मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं!
मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं!
इस लक्ष्य पर चलते हुए नानाजी देशमुख ने विकास से अवरुद्ध देश के कई गांवो की तस्वीर ही बदल कर रख दी थी।
11 अक्टूबर, 1916 को महाराष्ट्र के परभणी में नानाजी का जन्म हुआ। बचपन से ही संघ के संस्कारों में पले बढ़े नानाजी देशमुख ने भारतीय राजनीति में उन लोगों में स्थान बनाया जिन्होंने आदर्श की मिशाल स्थापित की है ! भगवान राम की तपो- भूमि चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाकर भगवान राम की तरह ही सबसे पिछड़े व्यक्ति/परिवार के उत्थान का लक्ष्य लेकर उन्होंने आस पास के गांवो में ग्रामीण आधारित विकास की अवधारणा को पुष्ट किया।
जयप्रकाश नारायण को पटना के आयकर चौराहे पर 👮 लाठियों में से सुरक्षित निकाल कर लाने वाले नानाजी ने आपातकाल के बाद बलरामपुर से लोकसभा का चुनाव जीतकर मोरारजी मंत्रिमंडल में यह कहकर शामिल होने से मना कर दिया कि, 60 वर्ष की उम्र के बाद संसदीय राजनीति से दूर रहकर सामाजिक/सांगठनिक कार्य करने चाहिए !
की संघ निष्ठा, बौद्धिक क्षमता, आदर्शवादी प्रकृति और सहज- सरल स्वभाव के प्रति आत्मीयता व ऋद्धा भाव जो उन्हें विरासत में मिले उन आदर्शों एवं शुचिता का अक्षरशः अनुपालन करने वाले नानाजी देशमुख को मरणोपरांत भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया !
-गंगा सिंह राजपुरोहित
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