राजनीति में रामविलास पासवान का स्थान
राजनीति में रामविलास पासवान का स्थान
किसी व्यक्ति की महत्ता उसके जाने के बाद ही समझ आती है। भारत के वंचित-दलित-शोषित समाज से आने वाले बड़े नेता रामविलास पासवान राजनीति में निश्चित एक रिक्तता छोड़ जाएँगें। इस कोरोना-काल में उनका जाना सरकार के लिए एक अपूरणीय क्षति है। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गरीब कल्याण अन्न योजना को ज़मीन पर उतारने में उनकी महत्त्वपूर्ण एवं सक्रिय भूमिका रही। वे किसी विचारधारा या गठजोड़ के भरोसेमंद कितने रहे, कितने नहीं, यह मुद्दा आज गौण है। इसका भी कोई विशेष महत्त्व नहीं कि उन्हें मौसम का मिज़ाज पहचानने वाले नेता के तौर पर प्रस्तुत कर उनके विरोधी उनका उपहास उड़ाते रहे। महत्त्व इस बात का है कि वे जनता के मन और मिज़ाज को समझते थे। वे राजनीति का मर्म समझने तथा जनता की नब्ज़ पढ़ने-परखने वाले व्यावहारिक राजनेता थे। इसलिए उन्हें पता होता था कि जनता की नज़रों में किस राजनीतिक दल का पलड़ा कितना भारी है। जिस पक्ष में भी वे रहे, वहाँ बड़ी सक्रियता से अपनी भूमिका निभाते रहे। उनका कद सचमुच बड़ा था। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के बाद वे दलितों के प्रमुख नेताओं में से एक थे। वे एक सफ़ल विधायक, सांसद एवं मंत्री रहे। दल एवं विचारधारा से परे सभी दलों एवं राजनेताओं से उनके बेहतर एवं मधुर संबंध थे। वे राजनीति बड़े जुझारूपन से करते रहे, पर संबंध और व्यवहार में सबके साथ मृदुल रहे।
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बिहार के अन्य ज़मीनी नेताओं की तरह उनकी पृष्ठभूमि भी जेपी आंदोलन से जुड़ी रही। वी.पी सिंह सरकार में मंडल कमीशन को लागू करवाने वाले नेताओं में उनकी अग्रणी भूमिका रही। शोषित, वंचित, दलित, अभावग्रस्त तबक़े के लिए उन्होंने मन से काम किया। जनता जनार्दन ने उन पर अपना प्यार उन्हें अपना मत देकर भरपूर लुटाया। वे जीते, लगातार जीते, बार-बार जीते, रिकॉर्ड मतों से जीते। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में रिकॉर्ड मतों से जीतकर उन्होंने इतिहास रचा। संसदीय कार्यवाही एवं विधायी प्रक्रिया की उन्हें बेहतर समझ थी। वे संसद की गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। वे ग़रीबों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं में से एक थे। राजनीति में जेपी, लोहिया, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे समाजवादी नेताओं की परंपरा को आगे बढ़ाने का उनका प्रयास रहता था।
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रामविलास पासवान की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि संसदीय प्रणाली एवं संघीय ढाँचे में उनका पूर्ण विश्वास था। दलित राजनीति करने वाले अनेक युवा नेता आज कई बार संविधान की सीमाओं का अतिक्रमण कर जाते हैं। उनका ऐसा व्यवहार एवं राजनीति - अराजकता के अध्याय रचती है। व्यवस्था एवं संस्थाओं का अवमूल्यन करती है। सामाजिक वैमनस्यता पैदा करती है। विभाजन की स्थायी लकीर खींच देती है, जिसे पाटने में फिर वर्षों लगते हैं। रामविलास पासवान ने हमेशा संवैधानिक दायरे में रहकर सुधारों की पैरवी की। वे परिवर्तन के वाहक बने, पर मर्यादाओं के कूल-कछार तोड़कर बहने वाले बरसाती नदी की तरह उनकी राजनीति कभी नहीं रही। वे जुड़ते और जोड़ते रहे। राजनीति में वे बाबा साहब आंबेडकर की तरह भारत और भारतीयता का अनुसरण करते प्रतीत होते हैं। जिस प्रकार बाबा साहेब अपमान का दंश झेलकर भी राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध नहीं गए, उसी प्रकार रामविलास जी ने भी हाशिए पर खड़े वर्ग की राजनीति करते हुए भी मुख्यधारा को बाधित-अवरोधित नहीं किया। दलित राजनीति करने वाले नेताओं को उनके जीवन से यह सीख लेनी चाहिए कि संस्था, व्यवस्था एवं संविधान की गरिमा को ठेस पहुँचाए बिना भी गरीबों-शोषितों-वंचितों के लिए न्याय एवं सम्मान की निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सकती है। और पिछले कुछ वर्षों से रामविलास पासवान की दलित राजनीति में यह सुखद बदलाव भी देखने को मिला कि वे न्याय एवं समानता की इस लड़ाई को जातियों के संकीर्ण दायरे से बाहर निकालने के लिए प्रयासरत रहे और कुछ हद तक सफल भी। वे दलितों-पिछड़ों-अगड़ों में बँटी भारतीय राजनीति के लिए सही मायने में सेतु-संपर्क स्थापित करने का काम करते रहे।
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प्रणय कुमार
9588225950
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