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अगस्त 31, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आरएसएस की 100 साल की यात्रा और बदलती छवि

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आरएसएस की 100 साल की यात्रा और बदलती छवि हाल ही में, दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एक तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में, सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने RSS की भूमिका, इतिहास और उद्देश्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने 200 से अधिक सवालों के धैर्यपूर्वक और संतोषजनक जवाब भी दिए। यह प्रश्न मन में उठता है कि, जब RSS पिछले कई दशकों से भारत के हर क्षेत्र में सक्रिय है—चाहे राजनीतिक हो या श्रमिक, कृषि हो या शिक्षा, प्रशासन हो या संस्कृति—फिर भी उसे अपने 100 साल पूरे होने के बाद अपने विचारों को साफ करने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? वास्तव में, जो संघ अब तक कहता-करता रहा है और जो देश-विदेश में उसकी छवि है, उसमें भारी अंतर है। संक्षेप में कहें, तो संघ आज भी ‘छवि-अभाव’ और ‘नकारात्मक धारणा’ का शिकार है। इसके तीन प्रमुख कारण हैं। 1. अद्वितीय संगठन और औपनिवेशिक मानसिकता पहला कारण यह है कि संघ एक अद्वितीय संगठन है, जिसका समकक्ष पश्चिमी सभ्यता में कहीं नहीं मिलता। भारतीय समाज का एक वर्ग जो आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त है, व...

हल्दी घाटी युद्ध विजय@450 वर्ष : अडिग प्रतिज्ञा, अजेय प्रताप

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हल्दी घाटी युद्ध में अकबर की सेना संख्या में महाराणा प्रताप की सेना से चार गुना अधिक थी। मुगल सेना में मान सिंह सहित कई सेनापति थे, फिर भी वे महाराणा प्रताप के आगे टिक न सके और मैदान छोड़कर भाग गए। आज से 450 वर्ष पूर्व 18 जून, 1576 को हल्दी घाटी में अकबर की साम्राज्यवादी सेना और महाराणा प्रताप का आमना-सामना हुआ था। इस युद्ध में मुगल सेना बुरी तरह पराजित हुई। युद्ध में प्रताप और मानसिंह का भी आमना-सामना हुआ था, पर प्रताप के भाले के वार से वह बच गया। इसके बाद मान सिंह व मुगल सेना भाग खड़ी हुई और गोगुंदा के किले में छिप गई। इस पराजय पर क्रोधित अकबर ने अपने प्रधान सेनापति मानसिंह व उसके सहयोगी आसफ खान की ड्योढ़ी माफ कर 6 माह के लिए दरबार से निष्कासित कर दिया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि अकबर की सेना में मान सिंह के अलावा कई सेनापति थे। घोड़े सहित बहलोल खां के दो फाड़ हल्दीघाटी युद्ध से पहले अकबर ने महाराणा प्रताप को अपनी अधीनता स्वीकार कराने के लिए कूटनीतिक सहित सारे प्रयास किए। महाराणा प्रताप का शत्रु बोध स्पष्ट था। वे कभी अकबर के साथ अपने आत्मसम्मान का समझौता नहीं कर सकते थे। इ...

मेजर ध्यानचंद, हॉकी के जादूगर

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29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में जन्मे मेजर ध्यानचंद का हॉकी के खेल में पूरी दुनिया में कोई सानी नहीं था, उन्होंने लगभग 22 वर्ष तक भारत के लिए हॉकी खेली और इस दौरान 400 से अधिक अंतरर्राष्ट्रीय गोल दागे। उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 29 अगस्त का दिवस भारत के लिए बहुत विशेष है। आज हमारा देश राष्ट्रीय खेल दिवस मना रहा है। इस दिवस को देश के महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पहली बार राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त 2012 को मनाया गया था और तब से हर वर्ष इसे बड़े उत्साह और गर्व के साथ मनाया जाता है। हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की महानता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब वह हॉकी खेलते थे तो ऐसा लगता था मानो गेंद उनकी स्टिक से चिपक जाती थी। ध्यानचंद की उपलब्धियों ने अंग्रेजी राज के दौरान भी भारतीय के खेल के इतिहास को नए शिखर पर पहुंचाया था। उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक (1928 में एमस्टरडम, 1932 में लॉस एंजेलिस और 1936 में बर्लिन में भारत को हॉकी के खेल में अपने दम पर स्वर्ण पदक दिलाया था। म...