नए दौर की तरफ भारत बांग्लादेश रिश्ते
भारत और बांग्लादेश के संबंध किसी भी दक्षिण एशियाई पड़ोसियों की तरह सभ्यता, संस्कृति, सामाजिक एवं आर्थिक आदि विषयों के साथ जुड़े हैं। इसके अतिरिक्त बहुत कुछ है जो दोनों देशों को एक सूत्र में बांधता है। हमारी साझा संस्कृति है। हमारा एक साझा इतिहास है। एक साझी विरासत, एक साझा भाषा है। हमारा सांस्कृतिक मेल, साहित्य, संगीत और कला से प्रेम तथा भारत के साथ बांग्लादेश का न केवल स्वाधीनता संग्राम का संघर्ष और मुक्ति की साझी विरासत है, अपितु दोनों देश एक दूसरे के अंतरंग भावनाओं को भ्रातृत्व भाव से अनुभव करते हैं। हमारी यही साझेदारी बांग्लादेश के साथ बहुआयामी संबंधों के विभिन्न स्तर के क्रियाकलापों में भी झलकती है। उच्च स्तरीय आदान-प्रदान, यात्राएं, बैठकें नियमित रूप से चलती रहती है। बांग्लादेश स्थित भारतीय दूतावास प्रतिवर्ष लगभग आधा मिलियन वीजा जारी करता है। हजारों बंगलादेशी छात्र अपने छात्र अपने स्वयं के खर्चे पर तथा 100 से अधिक भारत सरकार की वार्षिक छात्रवृत्ति पर भारत में अध्ययन करने आते हैं।
-1905 में अंग्रेजों (कर्जन) के षड्यंत्र बंग भंग के समय दोनों और के बंगाल वासियों ने मिलकर संघर्ष किया और उसे 1911 में विफल किया।
- भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 माउंटबेटन योजना के अंतर्गत पूर्वी पाकितान का निर्माण हुआ। इस तरह पूर्वी बंगाल फिर से बिछड़ गया।
- पाकितान ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान अर्थात बंगलादेशियो के अधिकारों को कुचलने में जो जुल्म ढाए उससे समस्त विश्व की आंखे नम हो गई थी। आज के समय में हम सीरिया में गृहयुद्ध के जो हालात देख रहे हैं, उससे कम दुरूह हालात उस समय न थे।
-उस समय आजादी की घोषणा करने वाले शेख मुजीबुर रहमान के समस्त परिवार की हत्या कर दी गई। शेख हसीना और उसकी बहन बच गई थी। किंतु उन्हें विश्व में राजनीतिक शरण देने को कोई तैयार न था। उन्हें भारत में राजनीतिक शरण मिली तथा वे 17 मई 1981 को पुनः बांग्लादेश लौटी थी।
- तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 1526 से 18 सो 58 तक मुगल शासन था
- 1958 से 1962 तथा 1969 से 1971 तक मार्शल ला रहा
- 26 मार्च 1971 को शेख मुजीबुर रहमान ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी इसके पश्चात वहां पश्चिम पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान में दमन शुरु कर दिया। भारत की मुक्ति वाहिनी की सहायता से अंततः 11 जनवरी 1972 को बांग्लादेश स्वतंत्र संसदीय लोकतंत्र बना
बांग्लादेश के स्वतंत्र होते ही भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय सहयोग की शुरुआत सहयोग की शुरुआत हो गई थी। किंतु लंबे समय तक इस पर बर्फ जमी बर्फ जमी रही। एक दशक पूर्व शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद द्विपक्षीय संबंधों में गर्माहट आई। आम तौर पर भारत और बांग्लादेश के बीच मधुर संबंध रहे हैं।
पिछले एक दशक से भारत बंग्लादेश के सम्बंध नए दौर में प्रवेश कर रहे है।
LBA सीमा समझौता
भारत बंग्लादेश के बीच लगभग 4096.7 km लम्बी सीमा है जो भारत के लिए सर्वाधिक है। विश्व मे पांचवे नम्बर पर बड़ी सीमा है। 1974 में ही तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान ने लैंड एकॉर्ड पर सहमति बनाई थी। 1975 में शेख मुजीबुर की हत्या हो जाने के बाद यह प्रक्रिया लंबे समय तक ठंडी पड़ गई। इसके बाद की सरकारें "एनक्लेवों" की अदला बदली के विषय पर सहमति बनाने में असफल रहीं। वैसे एनक्लेवों का अस्तित्व कई सदियों से है। इस पर पहले स्थानीय रजवाड़ों का अधिकार था और वह परंपरा 1947 में ब्रिटिश शासन के अंत में हुए विभाजन से लेकर 1971 में बांग्लादेश और पाकिस्तान युद्ध के बावजूद कायम रही।
क्या हैं ये एनक्लेव ?
वास्तव में सदियों पहले कूचबिहार के राजा और रंगपुर के महाराजा जब शतरंज की बिसातें चलते थे तो गांवों को दांव पर लगते थे। दोनों रियासतों के सैकड़ों गांव एक दूसरे की रियासत में मौजूद थे। इसके बाद मुगलकाल में इन गांवों की सीमा को लेकर विवाद बना रहा। ऐसे 1713 विवादित क्षेत्र बने रहे। भारत की स्वतंत्रता के बाद बंटवारा तो हुआ पर पूर्वी पाकिस्तान के कई क्षेत्र भारत में और भारत के कई क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान में बने रहे। यहीं से एनक्लेव की समस्या प्रारम्भ हुई।
भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि-सीमा समझौता 16 मई, 1974 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान के बीच हुआ था। बांग्लादेश की संसद "जातीय संसद" ने इसे तत्काल स्वीकृति दे दी थी।
समझौते के तहत भूमि हस्तांतरण के लिए संविधान संशोधन की जरूरत के कारण हालांकि भारत में इस प्रक्रिया में देरी हुई। भूमि समझौते के संधि पत्र पर दोनों पक्षों ने छह सितंबर, 2011 को हस्ताक्षर किए थे। लेकिन इसकी प्रक्रिया 2015 में मोदी जी के नेतृत्व के प्रारम्भ हुई। जून २०१५ के आरम्भ में भारतीय संसद में अदलाबदली को कानूनी जामा पहनाने के लिए अधिनियम पारित हो चुका है।
इसके अंतर्गत भूमि अदला-बदली से संबंधित दस्तावेजों का आदान-प्रदान किया गया। इस तरह दोनों देशों ने इतिहास रचा। इस भू-सीमा समझौते के तहत भारत बांग्लादेश को 111 कॉलोनी अथवा परिक्षेत्र सौंपेगा। इन कॉलोनियों की कुल जमीन 17,160.63 एकड़ है। वहीं बांग्लादेश 51 कॉलोनी अथवा परिक्षेत्र सौंपेगा। इन कॉलोनियों की कुल जमीन 7,110.02 एकड़ है। इसके अलावा 6.1 किलोमीटर अनिश्चित सीमा का भी सीमांकन किया जाएगा। 2010 की जनगणना के अनुसार इन एनक्लेव में कुल 51,549 लोग रहते हैं जिनमें से 37,334 भारतीय एनक्लेव पर तथा 14,215 बांग्लादेशी एनक्लेव पर रहते हैं।इन्हें न तो बांग्लादेश और न ही भारत अपना नागरिक मानने को तैयार है।
इस समझौते के तहत बांग्लादेश का कुछ भू-भाग भारत में शामिल होगा और पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले का कुछ भाग बांग्लादेश में चला जाएगा। साथ ही इन भू-भागों पर रहने वालों को भी स्थानांतरित कर स्थायी ठिकाना दिया जाएगा।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारत के क्षेत्र में पड़ने वाले 51 बांग्लादेशी एनक्लेव के लोगों को नागरिकता देने का फैसला किया है। नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों को 12 साल का निवास साबित करना होता है। भूमि सीमा समझौते के मद्देनजर एनक्लेव का नियंत्रण लिए जाने के बाद सरकार की योजना सामूहिक आधार पर नागरिकता देने की है।
हर व्यक्ति को नागरिकता देने से पहले सहमति ली जाएगी कि वह भारत में रहना चाहता है या बांग्लादेश जाने का इच्छुक है।
ऊर्जा क्षेत्र
हाल ही में भारत और बांग्लादेश के बीच हुए “परमाणु समझौते” को दक्षिण एशिया की राजनीति में बड़े बदलाव के तौर पर भी देखा गया था. खासकर ऊर्जा के क्षेत्र में उस समझौते को बेहद कारगर समझा गया। इसी क्रम में, पहला परमाणु ऊर्जा प्लांट स्थापित करने में बांग्लादेश को भारत के माध्यम से काफी सहूलियत मिल जाएगी और साथ ही साथ भारत के सहयोग से 100 मेगावाट के पावर ट्रांसमिशन लाइन की क्षमता 500 मेगावाट तक हो सकती है। इस समझौते में बांग्लादेश को एलपीजी और एलएनजी देने का मुख्य मकसद भी जुड़ा है, तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए नए ट्रांसपोर्ट मार्ग का खुलना, जो बांग्लादेश से होकर जायेगा, उसकी योजना भी साधी गयी है। पिछले दिनों पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी बांग्लादेश की यात्रा की थी और भारत की तरफ से कई घोषणाएं हुई थीं। उन्होंने बांग्लादेश को पश्चिम बंगाल से डीजल भेजने का वादा किया था, तो पानी और ट्रांसपोर्ट सहित और कई मुद्दों पर समझौता किया गया। अब भारत अपने पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेश के रास्ते एलपीजी और एलएनजी का ट्रांसपोर्ट कर सकेगा, जिससे इन सम्बन्धों में और भी मजबूती नज़र आएगी। इस प्रकार पूर्वोत्तर भारत के राज्यों और शेष भारत के बीच दूरी भी कम हो जाएगी। भारत के पूर्वी राज्य जो अष्ट लक्ष्मी के नाम से जाने जाते हैं, उनके लिए भारत-बांग्लादेश का सरस सम्बन्ध बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक द इंस्टीट्यूट आफ पालिसी, एडवोकेसी एंड गवर्नेंस (आईपीएजी) के अध्यक्ष सैयद मुनीर खासरू कहते हैं, बीते एक दशक के दौरान विभिन्न मोर्चों पर बढ़ते सहयोग की वजह से भारत-बांग्लादेश संबंधों में परिपक्वता आई है। लेकिन मौजूद मुद्दों व चुनौतियों को शीघ्र सुलझाना दोनो देशों के हित में बेहतर होगा। उनको उम्मीद है कि शेख हसीमा के इस दौरे से आपसी रिश्तों में सहयोग, समन्वय और मजबूती का एक नया आयाम जुड़ जाएगा।
भारत-बांग्लादेश आपस में निरंतर नए नए समझौते और व्यापार को बढ़ा रहे हैं। 2010 से 8 बिलियन डॉलर की 3 लाइन आफ क्रेडिट भारत ने बांग्लादेश को दी है। जिसके द्वारा सार्वजनिक परिवहन, सड़क, रेल पुल निर्माण, अंतर्देशीय जलमार्ग आदि का कार्य प्रारंभ किया गया।
बिजली तथा ऊर्जा के क्षेत्र में 2017 तक 660 मेगावाट का निर्यात भारत करता था। अब 3600 मेगावाट के नए करार पर हाल ही हस्ताक्षर हुए हैं
बांग्लादेश में भारतीय कम्पनी आईओसी तेल क्षेत्र में कार्य कर रही है।
2017 में भारत और बांग्लादेश के बीच 11 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए तथा 24 समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण 2015 में लागू हुआ एल बी ए समझौता है।
भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश निरंतर बढ़ता जा रहा है। 1972 के प्रथम व्यापार समझौते के पश्चात 2015 में उन समझौतों का पुनः नवीनीकरण किया गया। भारत-बांग्लादेश के बीच 2017-18 में 9.5 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ है। 2011 से दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार SAFTA के तहत भारत ने शराब और तंबाकू को छोड़कर सभी वस्तुओं पर बांग्लादेश को शुल्क मुक्त किया है।
अक्टूबर 2019 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का भारत दौरा हुआ जिसमें 7 समझौते तथा 3 परियोजना का उद्घाटन हुआ। इसमें छत्रीग्राम व मोंगला बंदरगाह का भारत द्वारा उपयोग, त्रिपुरा के लिए पेयजल परियोजना, तटीय निगरानी रडार प्रणाली की स्थापना, हैदराबाद व ढाका विश्वविद्यालय के बीच समझौता, त्रिपुरा में एलपीजी का आयात, ढाका में विवेकानंद भवन का उद्घाटन आदि प्रमुख थे।
भारत और बांग्लादेश के बीच आपसी संबंध निरंतर गति पकड़ते जा रहे हैं। नए दौर में आपसी सहयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। किंतु कुछ चिंता के विषय भी है। बांग्लादेश का मुख्य भोजन मांसाहार है। वह गौ मांस खाते हैं। किंतु भारत गौ मांस का निर्यात नहीं करता इसलिए भारत-बांग्लादेश सीमा से अवैध गोवंश की तस्करी चिंता का विषय है। उधर बांग्लादेश ने एनआरसी पर भी चिंता व्यक्त की है। जिसे भारत को दूर करना होगा। तीस्ता जल विवाद भी पुराना विवाद है। भारत और बांग्लादेश के बीच 54 नदिया साझा होती है। दोनों देशों को जल विवाद का हल निकालना होगा। दोनों देशों को अल्पकालिक लाभ छोड़कर दीर्घकालिक लाभ की ओर कदम बढ़ाने होंगे।
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