गोवर्धन पूजा: पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और दायित्व बोध का अद्भुत संदेश
गोवर्धन पूजा: पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और दायित्व बोध का अद्भुत संदेश भारतीय वाड्मय में प्रत्येक तीज त्यौहार और परंपरा प्रकृति, समाज तथा मानवीय मनोविज्ञान के गहन अनुसंधान पर आधारित है। दीपोत्सव की पाँच दिवसीय त्यौहार श्रृंखला में चौथे दिन, दीपावली के ठीक अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजन एवं अन्नकूट का आयोजन होता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित है और इसमें सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण एवं मानवीय दायित्व बोध का अद्भुत संदेश निहित है। पूजा का विधान और गौ-संरक्षण का संदेश परंपरानुसार, इस दिन घर की महिलाएँ प्रातःकाल गाय के ताज़े गोबर से पर्वत के आकार का एक छोटा प्रतीक बनाती हैं और उसे सजाकर पूजन करती हैं। वहीं, परिवार के सभी पुरुष गाय सहित सभी पालतू पशुओं का श्रृंगार करते हैं। पशुओं को सम्मान देने के लिए उनके गले में घंटियों की माला तथा शरीर पर रंग-बिरंगी आकृतियाँ बनाई जाती हैं। गाय की विशेष पूजा और आरती उतारी जाती है। गोवर्धन के प्रतीक के लिए गाय के गोबर का चुनाव गौ-संरक्षण के साथ-साथ जैविक खाद और वैकल्पिक ऊर्जा (जैसे सोलर ऊर्जा) के महत्...