कोविड महामारी और बच्चो की पढ़ाई


यह सर्वकालिक सत्य है कि बड़ी कक्षाओं के छात्रो को स्व अध्ययन करने की ओर प्रवृत्त करना चाहिए जिससे कि वे स्वयं अध्ययन कर तथ्यों को समझ सके।। जो छात्र स्व अध्ययन करने के अभ्यस्त हो जाते हैं वे जीवन भर हर अध्ययन कक्षा में श्रेष्ठ परिणाम देते ही हैं। इसके लिए शिक्षक और अभिभावक छात्रों को प्रेरित करने के साथ ही साथ इसका अभ्यास भी करवाएं यह ज़रूरी है, तभी वे अध्ययन कर पाएंगे। कोविड-19 महामारी काल में प्रत्यक्ष कक्षा शिक्षण बाधित हुआ है। कक्षाओं में एक साथ लंबे समय तक अधिक संख्या में छात्रों को बुलाकर शिक्षण करवाया जाना कब प्रारंभ हो सकेगा ऐसा स्पष्ट कहा नहीं जा सकता। ऐसे में शिक्षकों के बिना अध्ययन कराया जाना बाधित ही होगा। शिक्षा विभाग के अधिकारी, शिक्षाविद और अभिभावक इस दिशा में चिंतित भी है और विकल्प की तलाश में बही है।
छात्रों को घर बैठे ही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से जोड़े रखने के लिए आनन-फानन में जो निर्णय लिया गया था, वह था ऑनलाइन शिक्षण का। पिछले एक-दो माह में इस विकल्प को उपयोग में लेते हुए हम सब ने इसकी खूबियों को भी जाना तो इसकी सीमाओं की भी जानकारी हुई। ऑनलाइन शिक्षण के साइड इफेक्ट भी पर्याप्त मात्रा में दृष्टिगोचर होने लगे हैं। हम सभी ने लॉकडाउन काल में समाचार पत्रों के माध्यम से यह सब जाना भी है। अनेक सर्वे, समाचार इत्यादि पढ़ने को मिले। आज का ज्वलंत प्रश्न यही है कि कोविड-19 के दिशानिर्देशों को मानते हुए छात्रों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से किस प्रकार जोड़े रखा जाए? इस दिशा में कुछ चिंतन मनन किया जा सकता है कुछ विकल्प इस प्रकार हो सकते हैं-
• पाठ्यपुस्तक के अधिकतम उपयोग के लिए विभिन्न योजनाएं बनाना
• ऑनलाइन शिक्षण के साथ शिक्षक और छात्र का संवाद अधिकतम हो
• ऑड इवन फार्मूला अपनाया जा सकता है छोटे-छोटे समूहों में छात्रों को विद्यालय बुलाकर शिक्षण करवाना
• छात्रों को स्वाध्याय का अभ्यास करवाना तथा घर बैठकर अध्ययन के लिए प्रेरित करना
• दत्त कार्य अर्थात असाइनमेंट देकर समय-समय पर उसकी जांच करते रहना
• परिजेक्ट कार्य देना
• अभिभावकों को प्रशिक्षण देकर उनके अपने बच्चों के अध्ययन में भागीदारी बढ़ाना
• अध्यायओं के पीछे दिए गए अभ्यास प्रश्नों के स्थान पर वैकल्पिक प्रश्न निर्माण करवाकर पाठ्यपुस्तक के अधिकतम उपयोग को प्रोत्साहित करना
यदि शिक्षक चिंतन करें तो अनेक विकल्प निकलकर हमारे सामने आ जाएंगे। इनमें से एक विकल्प पर जो मैंने कार्य किया उसके अनुभव को यहां में साझा करना उचित मानता हूं। मैंने जीव विज्ञान वर्ग के छात्रों द्वारा पाठ्यपुस्तक के अधिकतम उपयोग हेतु एक लघु प्रयोग किया जो निम्नलिखित प्रकार से था
राज्य सरकार द्वारा दी गई निशुल्क पाठ्य पुस्तकें इस प्रकार तैयार की जाती है कि छात्र स्वयं पाठ्य पुस्तक पढ़कर उस विषय को ठीक से समझ सके। पुस्तकें स्वयं अपनी गाइड भी है। लेकिन सामान्यतया यह अनुभव आता है कि बड़ी कक्षाओं में छात्र पाठ्यपुस्तक का न्यूनतम उपयोग करते हैं। भाषा शिक्षकों को छोड़ दिया जाए तो अन्य विषयों के शिक्षक अपने शिक्षण कार्य के दौरान पाठ्य पुस्तक के उपयोग का आग्रह छात्रों से नहीं करते हैं।।
कक्षा 6 व 7 के नवीन पाठ्यपुस्तक आधारित मास्टर ट्रेनर प्रशिक्षण में मेरा ऐसा अनुभव भी रहा है कि अनेक विज्ञान शिक्षक पढ़ने की प्रवृत्ति कम रखते हैं। इसलिए अनेक बार ऐसे सत्रों का आयोजन भी प्रयास पूर्वक हमारी टीम ने किया कि आए हुए विज्ञान शिक्षक केआरपी और मास्टर ट्रेनर सात दिवसीय प्रशिक्षण में पूरी पाठ्य पुस्तक का अध्ययन करके अर्थात पढ़कर जाए।
आज के समय की मांग भी यही है कि इस प्रक्रिया द्वारा छात्रों को भी अध्ययन-अध्यापन करवाया जाए। छात्र पाठ्य पुस्तकों का सांगोपांग अध्ययन कर सकें, विषय वस्तु को समझ सके, अपने निष्कर्ष निकाल सके, प्राप्त ज्ञान को उपयोग में ले सके, अपने शिक्षक से और अभिभावक से प्रश्न पूछ सकें, अपना स्वयं के स्तर से चिंतन कर सकें और अपने गढे हुए ज्ञान की पुष्टि करने के उपरांत उसका उपयोग भी कर सके। इसे हम स्वाध्याय की श्रेणी में ले सकते हैं। इतना सब कुछ छात्रों द्वारा किया जा सके इसलिए जरूरी है कि शिक्षक कुछ चरण तय कर ले और उसके अनुसार कार्य कर सकें जैसे
• पैराग्राफ को सीधा सीधा पढ़ने के लिए देना
• जो कुछ समझ में आया उसे अभिव्यक्त करने के लिए कहना (मौखिक या लिखित)
• यह पता लगाना कि मुझे क्या समझ में नहीं आया इसका छात्रों से अभ्यास करवाना
• जिस बिंदु को समझ नहीं पाए उसे पूछने की क्षमता अर्जित करना
• अनेक बार चुनौती देकर पैराग्राफ पढ़ने के लिए दिया जाना क्योंकि छात्र चुनौती को जल्दी स्वीकार करते हैं और उसे उत्साह से पूरा भी करते हैं
• चुनौती बच्चों के स्तर अनुसार दी जा सकती है जैसे पैराग्राफ में से विशेष शब्द ढूंढना किसी प्रश्न का उत्तर तलाशना, क्यों, क्या-क्या, कैसे, कितने से प्रारंभ होने वाले प्रश्न का निर्माण कर पाना, अंतर तलाशना, समानताएं तलाशना इत्यादि चुनौतियां दी जा सकती है यहां मैं अपनी जीव विज्ञान की कक्षा का व्यक्तिगत अनुभव आपके साथ साझा कर रहा हूं। कक्षा 12 में एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक पढ़ाते समय जनन इकाई पूर्ण होने पर एक विचार आया। बता दूं कि इस इकाई में पुष्पी पादपों में जनन तथा मानव में जनन जो भिन्न अध्याय हैं। इन अध्यायों को एकसाथ पाठ्यपुस्तक से रीडिंग करवाने की योजना का विचार जागा।

मैने छात्रों को 2 दिन का समय देकर एक कार्य दिया। कार्य इस प्रकार था कि पुष्पी पादपों में जनन प्रक्रिया तथा जनन अंगों के साथ मानव के जननांग और प्रक्रिया में समानताएं तलाश करना है। छात्रों को अधिकतम समानताएं तलाश कर एक पेपर पर लिख कर कक्षा में प्रस्तुत करने की चुनौती दी गई थी। जिसका कक्षा में वाचन होना था। छात्रों ने दोनों अध्याय में एक-एक शब्द को खंगाल लिया। औसतन 10 से 12 समानताएं लेकर छात्र आये यथा दोनों में युग्मक जनन का होना, दोनों में अर्धसूत्री विभाजन का होना, निषेचन का होना इत्यादि
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि अब छात्रों के पास मुझसे पूछने के लिए अनेक प्रश्न थे।। अनेक शब्दों के अर्थ उन्हें मुझसेजानने थे, अनेक हिंदी शब्दों का अंग्रेजी भाषा में समानार्थक शब्द भी जानना था। इकाई पूरी होने के बाद 2 दिन चुनौती तथा 2 दिन शंका समाधान हेतु अतिरिक्त समय तो लगा किंतु परिणाम सकारात्मक थे। इस सब का परिणाम यह भी निकला कि प्रायोगिक परीक्षा के दौरान बाह्य परीक्षक द्वारा छात्रों से मौखिक प्रश्न पूछते समय कुछ छात्रों को उसका उत्तर नहीं बन पड़ा तब उन्होंने सैद्धांतिक भाग से प्रश्न पूछने का आग्रह किया तथा अपने पसंद का अध्याय जनन बताया। हालांकिबाह्य परीक्षक ने सैद्धांतिक भाग से कोई प्रश्न नहीं पूछे किंतु परीक्षा के अंत में उन्होंने मुझ से इसका कारण पूछा कि सभी बच्चे इस इकाई में सहज क्यों अनुभव कर रहे हैं। यह सब जानकर मुझे गर्व अनुभव हुआ कि मेरे एक छोटे से प्रयोग ने बहुत सकारात्मक परिणाम दिए हैं।
इस सामान्य को तथ्य को हम जानते हैं कि 2 सिद्धांतों, घटनाओं, चित्र, वस्तु, प्रक्रियाओं इत्यादि में हम सभी केवल अंतर ही पूछते हैं। अंतर बताने के लिए इन दोनों विकल्पों के भीतर ही चिंतन सीमित हो जाता है। लेकिन समानता जानने के लिए उन दोनों विकल्पों से बाहर निकल कर कुछ बड़ा सोचना चिंतन करना होता है। इसके लिए एक उदाहरण दूंगा- बस और गाय में अंतर पूछने पर बच्चे सजीव और निर्जीव के अंतर में फस कर रह जाएंगे। किंतु यदि बस और गाय में समानता पूछी जाए तब उन्हें कुछ बड़ा सोचना होगा जैसे दोनों द्रव्य है, स्थान करते हैं, दोनों में द्रव्यमान है, दोनों में लोह तत्व भी उपस्थित है, दोनों ऊर्जा का उपयोग करते हैं। इस प्रकार अनेक विषय भी खुल जाते हैं। छात्र सीमाओं से परे भी चिंतन करते है।
ऐसे ही भिन्न-भिन्न तरीके से चिंतन मनन करके शिक्षक साथी छात्रों को पाठ्यपुस्तक के अधिकतम उपयोग के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से कार्य दे सकते हैं तथा उनमें स्वाध्याय की प्रवृत्ति स्थापित कर कोविड-19 की परिस्थितियों में शिक्षण अधिगम को निरंतर जारी रख सकते हैं।

लेखक
मनमोहन पुरोहित
व्यख्याता जीव विज्ञान
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय आसोप जोधपुर
राज्य स्तर के प्रशिक्षणों में प्रशिक्षक के साथ प्रशिक्षण मॉड्यूल लेखन तथा scert पाठ्यपुस्तक लेखन का अनुभव

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