नहीं है। सभी शिक्षक और प्रान्त प्रमुख उतिष्ठ... शिक्षक और प्रांत प्रमुख आज आप भोजन वितरण करेंगे। सभी उठ खड़े हुए अपने भोजन पात्र बैग में डाले और चल पड़े, पाकशाला की तरफ। एक शिक्षार्थी एक प्रांत प्रमुख ने कहा आप बैठिए मैं चला जाता हूं। उत्तर मिला, नहीं जो सूचना मिली है उसकी पालना करनी ही चाहिए, और वे चल पड़े।अनुशासन का दूसरा नाम ही संघ है।
गण-गीत प्रतियोगिता, दंड योग प्रतियोगिता, आसन प्रदर्शन हो चुके हैं। समता, खेल, दंड और पद विन्यास का प्रदर्शन होने वाला है। एक-एक कर विभिन्न विषय पूर्ण हो रहे हैं। लेकिन सीखना कभी पूरा नहीं होगा। जीवन भर निरंतर सीखना चलता ही रहता है। संचलन करते समय अपनी गति को अपनी पंक्ति के अन्य तीन साथियों के साथ समंजन कर साथ चलना और सीधी पंक्ति बनाए रखना यह तो जीवन भर सीखते रहने का ही विषय है।


9:15PM का अंतिम कालांश है। आज यह मुक्त कालांश है। कभी यह कालांश शिक्षार्थी सहभाग के रूप में भी हुआ है। जिसमें गीत, भजन, नाटक आदि का प्रदर्शन हुआ। क्षेत्रीय भाषाओं के प्रदर्शन भी समान रूप से आनंददाई रहे हैं। कभी इस कालांश में पुस्तक चर्चा, कभी दिवंगत कार्यकर्ता का परिचय आदि विषयों का यह समय रहा है। रात्रि के 10:00PM पर दीप विसर्जन होता है।
धीरे-धीरे शिक्षार्थी अपने आवास तक की ओर जाते हैं। धीरे-धीरे पूरे परिसर में शांति छा जाती है।


अर्धरात्रि है अब भी डॉक्टरजी अपने स्थान पर विराजित सबको देख रहे हैं, इस प्रकार का अनुभव बीच-बीच में जब निद्रा खुलती है, तब होता रहता है। इस प्रकार 25 दिन पूर्ण हुुुए सभी शिक्षार्थी तृतीय वर्षष वर्ग पूर्ण कर चुके हैं उनके मनो में घर जाने का उत्साह है। इतने दिन साथ रहे साथियोंं से बिछड़ने का दुख है और आंखों में भारत माता की जय के स्वप्नन समझाएं अपने अपने स्थाथान की ओर प्रस्थान कर रहे है।

टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. सुंदर वर्णन
      संघ के बारे में जानने के लिए संघ की शाखा के शिविर में भाग लेने पर ही पता चलता है की स्वयंसेवको को कितने अनुशासन में सेवा कार्य के लिए प्रेरित किया जाता है

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  2. हम इस महान कार्य के प्रति अविचल निष्ठा रखें। यह हमारे जीवन का एकमेव कार्य है। अपने ध्येय को हम अपने ह्दयपटलपर अंकित कर लें। हमें समूचे हिन्दू समाज में नवचैतन्य भरना है तथा निर्भय वृत्ति उत्पन्न करनी है। सामाजिक भावशक्ति निर्माण कर समाज के प्रत्येक व्यक्ति के ह्दय में हमें स्वाभिमान तथा आत्मविश्वास जागृत करना है।
    परम पूजनीय आद्य सरसंघचालक
    केशव बलिराम हेडगेवार
    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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  3. RSS भारत की आत्मा है।भारत माता के चरणों के सच्चे सेवक हैं।हमारा और हमारे बेटा का जीवन है।

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  4. अती सुंदर वर्णन किया है l

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  5. भाई चरत जी को प्रणाम
    आपने तो अपने वर्णन मैं पूरा वर्ग ही दोबारा करा दिया ।वर्ग की सभी यादें ताजा हो गई ।

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