कमीशनखोरी पर चोट
मंडी में किसान अपना माल फैला कर एक कोने में हाथ बांध कर मज़दूरों की तरह बैठ जाता है और बार बार मंडी के दलाल से विनती करता रहता है कि साहब मेरे माल की भी बोली लगवा दो।
दलाल:- रुक जा, देख नहीं रहा, कितने लोग है लाइन में.?
किसान:- चुपचाप एक कोने में बैठा, थोड़ी देर में फिर दलाल के पास जकर बोलता है, साहब अब तो देख लो।
तभी दलाल किसान पर एहसान जताते हुए आता है और एक मुट्ठी अनाज अपने हाथ मे लेकर बोलता है - “उफ्फ इस बार फिर सी ग्रेड का माल ले आया।”
जो भी है साहब ये ही है।
ठीक है अभी देखता हूं, 50 रुपये सस्ते में जायेगा पर ये माल।
जैसा भी आप सही समझो साहब..!!
थोड़ी देर में दलाल आता है और उसका माल उठवाता है..!!
“कुल 18क्विंटल माल बैठा है।”
पर साहब घर से तो 20क्विंटल तोल कर लाया था...!
“तेरे सामने ही तो तोला है, मैं थोड़े ही खा गया 2क्विंटल माल। बता पैसे अभी लेगा या बाद में लेकर जाएगा।”
अभी देदो साहब,घर में बहुत जरूरत है।
इसमें 5% कमिशन कट गया,
9% मंडी का टैक्स..,
200 रुपए सफाई वाली के..,
1000 रुपये बेलदार के..
200 रुपये चौकीदार भी मांगेंगे...
500 रुपये की तुलाई लग गई....।
“ये ले भाई तेरा सारा हिसाब लगा कर इतना बनता है।”
हाथों में नोटो को दबा कर घर जाकर, जब हिसाब लगाता है, तो पता चला, सब कट-पिट कर कुल “15क्विंटल” के माल का पैसा ही हाथ लगा..!!
बाकी 5क्विंटल कहां गया..??
बस जितनी भी राज्य सभा मे आपने हाथापाई देखी, जितना भी विरोध आप सड़को पर किसान बिल 2020 के लिए देख रहे हो,
“ये सब उसी 5 कुंतल के लिए हो रहा है।
वर्ना...
बाकी सब ऐसे ही चलेगा..
बिचौलियों के लिए अभी भी रास्ता खुला है, बस वो अपनी मनमर्जी नहीं कर पाएंगे किसानों पर। क्योंकि सरकार ने किसानों के लिए एक अलग रास्ता और दे दिया है। जिसमे किसान बिचौलियों के पास न जाकर, सीधे ग्राहक या ग्राहक कंपनी तक पहुच सकता है।
“दुःख बस इन 5क्विंटल वालो को ही हो रहा है”
केंद्र सरकार ने किसानों को स्वतंत्रता दी कि आप चाहें तो मंडी में अपनी फसल बेचने के बदले भारत में कहीं भी अपनी पसंद के ग्राहक को भी बेच सकते हैं। पहले केवल एक ही विकल्प था कि अपने ही राज्य की मंडी में बेच सकते हैं।
इस आजादी को कुछ राजनैतिक दल और उनके किसान संगठन इस रूप में पेश कर रहे हैं कि मंडियां नहीं रहेंगी तो किसानों का बड़ा नुकसान हो जायेगा।
मंडियों को कौन खत्म कर रहा है? वे अपनी जगह बनी रहेंगी। केवल किसानों को विकल्प दिया गया है कि मंडी में बेचने के बदले चाहें तो कहीं और भी बेच लें। विकल्प दिया गया है कि मंडी में रजिस्टर्ड आढ़ती के बदले किसी भी कंपनी या व्यापारी या उपभोक्ता को अपनी फसल बेच लें। मंडी जाने के बदले कहीं और जा कर किसी को भी बेच लें, या कोई उनके घर आ कर खरीदना चाहे तो उसे ही अपनी फसल बेच लें। मंडी में रजिस्टर्ड आढ़ती का एकाधिकार खत्म हुआ है, किसान को विकल्प मिला है। तो किसान का नुकसान क्या है? जब उसके पास बेचने के लिए ज्यादा विकल्प होंगे तो उसे बेहतर दाम नहीं मिलेंगे क्या?
और अगर किसी को यह लगता है कि मंडी समितियों का एकाधिकार खत्म होने के बाद वहां धंधा बंद हो जायेगा, किसान वहां फसल बेचने नहीं आयेंगे, तो यह अपने-आप में सिद्ध होता है कि मंडी समितियां केवल किसानों को लूटने का अड्डा बनी हुई हैं। तभी तो मौका मिलते ही किसान उनसे पिंड छुड़ा कर भाग लेंगे। मंडी समितियों के आढ़तियों को अब किसानों को सही दाम देने होंगे। सारी तकलीफ यही है।
दूसरी बात, लोग अफवाह उड़ाने में लगे हैं कि केंद्र सरकार एमएसपी खत्म कर रही है। चुनौती देकर पूछ रहा हूं कि जो तीन विधेयक रखे गये हैं, उनमें से किसमें एमएसपी खत्म करने की बात लिखी है? किसान को यह विकल्प दिया गया है कि वह फसल बोने से पहले ही किसी खरीदार से समझौता कर सकता है कि फसल तैयार होने पर उसे किस भाव पर बेचना है। ऐसे खरीदार अगर किसान को अच्छा भाव देंगे, तभी वह समझौता करेगा। कोई बंधन थोड़े ही है कि पहले से समझौता करना ही है। किसान को पता है कि एमएसपी कितना है। अगर कोई खरीदार उसके पास एमएसपी से कम भाव का समझौता करने आये तो वह उसे दुत्कार कर भगा दे। अगर किसान को लगे कि फसल तैयार होने के बाद एमएसपी पर बेचना फायदेमंद रहेगा तो वह एमएसपी पर ही बेचे। अगर बाजार उसे एमएसपी से भी बेहतर भाव दे, तो खुले बाजार में बेचे।
जहां किसान के सामने हर तरह के विकल्प खोले जा रहे हैं, उसी को लेकर किसानों के बीच भ्रम फैलाया जा रहा है इसलिये अफवाह फैलाने वाले दलाल चमचो से दूर रहें।
प्रधानमंत्री मोदी जी का खेल कामयाब हुआ है और किसानों को राहत।
कृषि विधेयक लोकसभा और राज्यसभा से पारित।
कृषि विधेयक नोटबंदी पार्ट - 2 है।
जैसे नोटबंदी से ब्लैकमनी का जखीरा दबाए रखने वाले नेस्तनाबूद हो गये थे। वैसे ही इस बिल से पंजाब और महाराष्ट्र के दो दिग्गज बर्बाद हो गये।
पंजाब के सुखबीर बादल और महाराष्ट्र के शरद पंवार के हालात बुरे हो रहे है।
सुखबीर के सुखबीर एग्रो को कम से कम 5000 करोड़ सालाना की आय होती थी। वे एफसीआई के और किसानों के बीच के कमिशन एजेंट थे। उनकी कंपनी को 2.5% कमिशन मिलता था। सारे वेयरहाउस उन्हीं के थे। बग़ैर सुखबीर एग्रो का ठप्पा लगे कोई किसान एक टन गेहूं एफसीआई को बेच नहीं सकता था। एक झटके में सब बर्बाद हो गया।
महाराष्ट्र में शरद पंवार की बेटी सुप्रिया सुले 10000 करोड़ का कृषि आय दिखाती थी। पूरे प्याज, मिर्च और अंगूर के व्यापार पर इसी परिवार का कंट्रोल था। इस बिल ने पंवार को कहीं का नहीं छोड़ा।
मोदी जड़ काटता है डालियां नहीं काटता है।
अकाली दल और एनसीपी को अगले चुनाव में भीख मांगते देखा जाएगा।
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