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अगस्त 3, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रक्षाबंधन: सामाजिक समरसता और समाज रक्षा के संकल्प का महापर्व

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रक्षाबंधन: सामाजिक समरसता और समाज रक्षा के संकल्प का महापर्व रक्षाबंधन केवल भाई-बहन के स्नेह का त्योहार नहीं, अपितु सामाजिक समरसता और समाज की रक्षा के संकल्प का उत्सव है। यह भारतीय संस्कृति में “रक्षा” के भाव को व्यापक रूप में प्रस्तुत करने वाला ऐसा पर्व है, जो केवल व्यक्तिगत रिश्तों तक सीमित न होकर पूरे समाज को जोड़ने, सहभाव का संदेश देने और धर्म-संरक्षण के महान उद्देश्य से ओतप्रोत है। रक्षा का अर्थ व्यापक है "रक्षा" का अर्थ मात्र बाह्य संकट से सुरक्षा नहीं, बल्कि मूल्य, परंपरा, आस्था, संस्कृति और समाज की समग्र चेतना की रक्षा है। रक्षाबंधन इस रक्षा को प्रतीकात्मक रूप से एक सूत्र के माध्यम से सम्पूर्ण समाज से जोड़ता है। राखी वह सूत्र है जो हमें एक-दूसरे के दुःख-सुख का सहभागी बनाता है। यह बंधन दायित्वबोध का प्रतीक है – सामर्थ्यवान अपने से निर्बल के प्रति रक्षक की भूमिका निभाएगा। समाज का सशक्त वर्ग ले संकल्प रक्षाबंधन के मूल भाव में यह दर्शन निहित है कि समाज का सशक्त वर्ग—चाहे वह भौतिक, बौद्धिक, या नैतिक दृष्टि से समर्थ हो—अपने सामर्थ्य का उपयोग वंचितों, उपेक्...

खेती, आत्मनिर्भरता और देश का मान – किसानों की पक्की बात

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खेती, आत्मनिर्भरता और देश का मान – किसानों की पक्की बात कहते हैं, “जिसका पेट भरा हो, वही देश का नाम रोशन कर सकता है।” भारत में यह काम सदियों से किसान कर रहा है। धरती मां को सींचकर, सूरज की तपन और बारिश की बूंदें अपने माथे पर लेकर, किसान ने ही देश को भूखा नहीं सोने दिया। 7 अगस्त 2025 को दिल्ली में एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी सम्मेलन हुआ। वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी साफ बात कही – “किसान, पशुपालक और मछुआरों के साथ कोई समझौता नहीं होगा।” उन्होंने जैविक खेती, डेयरी, मत्स्य पालन और कुटीर उद्योग को नई ताकत देने के फैसले सुनाए। किसानों ने क्यों किया स्वागत भारतीय किसान संघ, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित संगठन है, ने कहा – “ये फैसले सिर्फ कागज़ी नहीं, खेत-खलिहान में असर दिखाएंगे।” सोचिए, अगर गांव में दूध का उत्पादन बढ़े, तो सिर्फ शहर को ही नहीं मिलेगा, गांव की माली हालत भी सुधरेगी। अगर तालाब में मछली पालन बढ़े, तो खेत के किनारे से ही आमदनी का नया रास्ता खुलेगा। जैविक खेती – मिट्टी की ताकत बनी रहेगी, पानी साफ रहेगा, और खाने में ज़हर नहीं मिलेगा। ...

"दबाव की राजनीति ध्वस्त: भारत ने राहुल से ट्रंप तक सबको दिया करारा जवाब"

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भारत की दृढ़ता: दबाव की राजनीति के सामने अडिग संकल्प मनमोहन पुरोहित की कलम से भारतीय राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला पुराना है, लेकिन हाल के दिनों में यह एक नए रंग में सामने आया है—दबाव की राजनीति। कर्नाटक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जो “एटम बम” कहकर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के आरोप लगाए, वह चुनाव आयोग की चिट्ठी के बाद कुछ ही मिनटों में “फुस्स” हो गया। वहीं, वैश्विक मंच पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारत पर शुल्क बढ़ाकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इन दोनों घटनाओं में एक समानता साफ दिखती है— दबाव की रणनीति , परंतु भारत की प्रतिक्रिया में भी एक समानता है— दृढ़ता और आत्मविश्वास । कर्नाटक का ‘एटम बम’ और चुनाव आयोग की सख्ती कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने घोषणा की थी कि राहुल गांधी 5 अगस्त को वोट चोरी का सबूत देंगे। यह बम 5 को नहीं, 7 अगस्त को फोड़ा गया, लेकिन चुनाव आयोग ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए राहुल गांधी को नोटिस भेजा और उनसे शपथपत्र में सबूत मांगे। चुनाव आयोग ने स्पष्ट कहा—यदि आपके आरोप सही हैं, तो उन्हें लिखित रूप...

उत्तरकाशी: भोलेनाथ का तांडव या विकास की त्रासदी?

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भोलेनाथ का तांडव या विकास की त्रासदी? उत्तराखंड में आपदा बनाम अंधा विकास - मनमोहन पुरोहित (लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं) उत्तरकाशी की त्रासदी धरती पर देवों की भूमि कही जाने वाली उत्तराखंड एक बार फिर प्रलय की चपेट में है। उत्तरकाशी जिले के धराली और खीर गंगा घाटी में बादल फटने और तेलगाड़ नाले में अचानक आई बाढ़ ने जो तबाही मचाई, वह दिल दहला देने वाली है। धराली गांव में 50 से अधिक घर, 30 होटल और 30 होमस्टे मलबे में तब्दील हो गए। 10 मीटर चौड़ी खीरगंगा नदी का प्रवाह 39 मीटर तक फैल गया और रास्ते में जो भी आया, उसे निगलती चली गई। प्रशासन भले ही केवल 4 मौतों और 100 से अधिक लोगों के लापता होने की बात कह रहा हो, लेकिन जमीनी तस्वीर इससे कहीं अधिक भयावह प्रतीत होती है। क्या यह भोलेनाथ का क्रोध है? 2013 में केदारनाथ में आई प्रलयंकारी आपदा से लेकर आज तक उत्तराखंड एक के बाद एक आपदाओं से जूझ रहा है। यह मानना आसान है कि यह भोलेनाथ का प्रतीकात्मक "तांडव" है, लेकिन असल में यह हमारे विकास मॉडल की असफलता और प्रकृति से छेड़छाड़ का प्रत्यक्ष परिणाम है। राज्य...

मालेगांव केस: न्याय की प्रतीक्षा से विजयी सत्य तक

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✍️ मनमोहन पुरोहित 🔷 प्रस्तावना: 29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भीखू चौक पर हुए बम विस्फोट ने न केवल निर्दोष नागरिकों की जान ली, बल्कि देश की सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका, राजनीतिक स्वार्थों और मीडिया की विश्वसनीयता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए। इस घटना के 16 वर्षों बाद 2024 में NIA विशेष अदालत ने इस मामले में सभी आरोपितों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। यह निर्णय न केवल न्याय की पुनर्स्थापना है, बल्कि उन वर्षों की पीड़ा और सामाजिक लांछनों का जवाब भी, जो निर्दोषों पर थोपा गया। ⚖️ न्यायालय का निर्णय: आरोपों की पुष्टि नहीं विशेष NIA न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में असफल रहा। जिस बाइक को साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से जोड़ा गया, उसकी नंबर प्लेट जाली पाई गई और इंजन-चेचिस नंबरों को मिटा दिया गया था। कर्नल प्रसाद पुरोहित पर कश्मीर से आरडीएक्स लाकर बम बनाने का आरोप लगाया गया, लेकिन इसका कोई भौतिक प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जा सका। सुधाकर चतुर्वेदी के घर विस्फोटक मिलने की बात की गई, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि उसे वहाँ किसने रखा। साक्ष्य के अभाव ने अदालत...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: हिन्दू समाज और राष्ट्र जागरण का महा अभियान

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: हिन्दू समाज और राष्ट्र जागरण का महा अभियान परिचय विजयदशमी 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे करेगा। यह एक ऐसा संगठन है, जो न केवल समय की कसौटी पर खरा उतरा, बल्कि अपने मूल लक्ष्य और कार्यशैली को अक्षुण्ण रखते हुए विश्व का सबसे विशाल संगठन बन गया। मनमोहन पुरोहित के शब्दों में, “हिन्दू समाज जीवन की विषमताओं के बीच राष्ट्र जागरण का महा अभियान” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की कहानी है। यह ब्लॉग संघ के गठन की पृष्ठभूमि, इसके उद्देश्यों, और उस समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालता है, जिन्होंने इस संगठन को जन्म दिया। संघ की स्थापना की पृष्ठभूमि: एक ऐतिहासिक संदर्भ संसार में कोई भी विचार, व्यक्ति, या संगठन अकस्मात जन्म नहीं लेता। प्रकृति की लंबी प्रक्रिया और सामाजिक परिस्थितियाँ इसके लिए आधार तैयार करती हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन भी ऐसी ही एक प्रक्रिया का परिणाम था। 1925 में, जब संघ की स्थापना हुई, भारत एक कठिन दौर से गुजर रहा था। अंग्रेजी शासन की कुटिल नीतियाँ, हिन्दू समाज में फैला भय और विखराव,...

स्वदेशी भारत के आत्मसम्मान का जागरण

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  स्वदेशी भारत के आत्मसम्मान का जागरण प्रधानमंत्री मोदी के काशी आह्वान से राष्ट्रहित की पुकार आओ संकल्प लें घर में जो भी नया आए वह स्वदेशी हो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी अगस्त दो हजार पच्चीस काशी की धरती से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से जो आह्वान किया वह केवल एक आर्थिक सुझाव नहीं बल्कि भारत की आत्मा को जगाने वाला राष्ट्रमंत्र है मोदी जी ने स्पष्ट कहा कि हम संकल्प लें कि हमारे घर में जो कुछ भी नया सामान आएगा वह स्वदेशी ही होगा और यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं हर नागरिक की भी है यह वक्तव्य सिर्फ बाजार का नहीं यह भारत के स्वत्व का उद्घोष है यह पुकार है आत्मनिर्भरता के उस संकल्प की जो हमारे राष्ट्रनिर्माण की आधारशिला है। स्वदेशी कोई विकल्प नहीं यह भारत का संस्कार है स्वदेशी केवल भारत में बना हुआ उत्पाद नहीं है यह एक विचार है एक दृष्टि है एक संस्कार है जब हम खादी पहनते हैं जब हम हाथ से बनी वस्तुएं खरीदते हैं जब हम भारतीय ऐप और तकनीक का उपयोग करते हैं तो हम न केवल देश की अर्थव्यवस्था को बल्कि अपनी संस्कृति को भी सशक्त बना रहे होते हैं मोदी जी...