राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन : आज़ादी के जश्न से दूर रहने वाले भारत रत्न
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन : आज़ादी के जश्न से दूर रहने वाले भारत रत्न भारत की आज़ादी का इतिहास केवल राजनीतिक घटनाओं और सत्ता परिवर्तन की कहानी नहीं है, बल्कि यह त्याग, आदर्श और संस्कृति के प्रति निष्ठा की गाथा भी है। इस गाथा में अनेक ऐसे नाम हैं जिन्होंने पद और प्रतिष्ठा से अधिक राष्ट्र और समाज को प्राथमिकता दी। उन्हीं महान विभूतियों में एक थे राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन । वे ऐसे नेता थे जिन्होंने आज़ादी मिलने के बाद भी उसका जश्न नहीं मनाया, क्योंकि उनके लिए बँटा हुआ भारत अधूरा था। जन्म और प्रारंभिक जीवन पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त 1882 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ। बचपन से ही वे तेजस्वी और संवेदनशील प्रवृत्ति के थे। शिक्षा के दौरान ही उनमें देशप्रेम की भावना प्रबल हो गई। अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध विचार प्रकट करने पर उन्हें म्योर कॉलेज से निकाल दिया गया। 1906 में उन्होंने सर तेज बहादुर सप्रू के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरू की, लेकिन उनका मन केवल वकालत तक सीमित नहीं रहा। वे समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए लालायित थे। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योग...