आरएसएस की 100 साल की यात्रा और बदलती छवि
आरएसएस की 100 साल की यात्रा और बदलती छवि हाल ही में, दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एक तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में, सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने RSS की भूमिका, इतिहास और उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने 200 से अधिक सवालों के धैर्यपूर्वक और संतोषजनक जवाब भी दिए। यह प्रश्न मन में उठता है कि, जब RSS पिछले कई दशकों से भारत के हर क्षेत्र में सक्रिय है—चाहे राजनीतिक हो या श्रमिक, कृषि हो या शिक्षा, प्रशासन हो या संस्कृति—फिर भी उसे अपने 100 साल पूरे होने के बाद अपने विचारों को साफ करने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? वास्तव में, जो संघ अब तक कहता-करता रहा है और जो देश-विदेश में उसकी छवि है, उसमें भारी अंतर है। संक्षेप में कहें, तो संघ आज भी ‘छवि-अभाव’ और ‘नकारात्मक धारणा’ का शिकार है। इसके तीन प्रमुख कारण हैं। 1. अद्वितीय संगठन और औपनिवेशिक मानसिकता पहला कारण यह है कि संघ एक अद्वितीय संगठन है, जिसका समकक्ष पश्चिमी सभ्यता में कहीं नहीं मिलता। भारतीय समाज का एक वर्ग जो आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त है, व...