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संस्कृत: आत्मनिर्भर भारत के 'स्व' की संवाहिका

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🌸 संस्कृत: आत्मनिर्भर भारत के 'स्व' की संवाहिका 🌸 ✍️ लेखक: मनमोहन पुरोहित "संस्कृतं नाम दैवी वाक्" – यह देववाणी केवल एक भाषा नहीं, अपितु भारत की आत्मा की संवाहिका है। 1 अगस्त 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने नागपुर के निकट रामटेक स्थित कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार अंतरराष्ट्रीय गुरुकुल के उद्घाटन अवसर पर जो उद्बोधन दिया, वह न केवल भाषा चेतना का आह्वान था, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की आत्मा की पुनर्स्थापना का मंत्र भी था। 🇮🇳 आत्मनिर्भर भारत और 'स्व' की पहचान डॉ. भागवत जी ने स्पष्ट कहा – "यदि हमें आत्मनिर्भर बनना है, तो हमें अपने स्व को समझना होगा।" यह 'स्व' क्या है? यह केवल आर्थिक या सैन्य स्वावलंबन नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक, वैचारिक, भाषिक और आध्यात्मिक अस्मिता है। यह भारत का 'स्वभाव', 'स्वधर्म' और 'स्वत्व' है, जिसकी नींव संस्कृत जैसी भाषा और विचारधारा पर टिकी हुई है। 🪔 संस्कृत: भारत की आत्मा की भाषा संस्कृत भारत की न केवल...