""ओ मेरे कुम्हार""




वाह रे मेरे कुम्हार
ढूढता रहा तुझे उम्र भर

तेरे हाथों की छुअन का
एहसास होता रहा मुझे

वाह तेरी कारीगरी
जमाना सराहता रहा मुझे

मुझे बनाया ऐसा कि
तृप्त करता रहा सूखे गलों को

तर करता रहा दिलोदिमाग
फिर से जब दुनिया कर देगी
मिट्टी मुझे

तू फिर से संभालेगा
कंकड़ों से छानेगा

फिर से नया रूप देगा
और घड़े को बना देगा"सागर"।

"सागर"महेंद्र थानवी।

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