भारत और इजरायल की रणनीतिक समानता: पाकिस्तान और ईरान की रक्षा-दीवारों को ध्वस्त करती सैन्य नीति
प्रस्तावना:
विश्व राजनीति में हालिया घटनाएं यह दर्शा रही हैं कि अब युद्ध केवल सीमा पर नहीं लड़े जाते, बल्कि वे शत्रु की नसों में घुसकर उसकी सुरक्षा को निष्क्रिय कर, मनोबल तोड़ने तक जा पहुंचते हैं। 13 जून की रात इजरायल द्वारा ईरान पर किए गए हमले ने एक बार फिर से भारत की 2019 की बालाकोट स्ट्राइक की याद ताजा कर दी। खास बात यह है कि पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नजम सेठी ने खुद इस तुलना को स्वीकार किया है।
इजरायल-ईरान हमला: भारत-पाकिस्तान स्ट्राइक का प्रतिबिंब
इजरायल ने अपने दुश्मन देश ईरान पर हमला करने के लिए वही रणनीति अपनाई जो भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ अपनाई थी। 13 जून की रात, इजरायल ने सबसे पहले ईरान के एयर डिफेंस और रडार सिस्टम को निशाना बनाते हुए उन्हें ध्वस्त कर दिया। यही कार्य भारत ने बालाकोट स्ट्राइक में किया था, जहां लक्ष्य था – आतंक के अड्डों का खात्मा और पाकिस्तान की रक्षा व्यवस्था को चौंका देना।
ईरान और पाकिस्तान – दोनों ने शुरू में "हम पर कोई नुकसान नहीं हुआ" जैसी बयानबाजी की। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और उनके रक्षा विशेषज्ञ तो संसद में डींगें हांकने से भी नहीं चूके थे। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता, असलियत बाहर आती गई – चाहे वो बर्बाद हुए आतंकी शिविर हों, या ईरान के निष्क्रिय हो चुके रक्षा तंत्र।
नजम सेठी का सत्य स्वीकारना
नजम सेठी कोई आम पत्रकार नहीं हैं। भारत के वामपंथी तबकों में उनके बयानों को अक्सर हवाला बनाकर मोदी सरकार की आलोचना की जाती रही है। लेकिन जब सेठी खुद यह स्वीकारते हैं कि "इजरायल ने ईरान पर वही किया जो भारत ने पाकिस्तान पर किया था" – तब उनके अपने तर्क मोदी सरकार के समर्थन में बदल जाते हैं। उनके अनुसार, इजरायल ने ड्रोन से हमला किया, रडार सिस्टम ध्वस्त किया और दुश्मन की भूमि में घुसकर ऑपरेशन को अंजाम दिया – बिल्कुल भारत की तरह।
विपक्ष और वामपंथ की दोहरी सोच बेनकाब
भारत में वामपंथी और कांग्रेस जैसी शक्तियां अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में भी विरोध की राजनीति करने से नहीं चूकतीं। जब भारत ने पाकिस्तान में आतंक के अड्डों पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी, तब इन्हीं लोगों ने सबूत मांगे, सेना के मनोबल पर सवाल उठाए और पाकिस्तान की "साफ-सुथरी छवि" पेश करने की कोशिश की थी।
अब जबकि इजरायल ने वही तरीका अपनाया और पाकिस्तान के अपने विश्लेषक इसकी पुष्टि कर रहे हैं, तो यही तथाकथित बुद्धिजीवी मौन क्यों हैं? क्या इनके राष्ट्रहित और सुरक्षा के विचार केवल सत्ता के विरोध तक सीमित हैं?
भारत की नीति: आत्मरक्षा नहीं, निर्णायक आक्रमण
मोदी सरकार की नीति स्पष्ट है – पहले हमले का इंतजार नहीं किया जाएगा। आतंक का गढ़ कहीं भी हो, यदि वह भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है, तो उसे जड़ से उखाड़ा जाएगा। यह दृष्टिकोण अब वैश्विक सुरक्षा रणनीति में आदर्श बनता जा रहा है। यूक्रेन द्वारा रूस के अंदर जाकर हमले करना हो, या इजरायल का ईरान में घुसकर ऑपरेशन – भारत की राह अब विश्व की रणनीति बन चुकी है।
निष्कर्ष:
भारत की सर्जिकल और एयर स्ट्राइक्स अब केवल सैन्य कारनामे नहीं, बल्कि सामरिक सिद्धांतों के प्रतीक बन चुके हैं। जब पाकिस्तान जैसे देश के भीतर से कोई पत्रकार यह स्वीकार करे कि इजरायल ने ईरान पर वही किया जो भारत ने पाकिस्तान पर, तो यह भारत की नीति की सफलता और वैश्विक स्वीकार्यता का प्रमाण है।
अब सवाल यह है – भारत के अंदर बैठकर भारत की सुरक्षा नीति को कमजोर दिखाने वाले तत्व, आखिर कब राष्ट्रहित में सोचने लगेंगे?
क्योंकि अब युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं, विचारों के स्तर पर भी लड़े जा रहे हैं।
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