रतन टाटा के नाम खुला_खत




आदरणीय रतन टाटा जी,

सादर नमस्ते,

आपको स्मरण कराना आवश्यक है कि अरब से होने वाले आक्रमणों से हुए बर्बर रक्तपात से संतप्त आपके पूर्वज यानि कुछ मुट्ठी भर पारसी जन जब अपनी जीवन रक्षा हेतु समुद्र के रास्ते भारत आये थे तब उनके पास अपनी नाव में पवित्र अग्नि और पवित्र जेंदावेस्ता बस ये दो चीजें ही थी। अपनी इन धरोहरों के साथ आपके पूर्वज पहले खम्भात की खाड़ी में भारत के दीव नामक टापू में उतरे थे फिर सन् 716 ई. के लगभग दमन के दक्षिण दिशा में लगभग 25 मील की दूरी पर अवस्थित एक हिन्दू राजा राजा #यादव_राणा के राज्य क्षे‍त्र में बसने गये।

उस हिन्दू राजा ने न केवल आपके पूर्वजों को अपने राज्य में शरण दी बल्कि उनके अग्नि मंदिर की स्थापना के लिए भूमि और कई अन्य प्रकार की सहायता भी की और वहां सन् 721 ई. में प्रथम पारसी अग्नि मंदिर बना। रोचक बात ये है कि इस मंदिर के बनने की अनुमति के साथ आपके पूर्वजों ने यह शर्त भी रखी थी कि हमारे मन्दिर के कुछ इतने किलोमीटर की परिधि में कोई गैर-पारसी दाखिल न हो सके; क्योंकि उनके दाखिल होने से हम उसे अपवित्र समझेंगे। उस हिन्दू राजा ने उस शर्त को सुना और फिर उसे मानते हुए राजाज्ञा निकाली कि पारसी अग्नि मंदिर की कुछ इतने किलोमीटर की परिधि में कोई भी हिन्दू नहीं जायेगा।
यधपि आप के पूर्वज शरणार्थियों की यह शर्त अपमानजनक थी पर शरणागतवत्सल उस राजा ये बिना हिचक वो शर्त मान ली। अटल बिहारी वाजपेयी जी ने संभवत: इसी प्रसंग को ध्यान में रखकर लिखा था :- हमने उर का स्नेह लुटाकर पीड़ित ईरानी पालें हैं...निज जीवन की ज्योति जला– मानवता के दीपक बाले हैं....




अपने इस सद्व्यवहार से आप पारसियों ने ये कमाया कि आज आप लोग भारत के संपन्नतम समुदायों में सबसे ऊपर हैं और आप समेत हर पारसी प्रतिनिधि का नाम हर हिन्दू सम्मान से लेता है और ऐसा करते हुए उसके जेहन में ये कभी नहीं आता कि "रतन टाटा" हमसे कोई अलग हैं। हम हिन्दुओं ने केवल पवित्र अग्नि और पवित्र जेंदावेस्ता लेकर आने वाले आप लोगों को दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शामिल होने का अवसर मुहैया कराया; क्योंकि हम अगर आपके पूर्वजों के साथ जुल्म करते, अत्याचार करते, भेदभाव करते, उनका शोषण करते तो आज आप लोग कहीं भी खड़े होने लायक नहीं रहते।

और इसके बदले में हमने ये कमाया कि जब आपके पूर्वज पारसियों ने देखा कि यहाँ के लोग गाय को माँ मानते हैं तो उन्होंने भी खुद को प्रतिज्ञाबद्ध कर लिया कि हम भी कभी गोमांस का सेवन नहीं करेंगे। फिर 1943 में जब तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट एल०एम० ऐमरी ने कुछ पारसी प्रतिनिधियों को बुलाकर उन्हें सुझाव दिया था कि वे अपने लिए विधान-सभाओं में अलग प्रतिनिधित्व की मांग करें तब इस पर आपके पारसी समाज की ओर से लगभग दो हजार गणमान्य पारसियों ने अपने हस्ताक्षर से युक्त एक ज्ञापन सौंपकर कहा था कि हम आपके इस सुझाव को पूरी तरह अस्वीकार करते हुए क्योंकि इस देश के भ्राता-समाज के हाथों हमारे हित पूरी तरह से सुरक्षित हैं।

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याद है आपके पूर्वजों ने हमारे पूर्वजों से कहा था- हम आपके देश में , आप हिन्दुओं के साथ ठीक उसी तरह रहेंगे जैसे शर्बत में चीनी घुली रहती है यानि इससे उस पर कोई अतिरिक्त बोझ भी नहीं पड़ता और उसकी मिठास भी बढ़ जाती है। यह अलिखित संबंध हमारी सांझी धरोहर है..............

इसलिए हे रतन टाटा ! हमारे यानि हिन्दू और पारसी के संबंध सदा से ऐसे ही मधुर रहे हैं; तनिष्क के विज्ञापन और फिर घटिया सा माफीनामा जैसी ओछी हरकतें करवाकर इस शर्बत में जहर न घोलिये और अपने पूर्वजों की मर्यादा को कलंकित न कीजिये

सादर,

संपूर्ण हिन्दू समाज की ओर से

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