"बासनपीर की छतरियां: वीरता बनाम वोट बैंक
राजस्थान की धरती वीरता, बलिदान और स्वाभिमान का प्रतीक रही है। जैसलमेर की मिट्टी में रियासत कालीन योद्धाओं के साहस की कहानियां आज भी गूंजती हैं। यहां बने स्मृति चिह्न, विशेषकर छतरियां, उन बलिदानी वीरों की अमर गाथा बयां करती हैं जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
बासनपीर गांव की छतरियां भी इसी गौरवशाली इतिहास का हिस्सा हैं। समय के थपेड़ों ने इन्हें जर्जर बना दिया था, जिससे उनका पुनर्निर्माण आवश्यक हो गया। लेकिन, 10 जुलाई 2025 की सुबह जब इनका पुनर्निर्माण कार्य शुरू हुआ, तब यह सांस्कृतिक कार्य अचानक विवाद और हिंसा का कारण बन गया।
10 जुलाई का बासनपीर संघर्ष
पुनर्निर्माण कार्य जैसे ही शुरू हुआ, आसपास के मुस्लिम बहुल गांवों से बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएं और बच्चे एकत्रित हो गए। वे कार्यस्थल पर पहुंचे और विरोध जताते हुए पथराव शुरू कर दिया।
इस अचानक हुई हिंसा में कई वाहन क्षतिग्रस्त हो गए और एक कांस्टेबल सहित चार लोग घायल हो गए। स्थिति बिगड़ते देख पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।
सवाल उठता है कि आखिर वीर स्मृति स्थलों के पुनर्निर्माण से मुस्लिम समुदाय को क्या आपत्ति है? क्या यह घटना केवल छतरियों के कारण है या इसके पीछे कोई गहरा राजनीतिक और वैचारिक षड्यंत्र छिपा है?
साले मोहम्मद और पाकिस्तान कनेक्शन
इसी समय पूर्व कांग्रेसी मुस्लिम विधायक साले मोहम्मद के पीए शाकूर खान का पाकिस्तान से जासूसी का मामला भी सामने आया है। शाकूर खान की गिरफ्तारी इस बात की ओर इशारा करती है कि कहीं न कहीं पाकिस्तान समर्थक ताकतें राजस्थान में सक्रिय हैं।
साले मोहम्मद की चुप्पी बहुत कुछ कहती है। यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या बासनपीर की घटना और इस जासूसी मामले का कोई अप्रत्यक्ष संबंध है?
कांग्रेस का दोहरा चरित्र
कांग्रेस के नेताओं का "सर्वधर्मसमभाव" का राग लंबे समय से केवल वोट बैंक की राजनीति तक सीमित होकर रह गया है। आज कांग्रेस के कुछ नेता बासनपीर में "रामधुन" और "मोहब्बत की दुकान" जैसे खोखले नारे देकर एकतरफा मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपना रहे हैं।
कांग्रेस की स्थापना से लेकर आज तक उसका चरित्र बार-बार हिंदू समाज और उसकी विरासत के प्रति उदासीन, बल्कि विरोधी ही दिखाई देता है।
कांग्रेस के स्थानीय नेता विदेशी नेतृत्व के संकेत पर वीर हुतात्माओं की स्मृतियों के पुनर्निर्माण का विरोध कर रहे हैं। यह न केवल सांस्कृतिक अपमान है, बल्कि राष्ट्रीय समाज की सहिष्णुता की भी परीक्षा है।
वीर स्मृतियां: राष्ट्रीय प्रेरणा स्रोत
हमारे बलिदानी योद्धा केवल किसी एक समुदाय के नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के आदर्श हैं। उनके स्मृति स्थल हमें संघर्ष, त्याग और आत्मबलिदान की प्रेरणा देते हैं। बासनपीर की छतरियां न केवल स्थानीय इतिहास का गौरव हैं, बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय चरित्र की झलक हैं।
जो लोग इन स्मारकों का विरोध करते हैं, वे केवल ईंट-पत्थरों को नहीं रोक रहे, बल्कि हमारे इतिहास, हमारी संस्कृति और हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान को चुनौती दे रहे हैं।
राष्ट्र को एकजुट होकर खड़ा होना होगा
अब समय आ गया है कि हम जाति और उपजातियों के संकीर्ण दायरे से बाहर निकलकर उन सभी तत्वों का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बहिष्कार करें जो हमारे वीरों की स्मृतियों को धूमिल करने की साजिश कर रहे हैं।
यह लड़ाई केवल बासनपीर की नहीं, यह भारत की सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा का सवाल है। यदि आज हम चुप रहे, तो आने वाली पीढ़ियों के सामने हमारा गौरवशाली इतिहास विकृत रूप में प्रस्तुत किया जाएगा।
समापन
बासनपीर विवाद हमें यह याद दिलाता है कि हमारी ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा केवल सरकार का नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है। जो लोग वीर स्मारकों के पुनर्निर्माण को रोकने का प्रयास कर रहे हैं, वे राष्ट्र के शत्रु हैं।
आज जरूरत है कि राष्ट्रीय समाज एकजुट होकर ऐसे सभी तत्वों को स्पष्ट संदेश दे—"भारत के गौरव और बलिदान की गाथा को कोई नहीं मिटा सकता।"
प्रेरणादायक उद्धरण (Quotes)
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"इतिहास गढ़ा नहीं जाता, वह वीरों के रक्त से लिखा जाता है।"
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"जो राष्ट्र अपने वीरों की स्मृतियों का सम्मान नहीं करता, वह भविष्य में सम्मान की अपेक्षा नहीं कर सकता।"
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"बलिदान की गाथाएं मिटाई नहीं जा सकतीं, वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी नई चेतना जगाती हैं।"
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